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भीख मांगना अब उनका पेशा नहीं रहा और स्कूल भी जाने लगे झुग्गी के बच्चे Meerut News

मेरठ शास्त्री नगर के पास झुग्गी-झोपड़ी के बच्‍चों को श्रुति रस्तोगी निश्शुल्क पढ़ाती हैं। उनकी पाठशाला में अब 55 बच्चे हो गए हैं।

By Taruna TayalEdited By: Published: Mon, 13 Jan 2020 01:29 PM (IST)Updated: Mon, 13 Jan 2020 01:29 PM (IST)
भीख मांगना अब उनका पेशा नहीं रहा और स्कूल भी जाने लगे झुग्गी के बच्चे Meerut News

मेरठ, [प्रदीप द्विवेदी]। भीख मांगते बच्चों को देखकर श्रुति ने पूछा ‘अगर मैं आपकी बस्ती में आकर पढ़ाना शुरू करूं तो क्या आप लोग पढ़ोगे?’ बच्चों ने सकुचाते-मुस्कराते हुए ‘हां’ में सिर हिला दिया। उसके बाद वह रंगोली मंडप के निकट मलिन बस्ती में बच्चों को पढ़ाने जाने लगीं। शुरुआत में कक्षा में 6-8 बच्चे ही आते थे, लेकिन अब यह संख्या 55-60 हो गई है। सफलता का पैमाना यह है कि इनकी बदौलत अब बच्चे स्कूल जाने लगे हैं। भीख मांगना अब उनका पेशा नहीं रहा।

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बच्चों की जिंदगी बदलने के लिए खुद को बदलना पड़ा

26 साल की लड़की के लिए यह सब आसान न था। शास्त्रीनगर निवासी कारोबारी पिता ने जिन अरमानों के साथ बेटी को स्नातकोत्तर कराया। होटल मैनेजमेंट में डिप्लोमा कराया। सही समय पर एक कॉलेज में पढ़ाने भी लगी लेकिन जैसे ही श्रुति ने अपने आपको समाजसेवा के लिए मोड़ा घर से लेकर रिश्तेदारी तक में आलोचना शुरू हो गई। काउंसिलिंग की जाने लगी लेकिन श्रुति ने भीख मांगते बच्चों के प्रति जो करुणा भाव दिखाया था वह उनके दिलो-दिमाग पर छा गया था।

दिलो-दिमाग पर छाया करुणा भाव

जब माता-पिता को यकीन हो गया कि श्रुति ने ठान ली है तो उनके मन को परिवार का बल मिला। उस मनोबल से ‘श्रुति की पाठशाला’ नाम से उनकी कक्षाएं नियमित रूप से निश्शुल्क शुरू हो गईं। कुछ समय बाद कॉलेज की नौकरी छूट गई। समाज सेवा में मन लगता चला गया। बहरहाल, अपनी पढ़ाई-लिखाई का उपयोग करने व पॉकेट मनी के लिए स्कूलों के बच्चों को ट्यूशन देनी लगीं। श्रुति कहती हैं वे ऐसे निराश्रित परिवारों के बच्चों को स्कूल पहुंचाकर सुकून महसूस करती हैं। अब यही उनका कैरियर है और यही उनका लक्ष्य।

नशा-जुए की लत व अभाव की सुलझाईं चुनौती

भीख मांगते, कबाड़ बीनते बच्चे ऐसे लोगों के संपर्क में आ गए थे जो नशा करते थे। जुआ खेलते थे। श्रुति ने बच्चों को इससे दूर रहने और पढ़ने के लिए आने को मनाने की कोशिश की। बच्चे मुकर गए तो कुछ अन्य संस्थाओं की मदद ली। उस काउंसिलिंग के बाद बच्चों ने नशा छोड़ा और पढ़ने आने लगे। कुछ समय बाद चुनौती आई संसाधनों का अभाव। बच्चों के पास न स्टेशनरी थी न ही बिजली जाने के बाद कोई रोशनी का इंतजाम। पैसा था नहीं जिससे परिवार के लोग खरीद सकें। इसके लिए फिर श्रुति ने संस्थाओं से संपर्क किया। जिससे स्टेशनरी मिली और पढ़ने के लिए बैटरी चालित लालटेन भी। 


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