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कैंसर के इलाज के लिए अभी न करें मेडिकल कॉलेज का रुख, जानिए क्‍या है कमी Meerut News

अगर कैंसर के इलाज को मेरठ मेडिकल कॉलेज का रुख चाहते हैं तो जरा रुक जाइए सुपरस्पेशिलिटी ब्लाक में सिकाई के लिए लीनियर एक्सलरेटर लगाने की जमीन नहीं मिल पाई।

By Prem BhattEdited By: Published: Mon, 26 Aug 2019 11:10 AM (IST)Updated: Mon, 26 Aug 2019 11:10 AM (IST)
कैंसर के इलाज के लिए अभी न करें मेडिकल कॉलेज का रुख, जानिए क्‍या है कमी Meerut News
कैंसर के इलाज के लिए अभी न करें मेडिकल कॉलेज का रुख, जानिए क्‍या है कमी Meerut News

मेरठ, [संतोष शुक्ल]। 150 करोड़ की लागत से बने सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल में भी अगर कैंसर का इलाज न मिले तो सरकार की स्कीम का गरीबों का क्या फायदा? मेडिकल कालेज में रेडियोथेरपी के लिए नया चेंबर बनाने को लेकर एटॉमिक एनर्जी रेग्यूलेटरी बोर्ड ने अड़ंगा लगा दिया। विभाग में 16 साल से पड़ा पुराना रेडियोसोर्स डिस्पोज नहीं किया जा सका, जबकि रेडिएशन के खतरे से बचाने के लिए रूम की दीवार चौड़ी करनी होगी। इधर, कोई निर्माण व उपकरण आपूर्ति करने वाली एजेंसी बंकर बनाने को तैयार नहीं है।

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2016 से बंद है रेडियोथेरेपी
मेडिकल में 2016 में कैंसर रोग विभाग में रेडियोथेरेपी बंद कर दी गई। जहां रोजाना बड़ी संख्या में मरीजों की सिकाई की जाती थी। सुपरस्पेशिलिटी ब्लाक में कैंसर मरीजों की सिकाई के लिए लीनियर एक्सलरेटर लगाने की जमीन नहीं मिल पाई। उधर, प्रदेश सरकार ने कैंसर रोग विभाग में सिकाई शुरू करने के लिए नया कोबाल्ट-60 खरीदने के लिए भी 1.25 करोड़ रुपये का बजट दे दिया। दोनों मशीनों को एक ही विभाग में संचालित करने पर नियामक संस्था-एटॉमिक एनर्जी रेग्यूलेटरी बोर्ड तैयार नहीं हुआ। बता दें, कि रेडियोसोर्स से उत्सर्जित होने वाली हाई एनर्जी बीम शरीर को भारी नुकसान पहुंचाती हैं, इसीलिए रेडिएशन के चेंबर को मोटा बनाना पड़ता है।

पुराना रेडियोसोर्स भी बड़ी बाधा
मेडिकल में करीब 16 साल पहले सीजियम-137 मंगाया गया था। किंतु इसका कभी प्रयोग ही नहीं किया गया। एईआरबी की टीम पिछले साल निरीक्षण करने आई, और इसे र्डिस्पोज करने के लिए कहा। विकिरण सुरक्षा अधिकारी डा. एके तिवारी ने बताया कि नई मशीन लगाने से पहले सीजियम को हटाना होगा। पुराने कोबाल्ट-60 को हटाकर दूसरा सोर्स लोड करना होगा।

वेटिंग में दम तोड़ दिया मरीजों ने
मेडिकल कालेज में कैंसर मरीज की करीब 25 दिन तक सिकाई में सिर्फ दो हजार रुपए का खर्च आता था। किंतु प्राइवेट अस्पतालों में महंगी मशीनों से सिकाई का खर्च ज्यादा है। गत चार साल में बड़ी संख्या में मरीजों को एम्स रेफर किया गया, जहां लंबी वेटिंग में कई ने दम तोड़ दिया।

निर्माण एजेंसियां भी तैयार नहीं
सुपरस्पेशिलिटी ब्लाक का निर्माण केंद्रीय पब्लिक निर्माण विभाग ने किया, जबकि उपकरण एचएलएल ने खरीदा। किंतु कैंसर की सिकाई के लिए चेंबर बनाने को लेकर दोनों ही एजेंसियों ने हाथ खड़े कर दिए। रूम का नक्शा एईआरबी-एटॉमिक एनर्जी रेग्यूलेटरी बोर्ड से पास कराना होगा। इससे रेडियोथेरपी शुरू होने में लंबा वक्त लगेगा, और गरीब मरीज महंगी इलाज के बोझ में दबा रहेगा।

इनका कहना है
कैंसर मरीजों की सिकाई के लिए लीनियर एक्सलरेटर व कोबाल्ट-60 लगाने से पहले एईआरबी से परमीशन लेनी है, किंतु कई मानक पूरे नहीं हैं। सिकाई के लिए नया चेंबर बनाने के लिए निर्माण एजेंसी तय की जाएगी। दीवारों की मोटाई भी मानक के मुताबिक होगी।
- डा. आरसी गुप्ता, प्राचार्य, मेडिकल कालेज 


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