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बात पते की : कोरोना तुम होली बाद आ जाते तो अच्‍छा होता Meerut News

होली पर्व पर कोरोना का डर साफ तौर पर दिख रहा है। लोगों को इस बात का मलाल है कि यह वायरस होली बाद आता तो होली का पर्व हम और हर्षोल्‍लास के साथ मनाते।

By Prem BhattEdited By: Published: Wed, 11 Mar 2020 04:49 PM (IST)Updated: Wed, 11 Mar 2020 04:49 PM (IST)
बात पते की : कोरोना तुम होली बाद आ जाते तो अच्‍छा होता Meerut News
बात पते की : कोरोना तुम होली बाद आ जाते तो अच्‍छा होता Meerut News

मेरठ, [अनुज शर्मा]। नेताजी कोरोना वायरस को कोसते नहीं थक रहे हैं। इस नामाकूल ने एन वक्त पर आकर उनकी होली का रंग उड़ा दिया है। साल भर में कुछ ही ऐसे मौके आते हैं जब नेताजी के घर जिला प्रशासन का निमंत्रण पहुंचता है। जिसकी वे सालभर प्रदर्शनी लगाकर अपनी नेतागिरी चमकाते हैं। कार्यक्रम होली और रंगो का होता है लेकिन नेताजी इतने खुश होते हैं कि वे इस एक घंटे के कार्यक्रम के लिए नये कपड़े सिलाते हैं। इस बार होली मिलन कार्यक्रम को सारी तैयारियां पूरी होने के बावजूद अचानक टाल दिया गया। डीएम साहब के एक फैसले ने जिले के 1500 छोटे-बड़े उभरते नेताओं के सपनों को कुचल डाला। खूब समझाया कि कार्यक्रम निरस्त करने की जरूरत नहीं है लेकिन अफसरों ने उनकी एक नहीं सुनी। अब ये सभी दिन रात बस यही कह रहे हैं कोरोना होली के बाद नहीं आ सकता था।

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फोन कॉल ने टाला कोरोना संकट

चीन के रास्ते दुनिया भर में फैल रहे कोराना वायरस ने मेरठ में भी लोगों की नींद उड़ा रखी है। मौत के खौफ में घिरी जनता भले ही तमाम सावधानियां बरत रही हो लेकिन उससे भी ज्यादा परेशान जिम्मेदार अफसर हैं। एक भी संक्रमित मरीज मिलने पर उनकी मुसीबत आना तय है। लिहाजा मंडल से लेकर जिलास्तर अधिकारी भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं कि मेरठ में कोई कोरोना का मरीज न बने। दो दिन पहले तीन बीमार लोग अस्पताल पहुंचे तो स्वास्थ्य महकमे से लेकर पुलिस और प्रशासन तक की नींद उड़ गई। जांच के लिए नमूने दिल्ली भेजे गए। जांच रिपोर्ट ने भी खासा इंतजार कराया। तीन दिन बाद रविवार रात में दिल्ली से आई फोन कॉल ने जैसे अफसरों को नया जीवन दे दिया। तीनों नमूनों में कोरोना वायरस की जांच निगेटिव बताई। जिसके बाद साहबलोग बेफिक्र होकर सो सके।

शुक्र है याद तो आए दंगाई

20 दिसंबर को मेरठ में भी जमकर हिंसा हुई। सीएए के विरोधियों ने आगजनी और तोडफ़ोड़ की। पुलिस रोकने पहुंची तो उसपर भी पत्थर, पेट्रोल बम, गोलियां बरसाई। पुलिस चौकी और वहां खड़े वाहनों को फूंक डाला। डिवाइडर तोड़कर पथराव किया। 30 रिक्रूट सिपाहियों को बंधक बनाकर जलाने का प्रयास किया। पुलिस ने 180 लोगों और 5000 अज्ञात के विरुद्ध कुल 24 मुकदमें दर्ज किये। सरकार का फरमान था कि सरकारी क्षति को दंगाईयों की संपत्ति नीलाम करके वसूला जाए। 218 दंगाईयों को नोटिस जारी हुए। 100 से ज्यादा लोगों के हथियारों के लाइसेंस निरस्त करने का निर्णय लिया गया। अफसर नोटिस देकर भूल गए। ढ़ाई महीने बाद सरकार ने रिपोर्ट मांगी तो नींद टूटी। उन्हें दंगाई याद आ गए, 51 के खिलाफ 28 लाख की वसूली का आदेश जारी कर दिया गया। लेकिन हथियारों के लाइसेंस के विरुद्ध कार्रवाई अभी भी अटकी है।

गांवों में बिछने लगी चुनावी बिसात

प्रधानजी के पांच साल पूरे होने वाले हैं। साथ ही नये चुनाव कराने की तैयारियां भी शुरू हो गई हैं। आयोग और सरकारी मशीनरी ने भले ही अपनी तैयारियां अभी फस्र्ट गियर में ही रखी हों लेकिन प्रधान बनने का सपना देखने वालों की तैयारियां टॉर गियर में हैं। प्रधानजी की कुर्सी हथियाने के लिए वे कोई भी मौका और राजनीतिक हथियार इस्तेमाल करने से नहीं चूक रहे हैं। इसमें भले ही पुराने प्रधानजी के अधूरे वादों को जनता को याद दिलाना हो अथवा प्रधानजी द्वारा कराये गए विकास कार्यों की पोल खोलना हो। इन कार्यों की शिकायत करके उनमें भ्रष्टाचार और धांधली के आरोप लगाए जा रहे हैं। जांच पर जोर देकर प्रधानजी के विरुद्ध कार्रवाई कराना लक्ष्य है। ताकि प्रधानजी फिर से चुनाव मैदान में उनके सामने उतरकर दावेदारी ही न कर सकें। तभी तो उनकी अपनी जीत का सपना साकार होगा। 


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