संकटकाल में मरने के बाद भी नहीं मिल रही मुक्ति, ऐसे में मोक्ष दिलाने आगे आई यह कमेटी
श्मशान घाट में कोरोना संक्रमितों के दाह संस्कार के बाद फूल चुनने को भी कोई नहीं आ रहा था। एक-एक कर बेदियां भर गईं। सामान्य मृत्यु को प्राप्त लोगों को भी मोक्ष दिलाने में दिक्कत हो रही।
मेरठ, [रवि प्रकाश तिवारी]। श्रीगंगा मोटर कमेटी ने एक बार फिर साबित किया है कि धर्मार्थ सेवा में उसका कोई सानी नहीं। मेरठ के सामने कुछ दिनों से बड़ी विकट स्थिति पैदा हो रही थी। श्मशान घाट में कोरोना संक्रमितों के दाह संस्कार के बाद फूल चुनने को भी कोई नहीं आ रहा था। एक-एक कर बेदियां भर गईं। सामान्य मृत्यु को प्राप्त लोगों को भी मोक्ष दिलाने में दिक्कत होने लगी। श्मशान की स्थिति काबू से बाहर जाने लगी। ऐसे में एक बार फिर श्रीगंगा मोटर कमेटी स्वेच्छा से आगे आयी और इस समस्या के निराकरण का मार्ग बताया। अनुमति मांगी कि अगर उन्हें कानूनी रूप से मंजूरी मिल जाए तो वे दिवंगत कोरोना संक्रमितों की अस्थियां चुनवा कर रख देंगे ताकि उन्हें मुक्ति मिल सके और श्मशान घाट की व्यवस्था भी पटरी पर लौटे। प्रशासन को बैठे-बैठाए समाधान मिल गया तो उन्होंने भी तत्काल अनुमति दे दी।
महामारी की तस्वीर ने डराया
साल की शुरुआत में ही कोरोना को महामारी के तौर पर घोषित कर दिया गया था। पश्चिमी देशों की तस्वीरों ने भी महामारी शब्द को पुष्ट किया था, लेकिन मेरठ में महामारी की भयावह तस्वीर पिछले दिनों दिखी। सूरजकुंड श्मशान घाट पर जब दाह संस्कार के लिए तयशुदा चबूतरे कम पड़ गए और चिता नीचे जमीन पर सजाई जाने लगी। कहीं चिता जल रही थी तो कहीं जलने की तैयारी में, ..तो उसी में कुछ शव कतार में। भय इतना कि अपनों की अंतिम यात्र से लोगों ने निश्चित दूरी बनाए रखी। कहीं संक्रमित बेटी के संस्कार को दूर से ही देखते पिता तो कहीं शव को घिसटता देखते दूर खड़े स्वजनों की तस्वीरें एक ओर जहां उनकी मजबूरी को बयां कर रही थीं, वहीं महामारी की मार में रिश्तों की सरकती डोर को भी दर्शा रही थीं। यही तो महामारी है, महामारी का डर।
सहारनपुर से तो सीख लीजिए
कोरोना संक्रमण के नियंत्रण में स्थितियां मेरठ के हाथ से रेत की मानिंद फिसलती जा रही हैं। संक्रमितों की संख्या तो बढ़ ही रही है, मृतकों का आंकड़ा अब 56 हो गया है। इतनी बड़ी संख्या में मौतें मेरठ से ज्यादा केवल आगरा में हुईं। यह हालात तब हैं, जब मेरठ ने सहारनपुर से ज्यादा सख्ती की। लॉकडाउन लगाया, बाजार बंद रखे, उद्योगों को देर से खोला। लॉकडाउन के अंतिम दिन एक्टिव मरीजों की संख्या पर ही अगर दोनों शहरों को तौल लिया जाए तो प्रशासनिक दक्षता का प्रमाण मिल जाएगा। सहारनपुर में जहां चुनिंदा एक्टिव मरीज बढ़े, मेरठ में दोगुने हो गए। केस जब भी ज्यादा होते हैं, आला अफसर आंकड़ों की फाइल लेकर अपने पक्ष की बातें जबरिया गिनाने लगते हैं, लेकिन वे यह नहीं बताते कि सहारनपुर से हम पीछे कैसे छूटे, ..छूटे भी तो उनसे सीख कर सुधार क्यों नहीं करते?
एक सोच... और सेवा शुरू
बात 1908 की है। रामजी लाल शहर के अकेले व्यापारी थे, जिनकी दुकान पर अंतिम संस्कार से संबंधित सामान मिलते थे। उन दिनों उनके घर वैवाहिक कार्यक्रम था। उसी दिन उन्हीं के क्षेत्र के किसी विशेष व्यक्ति का निधन हो गया। ऐसे में शादी-ब्याह की तैयारियों वाले घर में लोग अंतिम संस्कार की सामग्री लेने पहुंच गए। रामजी लाल फेर में पड़ गए। घर की शादी देखूं या अंतिम संस्कार के सामान की व्यवस्था कराऊं। इसी असमंजस की स्थिति में उनके मन में एक विचार आया, समाज हित की सोच ने जन्म लिया कि क्यों न एक ऐसी धर्मार्थ सेवा शुरू की जाए जिससे किसी को किसी भी समय अंतिम संस्कार का सामान मिल जाए। उसे इधर-उधर भटकना ही न पड़े। यह सोच साकार भी हुई। श्रीगंगा मोटर कमेटी खड़ी की गई। यहां सभी धर्मो के अंतिम संस्कार का सामान उपलब्ध कराया जाता है।