पंजीरी जैसे स्वाद में है डाइफ्रूट्स बर्फी
मेरठ जेएनएन। त्योहारों में बनने वाली मिठाई और व्यंजनों को स्वाद वैसे तो अपने आप में बेमिसाल
मेरठ, जेएनएन। त्योहारों में बनने वाली मिठाई और व्यंजनों को स्वाद वैसे तो अपने आप में बेमिसाल होता है, तभी तो लोग खासतौर पर त्योहारों पर बनने वाली मिठाईयों का सालभर इंतजार करते हैं। ऐसे मे जब बात भगवान कृष्ण के जन्म पर्व की हो तो मिठाई भी कुछ अलग और खास होने चाहिए जो कान्हा को पसंद आ जाए। सिर्फ जन्माष्टमी पर्व के दौरान मिलने वाली गोंद की लौंज स्वाद ऐसा है कि एक बार खाने के बाद इसका स्वाद भूल पाना आसान नहीं है। जो देखने में बिल्कुल बर्फी की तरह और स्वाद में पंजीरी की तरह है, यहीं कारण है स्वाद के शौकीन इसे खूब पसंद करते हैं और जन्माष्टमी के मौके पर इसकी बिक्री काफी बढ़ जाती है क्योंकि इस खास मिठाई को इन्हीं दिनों तैयार किया जाता है।
नारियल की परत में मेवों से भरी मिठाई
सदर बाजार स्थित प्रेम स्वीट के मालिक नीरज बताते हैं कि गोंद की लौंज को हर साल जन्माष्टमी पर्व पर ही तैयार किया जाता है, क्योंकि व्रत वाले दिन भगवान कृष्ण को इसका भोग भी लगाया जाता है। इसलिए इसे खासतौर पर देसी घी में तैयार किया जाता है। इसका स्वाद जितना लाजबाव है, इसे तैयार करना उतना ही आसान है। इसमें खाने वाला गोंद, बादाम, काजू, किशमिश, पिस्ता, चीनी और ढेर सारा नारियल होता है। सभी ड्राइफ्रूट्स को देसी घी में भूनकर नारियल और चीनी की गर्म चाशनी में मिक्स किया जाता है। इसके बाद इसे बर्फी के टुकडों में काटा जाता है। इसलिए देखने में यह बिल्कुल बर्फी की तरह और खाने में पंजीरी की तरह होते हैं, और काफी नरम होने के कारण यह मुंह में रखते ही घुल जाती है। इनकी कीमत 480 रुपये किला है। वृंदावन के बांके बिहारी का मेरठ में दर्शन
मेरठ: जन्माष्टमी पर अधिकांश लोगों की इच्छा होती है कि वह वृंदावन जाकर बांके बिहारी के मनोरम दृश्य का दर्शन करें, लेकिन मेरठ में भी एक मंदिर है। जिसमें राधा कृष्ण की मनोरम प्रतिमा बांके बिहारी जैसी है।
यह प्राचीन राधाकृष्ण मंदिर शारदा रोड पर है। जो करीब 300 वर्ष पुराना है। इस मंदिर में दुर्लभ राधाकृष्ण की प्रतिमा और उसके महत्व के विषय में बहुत कम लोगों को पता है। लेकिन, इतिहासकारों की नजर पड़ते ही इसके ऐतिहासिक महत्व का पता चलता है। कपाट बंद होने के बाद पुजारी मंदिर का ताला लगाकर रखते हैं। दरअसल, राधा कृष्ण मंदिर में श्रीकृष्ण की प्रतिमा काले कसौटी पत्थर की बनी है। जिसका पत्थर काफी कीमती है। मंदिर में राधा कृष्ण का विग्रह वृंदावन के बांके बिहारी की प्रतिमा की तरह है। बस इस प्रतिमा का आकार वृंदावन से छोटा है। मंदिर के पुजारी अशोक शर्मा बताते हैं कि पहले मंदिर हमेशा खुला रहता है। लेकिन कुछ साल पहले इतिहासकारों की एक टीम आई थीं, उन्होंने इस प्रतिमा के महत्व के विषय में बताया। तब से इन्हें और सुरक्षित किया गया। जन्माष्टमी के दिन राधा- कृष्ण को सजाया जाता है।
आक्रमण से बच गया मंदिर
एनएएस कॉलेज में इतिहास विभाग के प्रो. देवेश चंद्र शर्मा कहते हैं कि मंदिर में काले पत्थर में बनीं श्रीकृष्ण की प्रतिमा कहा से आई, इसके विषय में पता नहीं चलता, लेकिन जिस पत्थर से यह प्रतिमा तैयार हुई है। यह वहीं पत्थर है जिस पत्थर से बांके बिहारी की प्रतिमा बनी है। मेरठ और आसपास का क्षेत्र वैष्णव का है। ये प्रतिमाएं गुप्तकाल की बनी हैं। मुगलकाल के दौरान अधिकांश वैष्णव मंदिरों को क्षतिग्रस्त किया गया था। लेकिन इस मंदिर पर मुगल आक्रमणकारियों की नजर नहीं पड़ी। इससे यह सुरक्षित रहा।