मेरठ के डॉ. अंकित भरत का अमेरिका में डंका, कोरोना मरीज के फेफड़े को किया ट्रांसप्लांट
Dr. Ankit Bharat मेरठ में जन्मे पले-बढ़े डॉ. अंकित भरत के नेतृत्व में चिकित्सकों के एक दल ने अमेरिका में कोरोना संक्रमण से पीड़ित एक 20 वर्षीय युवती के फेफड़े ट्रांसप्लांट किए।
मेरठ [अमित तिवारी]। अमेरिका में पहली बार डबल लंग का ट्रांसप्लांट करने का कारनामा मेरठ के डॉ. अंकित भरत ने कर दिखाया है। मेरठ में जन्मे, पले-बढ़े डॉ. अंकित भरत के नेतृत्व में चिकित्सकों के एक दल ने अमेरिका में कोरोना संक्रमण से पीड़ित एक 20 वर्षीय युवती के फेफड़े ट्रांसप्लांट किए हैं। इस वैश्विक महामारी के दौर में कोरोना संक्रमण के कारण इस मरीज को दो नए फेफड़े लगाने का यह पहला ऑपरेशन है।
शिकागो की नार्थ-वेस्टर्न मेडिसिन के अनुसार एक युवती के फेफड़े ट्रांसप्लांट किए गए हैं। यदि ऐसा न किया जाता तो वह नहीं बचती। फिलहाल आइसीयू वह पहले से काफी बेहतर है। पिछले दो महीने से वह आर्टीफीशियल फेफड़े और हार्ट बीट देने वाले उपकरण पर आश्रित थी। थोरासिस सर्जरी के अगुवा और मेरठ में जन्मे डॉक्टर अंकित भरत ने बताया कि कोविड-19 के गंभीर रोगियों के लिए विभिन्न प्रकार के ट्रांसप्लांट उनके जीवन का आधार बनेंगे। उन्होंने कहा कि यह अब तक का उनका सबसे कठिन ट्रांसप्लांट था। इस ऑपरेशन को शुक्रवार को करने में उन्हेंं 10 घंटे लग गए थे। वायरस के कारण युवती के फेफड़े बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए थे।
फेफड़ों की स्थिति पर रखी नजर
सेंट मेरीज एकेडमी मेरठ में 1995 में 10वीं तक की पढ़ाई कर चुके डॉ. अंकित भरत 2013 से शिकागो के इसी हॉस्पिटल से जुड़े हैं। वह वर्तमान में इस हॉस्पिटल में सबसे युवा प्रोफेसर एवं चेयर ऑफ द डिपार्टमेंट हैं। डॉ. अंकित के अनुसार उनकी टीम के चिकित्सक कोविड-19 के ऐसे मरीजों को मॉनिटर कर रहे थे जिनके फेफड़े बुरी तरह क्षतिग्रस्त थे। मरीज वेंटिलेटर पर थे। डॉ. अंकित के अनुसार कोरोना वायरस की चपेट में आने के पहले युवती पूरी तरह स्वस्थ थी। मामूली बीमारी पर दवा खाने के बाद उसकी तबीयत अधिक बिगड़ी। 26 अप्रैल को नॉर्थ वेस्टर्न हॉस्पिटल में भर्ती होने के दो सप्ताह पहले से वह बीमार थी। यहां उसकी हालत बिगड़ती गई और उसे जल्द ही वेंटिलेटर पर रखना पड़ा। एक सप्ताह बीतने के बाद भी कोई सुधार नहीं हुआ। फेफड़ों की खराब कंडीशन का असर दिल व लिवर पर भी पड़ने लगा। इससे यह साफ हो गया कि मरीज के फेफड़े अब कभी ठीक नहीं हो सकते।
इलाज छोड़ने पर हो जाती मृत्यु
डॉ. अंकित की पूरी टीम एक युवा को ऐसे ही छोड़ने को तैयार न थी। अन्य केंद्रों पर ऐसी स्थिति में मरीज का इलाज बंद करने पर उनकी मृत्यु की सूचना पहले मिल चुकी थी। तब उन्होंने लंग ट्रांसप्लांट का निर्णय लिया। डॉ. अंकित के अनुसार नॉर्थ वेस्टर्न मेडिसिन हर साल 40 से 50 फेफड़े ट्रांसप्लांट करता है जिनके अधिकतर ऑपरेशन वही करते रहे हैं। मैचिंग डोनर की पहचान हुई और युवती को ऑपरेशन के लिए ले गए। डॉ. अंकित के अनुसार अब तक उन्होंने जितने भी लोगों का लंग ट्रांसप्लांट किया था, उनमें यह युवती सबसे अधिक बीमार थी और उसके फेफड़े सबसे ज्यादा खराब स्थिति में पहुंच चुके थे।
चिकित्सा क्षेत्र की आधुनिक तकनीक ही डॉ. अंकित को ले गई थी अमेरिका
मेरठ में वर्ष 1995 में मेरठ छावनी स्थित सेंट मेरीज एकेडमी से 10वीं की पढ़ाई के बाद डॉ. अंकित भरत ने डीपीएस आरकेपुरम से वर्ष 1997 में 12वीं की। क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर से मेडिकल की पढ़ाई पूर कर 2003 में इंटर्नशिप की। शुरुआत में वह अमेरिका के बजाय भारत में ही सेवाएं देना चाहते थे। पढ़ाई और ट्रेनिंग के दौरान चिकित्सा क्षेत्र में तकनीक के मामले में अग्रणी अमेरिकी चिकित्सा सेवा ने उन्हेंं आकॢषत किया। इसके बाद माता-पिता से आशीर्वाद लेकर अमेरिका के लिए रवाना हो गए। वहां शुरुआती दिनों में रेसिडेंसी और हाउसजॉब करने के बाद साल 2013 में नॉर्थवेस्टर्न मेमोरियल हॉस्पिटल में असिस्टेंट प्रोफेसर बने और यहीं पर अब प्रोफेसर एवं चेयर ऑफ द डिपार्टमेंट बनकर अधिकतर लंग ट्रांसप्लांट खुद ही कर रहे हैं।
नवाजे गए आरओ-1 ग्रांट से
अमेरिका में अधिकतर मेडिकल सेवाएं निजी क्षेत्र की हैं। इन सभी पर अमेरिका की एक मात्र सरकारी मेडिकल संस्था नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ निगरानी रखती है। एनआइएच रिसर्च प्रोजेक्ट ग्रांट प्रोग्राम का नाम आरओ-1 ग्रांट है। यह सीधे अमेरिकी राष्ट्रपति के अनुमोदन से प्रदान की जाती है। डॉ. अंकित भरत को पिछले साल करीब 17 करोड़ रुपये की आरओ ग्रांट मिली। यह अमेरिका में सबसे बड़ी रिसर्च ग्रांट मानी जाती है। यह धनराशि एक साल के रिसर्च के लिए मिलती है। यह ग्रांट बेहद गंभीरऔर बेहतरीन प्रस्ताव को ही मिलती है।
बेटे की उपलब्धि से गदगद हैं माता-पिता
डॉ. अंकित भरत के पिता डॉ. भरत कुमार गुप्ता व माता डॉ. विनय भरत हैं। डॉ. भरत गुप्ता मेरठ के सुभारती के बायोकेमिस्ट्री डिपार्टमेंट में प्रोफेसर व एचओडी हैं। डॉ. विनय भरत भी वहीं पैथोलॉजी विभाग में प्रोफेसर हैं। बेटे की इस उपलब्धि पर दोनों बेहद गदगद हैं। डॉ. भरत गुप्ता कहते हैं कि यह उपलब्धि देश के लिए गर्व की बात है कि हमारा बच्चा सबसे कम उम्र में अमेरिका में सभी को पछाड़कर इस तरह का पहला सफल ऑपरेशन कर सका। माता-पिता को चिकित्सा क्षेत्र में काम करते हुए ही देख कर बड़े हुए डॉ. अंकित छोटी उम्र से ही डॉक्टर बनना चाहते थे। उनके छोटे भाई डॉ. अंचित भरत भी अमेरिका के इंडियाना पोलिस स्टेट स्थित वेल्स मेमोरियल अस्पताल में फिजिशियन हैं।
अब काम ही मेरी पत्नी
डॉ. भरत गुप्ता बताते हैं कि डॉ. अंकित शादी नहीं करना चाहते। इससे पहले पहले कहते थे कुछ समय बाद करूंगा, लेकिन अब मना ही करने लगे हैं। इसका कारण पूछने पर वह अपने काम को ही अपनी पत्नी बताते हैं। दो साल पहले अमेरिका जाने पर डॉ. अंकित के हॉस्पिटल में फेफड़ों के सौ ट्रांसप्लांट हुए मरीजों को बुलाया गया था। उनमें अधिकतर के ट्रांसप्लांट डॉ. अंकित ने ही किए थे। उन्होंने कहा कि एक दिन में जितने ट्रांसप्लांट वह अब कर पा रहे हैं, शादी के बाद आधे भी नहीं कर सकेंगे। डॉ. भरत गुप्ता पत्नी संग हर साल अमेरिका में बच्चों से मिलने जाते हैं। डॉ. अंकित पिछली बार 2014 में मेरठ आए थे। उसके चार वर्ष बाद मेडिकल कार्य से दिल्ली आए थे लेकिन वहीं से वापस लौट गए थे।
होनहारों में एक थे डॉ. अंकित
सेंट मेरीज एकेडमी में डॉ. अंकित भरत के सहपाठी रहे डॉ. वैभव मिश्रा के अनुसार डॉ. अंकित बैच के सबसे होनहार छात्रों में से एक थे। बैच के टॉपर्स में भी उनका नाम शामिल था। उनमें आज भी दोस्ती है और वह एक-दूसरे से सोशल मीडिया व फोन के जरिए जुड़े रहते हैं। मेरठ आने पर मुलाकात भी होती है। डॉ. वैभव आर्थोडोंटिस्ट हैं। वह डीजे डेंटल कालेज में प्रो. एवं एचओडी हैं। मेरठ में मंगलपांडे नगर स्थित गम्स एंड ब्रेसेस में प्रैक्टिस करते हैं।
मेडिकल में पांच साल में दुनिया में अग्रणी होगा भारत
शहर के जाने-माने फिजिशियन व एमडी मेडिसिन डॉ. राहुल मित्थल के अनुसार यह बेहद कठिन ऑपरेशन था। इसे पूरा कर डॉ. अंकित ने देश का नाम दुनिया में ऊंचा कर दिया है। हम सोच भी नहीं सकते हैं कि यह कितना अतुलनीय कार्य है। हमारे शहर का होने से हमें और भी गर्व महसूस हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के ऐसी ही प्रतिभा को विदेशों से वापस बुलाने की दिशा में काम कर रहे हैं। अगले पांच साल में भारत मेडिकल क्षेत्र में दुनिया की बराबरी करने योग्य बन जाएगा।