बचे हुए मिड-डे-मील से पशु प्रोटीन बनाएंगे बाल वैज्ञानिक
राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस की अनोखी पहल, बच्चों को स्कूलों में बचे हुए मिड-डे मील से पशु प्रोटीन बनाने का टास्क दिया गया है।
By Taruna TayalEdited By: Published: Wed, 21 Nov 2018 12:33 PM (IST)Updated: Wed, 21 Nov 2018 12:33 PM (IST)
मेरठ (अमित तिवारी)। नई पीढ़ी को हर वस्तु का मोल समझाने और उनके सदुपयोग की सीख देने के मकसद से राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस ने अनोखी पहल की है। बच्चों को स्कूलों में बचे हुए मिड-डे मील से पशु प्रोटीन बनाने का टास्क दिया गया है। इससे जहां बच्चे खाद्य सामग्री का महत्व समझेंगे, वहीं नष्ट हो रहे भोजन से पशुओं का भरण-पोषण भी हो सकेगा। इस साल के राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस के विषयों में 'अपशिष्ट पदार्थो से धनोपार्जन के अंतर्गत 'पशु प्रोटीन के लिए बचे हुए मिड-डे मील का रूपांतरण बिंदु को शोध में शामिल किया है।
भारी मात्रा में बनता है मिड-डे मील
बेसिक शिक्षा परिषद के अंतर्गत कक्षा एक से आठवीं तक और माध्यमिक स्कूलों में आठवीं तक के बच्चों को मिड डे मील दिया जाता है। जिले में इस सत्र में 910 प्राइमरी, 432 उच्च प्राइमरी, 55 सहायता प्राप्त स्कूल और 250 माध्यमिक स्कूलों में आठवीं तक कुल 1,79,893 बच्चे पढ़ रहे हैं।
वैज्ञानिक सोच विकसित करने का मकसद
बच्चों में वैज्ञानिक सोच विकसित करने के उद्देश्य से कार्बनिक सामग्री से खाद बनाने, घरेलू कीटों के लिए जैविक छिड़काव, ई-अपशिष्ट का योग्य प्रबंधन आदि पर शोध के जरिए इनके इस्तेमाल पर जोर दिया जा रहा है।
शामिल किए महत्वपूर्ण विषय
राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस में सत्र 2018-19 का मुख्य विषय 'स्वच्छ, हरित और स्वस्थ राष्ट्र के लिए तकनीक और नवाचार है। इसके पांच उपविषय (पारिस्थितिकी एवं पारिस्थितिकीय सेवाएं, स्वास्थ्य, सफाई और स्वच्छता, अपशिष्ट पदार्थों से धनोपार्जन, समाज, संस्कृति और आजीविका व पारंपरिक ज्ञान प्रणाली) हैं।
इन्होंने कहा--
ग्रामीण क्षेत्रों में बची हुई खाद्य सामग्री को पशुओं को खिलाने की परंपरा रही है। यहां उसी पद्धति को और विकसित कर खाद्य सामग्री को नुकसान होने से बचाने की दिशा में शोध करने को प्रेरित किया जा रहा है।
-दीपक शर्मा, जिला समन्वयक, जिला विज्ञान क्लब
भारी मात्रा में बनता है मिड-डे मील
बेसिक शिक्षा परिषद के अंतर्गत कक्षा एक से आठवीं तक और माध्यमिक स्कूलों में आठवीं तक के बच्चों को मिड डे मील दिया जाता है। जिले में इस सत्र में 910 प्राइमरी, 432 उच्च प्राइमरी, 55 सहायता प्राप्त स्कूल और 250 माध्यमिक स्कूलों में आठवीं तक कुल 1,79,893 बच्चे पढ़ रहे हैं।
वैज्ञानिक सोच विकसित करने का मकसद
बच्चों में वैज्ञानिक सोच विकसित करने के उद्देश्य से कार्बनिक सामग्री से खाद बनाने, घरेलू कीटों के लिए जैविक छिड़काव, ई-अपशिष्ट का योग्य प्रबंधन आदि पर शोध के जरिए इनके इस्तेमाल पर जोर दिया जा रहा है।
शामिल किए महत्वपूर्ण विषय
राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस में सत्र 2018-19 का मुख्य विषय 'स्वच्छ, हरित और स्वस्थ राष्ट्र के लिए तकनीक और नवाचार है। इसके पांच उपविषय (पारिस्थितिकी एवं पारिस्थितिकीय सेवाएं, स्वास्थ्य, सफाई और स्वच्छता, अपशिष्ट पदार्थों से धनोपार्जन, समाज, संस्कृति और आजीविका व पारंपरिक ज्ञान प्रणाली) हैं।
इन्होंने कहा--
ग्रामीण क्षेत्रों में बची हुई खाद्य सामग्री को पशुओं को खिलाने की परंपरा रही है। यहां उसी पद्धति को और विकसित कर खाद्य सामग्री को नुकसान होने से बचाने की दिशा में शोध करने को प्रेरित किया जा रहा है।
-दीपक शर्मा, जिला समन्वयक, जिला विज्ञान क्लब
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