मेरठ लिटरेरी फेस्टिवल में साहित्यकारों का संगम
आइआइएमटी विश्वविद्यालय में सोमवार को तीन दिवसीय मेरठ लिटरेरी फेस्टिवल का शुभारंभ हो गया।
मेरठ, जेएनएन: आइआइएमटी विश्वविद्यालय में सोमवार को तीन दिवसीय मेरठ लिटरेरी फेस्टिवल का शुभारंभ हो गया। फेस्टिवल के पहले दिन बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी महाराज, महामंडलेश्वर अपूर्णानंद व शांतिदूत डा. लोकेश मुनि ने साहित्यकारों, कवियों व विद्यार्थियों को संबोधित किया। इसके अलावा पुस्तक प्रदर्शनी, साहित्यिक परिचर्चा व कवि सम्मेलन का विशेष सत्र आयोजन किया गया। देश-विदेश के साहित्यकार व कवियों ने आयोजन में हिस्सा लिया। देश-विदेश के साहित्यकार सम्मानित
साहित्यिक महाकुंभ में देश-विदेश के कई साहित्यकारों को सम्मानित किया गया। तमिलनाड़ु के साहित्यकार डा. शेख अब्दुल वहाब, मेरठ से धर्मजीत सरल व गुजरात के विजय तिवारी को विभूषित किया गया। इनके अलावा मॉरिशस के डा. रामेदव धुरंधर, नेपाल की डा. श्वेता दीप्ति, कनाडा के सरन घई, बेल्जियम के कपिल कुमार, जापान की डा. रमा शर्मा, ब्रिटेन की जया वर्मा, नेपाल के सच्चिदानन्द मिश्रा व सुधाकर पाठक को भी साहित्यिक योगदान के लिए सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन डा. रामगोपाल भारतीय व सिम्मी गुरवारा ने किया। आइआइएमटी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति योगेश मोहन गुप्ता, प्रति कुलाधिपति अभिनव अग्रवाल ने सभी का स्वागत किया।
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अपने लेख से सदियों तक जीवित रहते हैं साहित्यकार : स्वामी अवधेशानंद
मुख्य अतिथि महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी ने भारतीय सनातनी सभ्यता पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सनातनी हिन्दू सभ्यता विश्व की प्राचीनतम व श्रेष्ठ सभ्यता है। वर्तमान में भारतीय योग, आयुर्वेद, भाषा, परिधान व संस्कृति का अनुकरण पश्चिम भी कर रहा है। पुस्तक व ग्रंथ चलते फिरते सूर्य की भांति हैं, जो चहुंओर प्रकाश फैलाते हैं। उन्होंने कहा कि लेखक, कवि व साहित्यकार अपने लेख से सदियों तक दिलों में 'जीवित' रहते हैं। पुस्तकों को समाधान का स्रोत बताते हुए ज्ञानार्जन को जीवन का पहला उद्देश्य बनाने के लिए कहा। आध्यात्मिक विकास न होना चिंता का विषय : लोकेश मुनि
शांतिदूत आचार्य जैन मुनि लोकेश मुनि ने कहा कि साहित्य जीवन को दिशा दिखाता है। भारतीय शिक्षण पद्धति बदल गई है, जिस कारण मेंटल व इमोशनल डवलपमेंट नहीं हो पा रहा है। भारतीय साहित्यकारों को आत्ममंथन करना चाहिए कि युवा भारतीय साहित्य को छोड़कर पश्चिमी सभ्यता की तरफ क्यों जा रहा है। इसी कारण उसका आध्यात्मिक विकास नहीं हो पा रहा है, जो चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि धर्म मूल्यों पर आधारित शिक्षा देता है। इसलिए धर्म की शिक्षा आवश्यक है।