बात पते की : मुख्यमंत्री जी आप मेरठ आते तो कुछ और बात होती Meerut News
मुख्यमंत्री जी आपने हस्तिनापुर आने और यहां रातभर ठहरने का वादा किया और तोड़ दिया। आप पास से ही वापस लौट गए। जनता हो या अधिकारी हर किसी को आपके आगमन का इंतजार था।
अनुज शर्मा। मुख्यमंत्री जी, आपने हस्तिनापुर आने और यहां रातभर ठहरने का वादा किया और तोड़ दिया। आप पास से ही वापस लौट गए। जनता हो या अधिकारी हर किसी को आपके आगमन का इंतजार था। मन में आशाओं के अंबार लगे थे। हस्तिनापुर की जनता तो यहां तक मानकर बैठी थी कि संत के पांव इस धरती पर पड़ेंगे तो हस्तिनापुर पर लगे द्रोपदी के श्रप का भी असर कम होगा। हस्तिनापुर फलने फूलने लगेगा। आम तौर पर मुख्यमंत्री के आगमन से अधिकारी वर्ग थोड़ा हैरान परेशान रहता है लेकिन आज यहां भी ऐसा कुछ नहीं था। अधिकारी चाहते थे कि आप यहां जरूर आएं। उन्होंने भी तैयारी कर रखी थी। हस्तिनापुर के पर्यटन को बढ़ाने की कई योजनाएं तैयार थी। गंगा गांवों में भी तमाम कार्य कराने की अनुमति लेनी थी। 220 हेक्टेयर में बायो डायवर्सिटी पार्क बनाने के लिए आपकी मदद की जरूरत थी। आप आते तो अच्छा होता।
बिन मांगे पूरी हुई मुराद
हस्तिनापुर क्षेत्र के गांव अभी तक विकास से छूटे थे। जनता आरोप लगाती है कि यह जनपद का अंतिम छोर है लिहाजा कोई इसकी फिक्र नहीं करता। खंड़जों की मरम्मत, स्कूलों की चाहरदीवारी का निर्माण, स्कूलों में पेंट समेत छोटे छोटे कामों के लिए खूब धक्के खाने पड़ते हैं। काम फिर भी नहीं हो पाते। जैसे ही मुख्यमंत्री ने गंगा यात्र निकालने और हस्तिनापुर में रात्रि विश्रम की घोषणा की वैसे ही इस इलाके के सितारे चमक उठे। रात दिन अधिकारी गांवों में घूमने ठहरने लगे। स्कूलों की जिन दीवारों पर पेंट कराने के लिए मिन्नतें करके थक गए थे वे आज बिन मांगे चमक उठी। गांवों की गंदगी गायब हो गई। सड़कों में गड्ढे तलाशने से भी नहीं मिल रहे हैं। गंगा किनारे बसे और गंगा यात्र के रास्ते में पड़ने वाले गांवों की सूरत अब बदल गई है। वास्तव में इसे कहते हैं बिन मांगे मुराद पूरी होना।
कानून की भाषा समझेगा ठेकेदार
छावनी परिषद ने आमदनी बढ़ाने को तीन नए स्थानों पर प्रवेश शुल्क वसूलने का ठेका दिया। ठेकेदार से अनुबंध किया। चूंकि ये तीनों सड़कें छावनी की नहीं थी लिहाजा वसूली शुरू होते ही हंगामा मच गया। जिला प्रशासन ने हस्तक्षेप किया। सभी साथ बैठे तय हुआ कि टोल वसूली बंद होगी। वसूली बंद करा दी लेकिन लेकिन अनुबंध निरस्त नहीं किया। ठेकेदार कोर्ट चला गया। स्थगनादेश लाया और फिर से वसूली शुरू कर दी। हंगामा मचा। फिर बैठक हुई और फिर से वसूली बंद हुई। इस बार ठेकेदार ने अवमानना का दावा किया। कोर्ट में अफसरों को माफी तक मांगनी पड़ी। इतना सबकुछ होने का कारण ठेकेदार पर छावनी की मेहरबानी रहा। उसके साथ कानून की भाषा में बात नहीं की। इसी मेहरबानी पर छावनी अफसर कठघरे में हैं। इतना तो जनता भी जानती है कि ठेकेदार छावनी परिषद का कमाऊ पूत है। रोजाना 4.27 लाख रुपये का मामला है।
ये दो चेहरे वाला कानून
सपा, बसपा हो या फिर कांग्रेस समेत कोई भी विपक्षी दल, सभी के नेता और पदाधिकारी आजकल धारा 144 से त्रस्त हैं। उनका कहना है कि यह कानून आजकल दो चेहरों के साथ काम कर रहा है। सरकार के दल वाले लोग बड़े से बड़ा कार्यक्रम कर लें उनके रास्ते में कानून नहीं आता। उल्टे उनका साथ देता है। वहीं विपक्षी दल कोई कार्यक्रम, विरोध प्रदर्शन आदि करना चाहे तो यह कानून उनके रास्ते में बाधा बनकर खड़ा हो जाता है। वे कुछ नहीं कर पा रहे हैं। उनका राजनीतिक करिअर तक खतरे में आ गया है। मुसीबत यह है कि उनकी एक नहीं सुनी जा रही है। आखिरकार धारा 144 के पीड़ित सभी विपक्षियों को एक मंच पर आना पड़ा। भले ही एक दूसरे को वे फूटी आंख न सुहाते हों लेकिन धारा 144 के विरोध ने उन्हें एक साथ चार घंटे बैठकर धरना देने पर मजबूर कर दिया।