नंबरों की दौड़ में अवसरों को न करें अनदेखा
स्कूली शिक्षा में जारी नंबरों की दौड़ में कुछ बच्चे बहुत आगे तो कुछ बहुत पीछे रह जाते हैं।
जेएनएन, मेरठ : स्कूली शिक्षा में जारी नंबरों की दौड़ में कुछ बच्चे बहुत आगे तो कुछ बहुत पीछे रह जाते हैं। लेकिन अधिकतर छात्र-छात्राएं 65 से 80 फीसद अंक प्राप्त किए होते हैं, जो मध्य श्रेणी में आते हैं। ऐसे बच्चों को अच्छे कॉलेज की कटऑफ में न आना, प्रथम श्रेणी होने के बाद भी अव्वल दर्जे में न गिना जाना, टॉपर्स की लंबी कतार से बाहर रहना आदि सामाजिक व व्यक्तिगत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। पर ये बच्चे भी जीवन में कम कमाल नहीं करते। देश के तमाम उच्च पदों पर इस श्रेणी के बच्चों की अच्छी-खासी संख्या है। ऐसे बच्चों का मार्गदर्शन, प्रोत्साहन और उन्हें अनगिनत अवसरों को अनदेखा न करने को प्रेरित करने के लिए दैनिक जागरण ने गुरुवार को करियर काउंसिलिग व साइकोलॉजिकल काउंसिलिग के लिए वेबिनार का आयोजन किया। वेबिनार में क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डा. सीमा शर्मा और सीबीएसई काउंसलर डा. पूनम देवदत्त ने छात्रों का मार्गदर्शन किया। कम अंक वाला ही सही, मजबूत व्यक्तित्व बनें
डा. सीमा शर्मा ने कहा कि इम्तिहान और रिजल्ट जीवन के लिए नंबरों का खेल नहीं है। आप जीवन में संघर्षो का सामना कैसे करेंगे, यही सिखाया जाता है। पढ़ाई मजबूत व्यक्तित्व बनाने के लिए होती है। दाखिले में कटऑफ जरूर देखा जाता है। यहां खुद को रोककर स्वयं से कुछ सवाल जरूर करें। क्या आपने पूरी मेहनत से पढ़ाई की थी? क्या अपनी तैयारी के अनुसार आप अनुशासित रहे? क्यों मैं पहले से बेहतर छात्र बन सका हूं? खुद से पूछे इन सवालों के जवाब यदि आप स्वयं को हां में दे सके तो आप जीवन में कभी असफल नहीं होंगे। जवाब अगर न है तो फिर जो अंक मिले उसके साथ आगे बढि़ए और अपनी तैयारी पर ध्यान दीजिए। जूनियर कॉलेज होता है 11वीं-12वीं: डा. सीमा शर्मा
डा. सीमा शर्मा ने 10वीं उत्तीर्ण कर 11वीं में जाने वाले छात्रों को बताया कि 11वीं-12वीं को जूनियर कॉलेज कहा जाता है। 11वीं में पहुंचकर तौर-तरीके बदलने की जरूरत पड़ती है। स्ट्रीम बदलती है। विशेषज्ञता चुनना पढ़ाई को हल्का करना नहीं होता बल्कि आप जिस विषय में रुचि रखते हैं उसे पूरे विस्तार से पढ़ना होता है। जो लोग 11वीं में पठन-पाठन का तरीका नहीं बदलते वह पीछे रह जाते हैं। 11वीं के बाद पढ़ाई का मूल्यांकन इसी आधार पर होगा कि आपने जो भी विषय चुना है उसके साथ कितना न्याय कर सके। कई कॉलेजों में मेरिट से नहीं प्रवेश परीक्षा से होता है दाखिला
डा. पूनम देवदत्त ने कहा कि नंबरों की दौड़ हर जगह मायने नहीं रखती है। डीयू सहित देश के कुछ संस्थानों में मेरिट पर दाखिला जरूर होता है लेकिन ऐसे कई अच्छे संस्थान हैं जहां दाखिला बोर्ड परीक्षा के अंक पर नहीं बल्कि प्रवेश परीक्षा की मेरिट पर होता है। देश में 900 से अधिक विश्वविद्यालय और निजी शिक्षण संस्थान हैं। अधिकतर प्राइवेट हैं। बहुत से निजी कॉलेजों की सीटें खाली ही रह जाती हैं। इनमें फीस कुछ अधिक जरूर लगती है लेकिन कम अंक वालों के दाखिले भी होते हैं। आपका भविष्य व करियर आपकी मेहनत पर निर्भर करता है। टॉप कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों को भी स्वयं को साबित करना पड़ता है। नौकरी देने वाले अभ्यर्थी की ईमानदारी, लगन और कार्य विशेष में उसकी जानकारी परखते हैं। अंकों की दौड़ कृत्रिम तस्वीर की तरह होती है बस। प्रैक्टिकल नॉलेज वाले रास्ते भी हैं
डा. पूनम देवदत्त के अनुसार मेडिकल, इंजीनियरिग, आइआइटी, आइआइएम आदि व क्षेत्रों में आगे बढ़ने के लिए बहुत अधिक पढ़ना पड़ता है। हर बच्चे में पढ़ने व समझने का स्तर अलग होता है। अत्यधिक किताबी पढ़ाई की बजाय प्रैक्टिकल ज्ञान वाले स्किल कोर्स या वोकेशनल स्टडी में किताबी पढ़ाई कम होती है। इन क्षेत्रों में अपनी रुचि को विस्तार दे सकते हैं। इनमें डिजाइन, हॉस्पिटेलिटी, डायटिशियन, न्यूट्रिशन, फिटनेस, योग आदि ऐसे क्षेत्र हैं जहां प्रैक्टिकल नॉलेज जरूरी है। मेडिकल क्षेत्र में फर्म या उद्यमिता, स्टार्टअप आदि क्षेत्रों में आगे बढ़ने के अवसर मिल रहे हैं। छात्र-छात्राओं के सवाल-विशेषज्ञों के जवाब
-मैं कॉमर्स की स्टूडेंट हूं। हैकिग को फोकस कर पढ़ाई करना अच्छा है या नहीं? -वंशिका गोयल
-डा. पूनम देवदत्त : प्रोफेशन के तौर पर हैकिग में बहुत अधिक स्कोप नहीं है। सरकारी संस्थाओं, पुलिस के लिए एथिकल हैकिग जरूर कर सकते हैं। इसके अलावा हैकिग करना गैरकानूनी है। आप कॉमर्स की छात्रा हैं तो कॉमर्स में आपको अच्छे ऑप्शन मिल सकते हैं। हैकिंग के लिए कम्प्यूटर बैकग्राउंड चाहिए। -लॉकडाउन में ऑनलाइन क्लास में पढ़ाई ठीक से नहीं हो पा रही है। क्या करें? -आरुष शर्मा
- डा. पूनम देवदत्त: पढ़ाई करना बच्चों पर ही निर्भर है। यह सच है कि इस दौरान क्लास जैसी पढ़ाई नहीं हो पा रही है लेकिन ऑनलाइन क्लास में भी शिक्षक पूरी मेहनत कर रहे हैं। 11वीं-12वीं के बच्चे सेल्फ स्टडी पर अधिक फोकस करते हैं। टीचर जो भी ऑनलाइन पढ़ा रहे हैं उस पर सेल्फ स्टडी अधिक करें। अधिक समय तक मोबाइल या लैपटॉप से आंख दुखे तो शिक्षकों से बात करें और दो क्लास के बीच थोड़ा गैप लें। एंटी ग्लेयर ग्लास का इस्तेमाल करें।
-मैंने इंटीरियर डिजाइनिग का कोर्स लिया है। बहुत से लोग बोलते हैं कि पढ़ने में कमजोर होने के कारण ऐसा कोर्स लेते हैं?-अंशिका गोयल
-डा. पूनम देवदत्त : -जो लोग ऐसा बोलते हैं, वह इसलिए कि वह जानते ही नहीं है कि ह्यूमैनिटीज की डिमांड कितनी है। ऐसे लोगों की बातों से प्रभावित होने की कोई जरूरत नहीं है। खुद पर आत्मविश्वास रखो और आगे बढ़ते चलो। जो समझदार हैं वह समझते हैं। जो नासमझ हैं उनको समझाने से भी कोई फायदा नहीं है।
-क्या फार्मेसी बीएससी और एमएससी से बेहतर है? वेटनरी में क्या स्कोप है? -संभव तेवतिया
-डा. पूनम देवदत्त : कोर्स कोई भी अच्छा या बुरा नहीं होता है। बी-फार्म एक प्रोफेशनल कोर्स है। बीएससी के बाद एमएससी करना होता है। फार्मा करने के बाद फार्मा इंडस्ट्री में नौकरी मिल जाती है। आप अपनी रुचि और जरूरत के अनुरूप आगे बढ़ें। आने वाले पांच साल में आप स्वयं को किस सेक्टर में देखना चाहते हैं, उसी ओर बढ़ें। जिन लोगों को पशुओं से प्रेम है उनके लिए वेटनरी में बेहतरीन अवसर है। हमारे देश में दुनिया की सबसे विशाल कैटल इंडस्ट्री है। प्राइवेट प्रैक्टिस भी कर सकते हैं। -एक्चुरियल साइंस में क्या स्कोप है और कितना कठिन है? - नव्या अग्रवाल
-डा. पूनम देवदत्त: एक्चुरियल साइंस आसान कोर्स नहीं है। इसमें काफी पढ़ना पड़ता है और गहरी नॉलेज होनी चाहिए। इस कोर्स को बहुत कम बच्चे ही लेते हैं इसलिए प्रतिस्पर्धा भी अधिक नहीं है। इस क्षेत्र में आपकी रुचि है तो एक्चुरियल साइंस लेकर जरूर पढ़ाई कर सकती हैं। -मेडिकल क्षेत्र में पैथोलॉजी में अधिक स्कोप है या सर्जरी में? -अंशिका
- डा. पूनम देवदत्त: स्कोप दोनों में ही है। डिमांड और जरूरत भी दोनों ही तरह के विशेषज्ञों की है। विशेषज्ञता तक पहुंचने के लिए पहले आपको एमबीबीएस करना होगा। पसंदीदा विशेषज्ञता न भी मिले तो आप जो भी विशेषज्ञ बनेंगी उनकी मांग हमेशा रहेगी ही। -कॉमर्स के साथ जर्नलिज्म का कोर्स कर सकती हूं? -सुभांषी
-डा. पूनम देवदत्त: जर्नलिज्म के क्षेत्र में करेंट अफेयर्स की जानकारी और रुचि होनी चाहिए। जर्नलिज्म के बहुत सारे पहलू हैं। आप अपनी रुचि के अनुरूप टीवी, पेपर, मैगजीन, रेडियो आदि का विकल्प चुन सकती हैं। इस क्षेत्र में संभावनाएं हैं।
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-इस साल जो एग्जाम नहीं हुए उनका भी महत्व क्या पिछले सालों की तरह ही होगा? -प्रणव आत्रे
-डा. सीमा शर्मा: बिना परीक्षा के रिजल्ट जारी करने का निर्णय किसी एक स्कूल का नहीं बल्कि सीबीएसई जैसी संस्था और देश का निर्णय है। जब कोई निर्णय देश की संस्थाएं लेती हैं तो उसकी मान्यता हर जगह बराबर होती है। इसलिए यह बात मन से निकाल दें कि आपका रिजल्ट अन्य सालों के रिजल्ट से कम आंका जाएगा। सीबीएसई ने यह भी निर्णय लिया है कि शेष परीक्षा का पेपर यदि छात्र देना चाहते हैं तो बाद में दे सकते हैं और अपने अंक सुधार सकते हैं। -बच्चों के मन से विषयों या परीक्षा का डर कैसे निकालें? -प्रियंका अग्रवाल, कोआíडनेटर, गार्गी गर्ल्स स्कूल
-डा. सीर्मा शर्मा : बच्चों के मन में फेल होने, रिजेक्शन या लोग क्या कहेंगे आदि डर रहता है। उन्हें लगता है कि गणित में कमजोर हैं तो प्रतिशत खराब हो जाएगा। भविष्य खराब हो जाएगा। ऐसे बच्चों को यह समझाना चाहिए कि जीवन और पढ़ाई खेल के मैदान की तरह हैं। जिस तरह पूरी टीम साथ खेलकर जीतती है उसी तरह किसी मुश्किल में पड़ें तो शिक्षकों से जुड़ें। बच्चे अक्सर सवाल के जवाब में शिक्षकों के रिएक्शन से भी मन ही मन घबराते हैं और सवाल ही पूछने से बचने लगते हैं। ऐसे में उन्हें उचित माहौल देना शिक्षकों की जिम्मेदारी है जिससे वे खुलकर सवाल करें और जवाब से संतुष्ट होने पर उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा।