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Corona Warrior In Meerut: उम्र ज्यादा, संक्रमण तेज, सेप्टीसीमिया अलग से, फिर भी नहीं हारी हिम्मत

मेरठ में डा. रजत ने तमाम महामारियों के बारे में पढ़ा तो था लेकिन कोविड वार्ड में जो भयावह हालात दिख रहे थे उससे उनकी आंखें खुली रह गईं। कोरोना से लड़ रहे मरीजों में अंजाना खौफ था। लेकिन मरीज हिम्‍मत भी दिखा रहे हैं।

By Prem Dutt BhattEdited By: Published: Mon, 07 Jun 2021 09:00 AM (IST)Updated: Mon, 07 Jun 2021 09:00 AM (IST)
Corona Warrior In Meerut: उम्र ज्यादा, संक्रमण तेज, सेप्टीसीमिया अलग से, फिर भी नहीं हारी हिम्मत
मेरठ में मेडिकल कालेज में चिकित्सक ने बचाई वृद्धा की जान।

संतोष शुक्ला, मेरठ। कोरोना काल में जहां मरीजों और उनके स्वजन ने अपार तकलीफें सही हैं, वहीं कई चिकित्सक ऐसे भी हैं जिन्होंने मरीज को ठीक करने के लिए अपना सारा अनुभव झोंक दिया। ऐसे चिकित्सकों की कतार भी लंबी है, जिन्होंने मरीजों की सेवा के लिए अपने को परिवार से पूरी तरह दूर कर लिया। ऐसे ही एक चिकित्सक हैं रजत मिश्रा। इन दिनों एमडी मेडिसिन की पढ़ाई कर रहे हैं। 2010 बैच के एमबीबीएस डाक्टर रजत मिश्रा। दूसरी लहर के दौरान मई में कोरोना का प्रकोप जब पीक पर था, तब मेडिकल कालेज की आइसीयू में ड्यूटी करते हुए डा. रजत ने दर्जनों गंभीर मरीजों का इलाज किया।

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मरीजों में अंजाना खौफ

डा. रजत ने तमाम महामारियों के बारे में पढ़ा तो था, लेकिन कोविड वार्ड में जो भयावह हालात दिख रहे थे, उससे उनकी आंखें खुली रह गईं। कोरोना से लड़ रहे मरीजों में अंजाना खौफ था, और उनका आक्सीजन स्तर गिरता जा रहा था। ऐसे में बीते एक बरस से कोरोना के खिलाफ लड़ रहे डाक्टरों ने दूसरी लहर में भी पूरी हिम्मत से मोर्चा संभाला और सैकड़ों ऐसे मरीज ठीक किए, जिन्हें महामारी तकरीबन निगल चुकी थी।

आक्सीजन सेचुरेशन महज 58 फीसद था

कोविड वार्ड के अपने अनुभवों को साझा करते हुए डा. रजत बताते हैं कि, 20 अप्रैल को मेरठ अंतर्गत भोपाल विहार की रहने वाली माया यहां भर्ती की गईं। करीब 65 वर्षीय माया को डा. स्नेहलता वर्मा की देखरेख में भर्ती किया गया था। उनका इलाज शुरू किया गया लेकिन एक समय ऐसा आया जब मरीज के ब्लड में आक्सीजन सेचुरेशन महज 58 फीसद रह गया, ऊपर से उन्हें सेप्टीसीमिया भी था। इसके लिए उन्हें हाई एंटीबायोटिक दवाएं दी गईं, रेमडेसिविर भी चली। हालांकि बाइपैप पर रखने के बावजूद फेफड़े आक्सीजन का लोड नहीं ले पा रहे थे।

साइटोकाइन स्टार्म भी

इसी दौरान रक्त की जांच करवाई गई तो पता चला कि इंफ्लामेटरी मार्कर डी-डाइमर, सीआरपी, फॢटनन एवं आइएल-6 भी अत्यधिक बढ़े हुए थे। कोरोना संक्रमण से साइटोकाइन स्टार्म भी आ चुका था। आशय यह कि 65 वर्षीय वृद्धा की स्थिति अत्यंत नाजुक थी। बहरहाल, तमाम चुनौतियों के बीच डा. रजत और डा. फरमान के साथ सहयोगी टीम ने माया के पास तीन-तीन घंटे बैठकर उनकी स्थिति के उतार-चढ़ाव पर नजर रखी। सही समय पर दवा-इंजेक्शन के साथ ही आक्सीजन देने के फ्लो में भी निरंतर बदलाव किया गया।

स्थिति में अब सुधार

अंतत: स्थिति में धीरे-धीरे सुधार होने लगा। माया की कोरोना रिपोर्ट तो 20 दिन बाद निगेटिव हो गई, लेकिन दूसरी वजहों से उनकी स्थिति गंभीर बनी हुई थी। ऐसे में पोस्ट कोविड कांप्लिकेशन का इलाज शुरू किया गया। इससे स्थिति में अब सुधार होने लगा है। माया 20 अप्रैल को भर्ती हुई थीं और आज करीब 45 दिन बाद भी मेडिकल की मेडिसिन आइसीयू में उनका इलाज चल रहा है। हालांकि डाक्टर बताते हैं कि अब वह बिल्कुल ठीक हो चुकी हैं और जल्द ही अपने घर जाएंगी। जौनपुर के मूल निवासी डा. रजत मिश्रा की मां उनके साथ ही अस्पताल परिसर में रहती हैं। हालांकि मार्च से कोविड वार्ड में ड््यूटी शुरू होने के बाद डा. रजत घर नहीं गए। उन्हें गर्व है कि मरीजों की सेवा कर राष्ट्र के प्रति अपना धर्म निभा रहे हैं, लेकिन कसक भी है कि बस सौ कदम दूर रह रही मां की सेवा नहीं कर पा रहे।

हमारी सास को मिली दूसरी जिंदगी

मेडिकल में डेढ़ माह से भर्ती माया की पुत्रवधू शारदा, मेडिकल कालेज के ट्रामा सेंटर में ड्यूटी करती हैं। शारदा बताती हैं कि उनकी सास की तबीयत बेहद खराब थी। उम्र ज्यादा, संक्रमण काफी तेज, सेप्टीसीमिया अलग से। ऐसे में परिवार घबरा गया था। डाक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ ने पूरी गंभीरता से इलाज किया लेकिन वायरस का अटैक इतना तेज था कि ठीक होने के बाद भी उनको सांस लेने में तकलीफ बनी हुई है। अभी उन्हेंं डिस्चार्ज नहीं किया गया है, आक्सीजन थोड़ी देर के लिए हटाई जाती है ताकि खाना खा लें। डा. रजत का कहना है कि माया जल्द ही ठीक होकर घर जाएंगी। उनका और सभी का बहुत-बहुत आभार।


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