लॉकडाउन 3 में मेरठ में सबसे तेज दौड़ा कोरानावायरस, जानिए कैसे 300 के पार पहुंचा संक्रमितों का आंकड़ा
लॉकडाउन-3 के 14 दिन मेरठ के लिए काफी मुसीबतों भरे रहे। इस अवधि में जनपद में 141 नए कोरोना मरीजों के साथ संक्रमितों का आंकड़ा 300 के पार पहुंच गया।
मेरठ, जेएनएन। लॉकडाउन-3 के 14 दिन मेरठ के लिए काफी मुसीबतों भरे रहे। इस अवधि में जनपद में 141 नए कोरोना मरीजों के साथ संक्रमितों का आंकड़ा 300 के पार पहुंच गया। इस दौरान रिकार्ड 12 मौत भी हुईं। मौतों का कारण मेडिकल कॉलेज में इलाज में लापरवाही बताया गया है। इसे लेकर मेरठ को प्रदेशभर में बदनामी का दाग झेलना पड़ा। प्रदेश सरकार को वरिष्ठ प्रशासनिक, पुलिस अधिकारियों और चिकित्सकों की टीम यहां जांच और कार्रवाई के लिए भेजनी पड़ी। आखिरकार मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य के साथ तमाम जिम्मेदार लोगों को हटाया गया। हालांकि मौत का सिलसिला फिर भी नहीं रूका।
रोजाना मिले नए हॉटस्पॉट
लॉकडाउन-3 के 14 दिन में कोरोना संक्रमण पूरी तरह बेकाबू रहा। मंडी समिति से संक्रमण शहर और देहात क्षेत्र तक जा पहुंचा। कोई दिन ऐसा नहीं गया जिस दिन नया केस सामने न आया हो। अंतिम कई दिनों में तो संक्रमण के मामले काफी ज्यादा सामने आए। 15 मई को ही 26 नए केस मिले। नए मामलों के साथ कोरोना का जाल शहर और ग्रामीण इलाकों में फैलता चला गया। हर दिन नए हॉटस्पॉट बनाए गए। इस अविध में 35 से ज्यादा नए हॉटस्पॉट बने। सुधार के नाम पर मात्र 12 हॉटस्पॉट ही ग्रीन जोन में बदल सके।
12 मौत और 141 नए मरीज
लॉकडाइन-3 के 14 दिनों में मेरठ में सर्वाधिक मौतें हुईं। इस अवधि में 12 लोगों की मौत हो गई। कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या में 141 नए मरीजों का इजाफा हो गया। कोरोना मरीजों की संख्या बढ़कर 320 तक जा पहुंची। जबकि इस अवधि में ठीक होने वाले मरीजों की संख्या भी 60 रही।
मेडिकल के प्राचार्य हटाए
लॉकडाउन-3 की अवधि में मेडिकल कॉलेज ने मेरठ को प्रदेश भर में बदनाम करा दिया। मेडिकल कॉलेज के कोरोना वार्ड में भर्ती मरीजों ने वीडियो और ऑडियो वायरल करके आरोप लगाया कि वार्ड में मरीजों को देखने कोई चिकित्सक नहीं आता है। केवल सफाई कर्मचारी के हाथ से मरीजों की दवा रखवा दी जाती है। मरीजों को पौष्टिक खाने की बात तो दूर यहां समय से खाना तक नहीं मिल पाता है। वार्ड और शौचालयों में गंदगी फैली रहती है। बिना इलाज मरीजों की मौत हो रही है। मरे मरीजों को भी दो दिन तक वार्ड से नहीं हटाया जाता है। इन हालात में मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य समेत तमाम जिम्मेदार लोगों को पद से हटा दिया गया।
उठा जनता का विश्वास
कोरोना संकट में मेडिकल कॉलेज ने लोगों का विश्वास तोड़ दिया। यहां लंबे समय से दूर-दूर से मरीज इलाज के लिए आते हैं। लोगों को यहां के चिकित्सकों पर अटूट विश्वास था, लेकिन कोरोना मरीजों की एक-एक करके हुईं 12 मौत ने मेडिकल कॉलेज का विश्वास ही खत्म कर दिया। इसी दौरान मेरठ की मृत्यु दर प्रदेश में सर्वाधिक रही। स्वस्थ होने का औसत सबसे फिसड्डी रहा। लॉकडाउन में ही मेरठ पॉजिटिव केसों में प्रदेश में नंबर सात से नंबर दो पर पहुंच गया।
पहली बार आक्रामक रुख
14 दिन का क्वारंटाइन काटने के बाद भाजपा नेताओं और जनप्रतिनिधियों ने पहली बार आक्रामक रुख दिखाया। कमिश्नर, आइजी, डीएम, कप्तान से स्थिति को सुधारने को कहा। हालात न सुधरे और मुख्यमंत्री के निर्देश पर नोडल अधिकारियों की टीम भेजी गई तो सांसद-विधायक का गुस्सा फूट पड़ा। बैठक में उन्होंने मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य के साथ ही प्रशासनिक अधिकारियों पर भी कार्रवाई की मांग की। सबसे ज्यादा विधायक सोमेंद्र तोमर और दिनेश खटीक मुखर रहे। दिनेश खटीक ने तो सामुदायिक रसोई के रोजाना 78 हजार भोजन के पैकेटों के बगैर टेंडर काम सौंपने पर घेरा। सामुदायिक रसोई का मसला इस दौरान सुर्खियों में छाया रहा और आखिर लॉकडाउन के अंतिम दिन टेंडर कर नए ठेकेदार को जिम्मेदारी सौंपी।