COVID-19 Effect on Education: स्कूल बंद हुए, तो मेरठ के गलियों में घर-घर खुल गए कोचिंग सेंटर
लाकडाउन से अनलाक होने के क्रम में अभी भी स्कूलों को पूरी तरह से आजादी नहीं मिल सकी है। पिछले एक साल में स्कूल बंद रहने के दौरान शहर के तमाम गलियों में घर-घर में छोटे बच्चों के लिए कोचिंग शुरू हो गए हैं।
मेरठ, जेएनएन। लाकडाउन से अनलाक होने के क्रम में अभी भी स्कूलों को पूरी तरह से आजादी नहीं मिल सकी है। पिछले एक साल में स्कूल बंद रहने के दौरान शहर के तमाम गलियों में घर-घर में छोटे बच्चों के लिए कोचिंग शुरू हो गए हैं। जिसको जितने भी बच्चे मिले वह घर में पढ़ा रहे हैं। छोटे बच्चों की कोचिंग अधिकतर महिला शिक्षिकाएं ले रही हैं। वहीं बड़े बच्चों की कोचिंग क्लास महिला व पुरुष दोनों ही ले रहे हैं। बच्चों को भी एक घंटे से अधिक समय कोचिंग में पढ़ने को मिल रहा है। ऐसे में स्कूलों की आनलाइन पढ़ाई की कमियों को कोचिंग में पूरा कराया जा रहा है। एक तरह से स्कूल की पढ़ाई की कमियों को कोचिंग से पूरा किया जा रहा है।
लंबी कैद में बढ़ी कोचिंग की मांग
लंबे समय तक माता-पिता व परिवार के अन्य सदस्यों के साथ एक ही घर में कैद रहने के कारण बच्चों को घर में ही रोके रखना मुश्किल होने लगा। लाकडाउन में दो से तीन महीने ही पढ़ाने के बाद अभिभावकों का धैर्य भी छूटने लगा। बच्चों ने पढ़ने में आना-कानी शुरू की तो उन अभिभावकों ने भी कोचिंग की तलाश शुरू कर दी जो सामान्य स्कूल के दौरान बच्चों को कोचिंग नहीं भेज रहे थे। विशेष तौर पर छोटी कक्षा में स्वजन बच्चों को कोचिंग नहीं भेजना चाहते हैं। लेकिन लाकडाउन के दौरान यह चलन भी टूटते दिखा और स्वजनों ने बच्चों को घर से घंटे-दो घंटे के लिए कोचिंग भेजना शुरू कर दिया। यह क्रम अब तक जारी है।
जिनकी नौकरी गई, उन्होंने भी पढ़ाया
लाकडाउन के दौरान स्कूलों को फीस न मिलने और लगातार स्कूल बंद होने से कई शिक्षक संस्थानों में शिक्षकों की सेवा समाप्त कर दी गई। उन शिक्षकों ने भी घर के आस-पास बच्चों को पढ़ाना शुरू किया जिससे उनकी आजीविका भी चलती रहे। इसमें आस-पास के लोगों ने भी सामाजिक तौर पर ऐसे शिक्षकों के घर बच्चों को पढ़ने के लिए भेजा और इसी तरह सहयोग का हाथ भी बढ़ाया। इससे अभिभावकों के साथ ही उन शिक्षकों को भी राहत मिली।
चल पड़े कोचिंग क्लास भी
शहरी क्षेत्र के संपन्न बच्चों के लिए आनलाइन क्लास भी सहज थी। लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों के लिए आनलाइन क्लास भी नहीं थी। ऐसे में शहरों में जहां बड़े बच्चों के लिए कोचिंग सहारा बने वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में कई नए कोचिंग सेंटर खुल गए। इस पूरे सत्र में ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों ने स्कूल से दूर कोचिंग सेंटर्स में ही अपना सिलेबस पूरा किया। विशेष तौर पर 10वीं व 12वीं कक्षा के बच्चों ने अपनी बोर्ड परीक्षा की तैयारी कोचिंग में ही की जिससे परीक्षा में उनका प्रदर्शन खराब न हो। कुछ अतिरिक्त शुल्क लेकर कोचिंग संचालकों ने मौके का फायदा तो उठाया लेकिन छात्र-छात्राओं को उनकी पढ़ाई पूरी करने में मदद की।