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टेंट-साउंड कारोबार का बजा बैंड, कोरोना से सबकुछ ठप

लंबे समय से टेंट हाउस व साउंड सर्विस से जुड़े कारोबारियों को विधानसभा 2022 चु

By JagranEdited By: Published: Mon, 17 Jan 2022 06:15 AM (IST)Updated: Mon, 17 Jan 2022 06:15 AM (IST)
टेंट-साउंड कारोबार का बजा बैंड, कोरोना से सबकुछ ठप
टेंट-साउंड कारोबार का बजा बैंड, कोरोना से सबकुछ ठप

मेरठ,जेएनएन। लंबे समय से टेंट हाउस व साउंड सर्विस से जुड़े कारोबारियों को विधानसभा 2022 चुनाव का इंतजार था। उन्हें उम्मीद थी कि दो साल में मिले कोरोना के झटके से चुनावी सीजन में उबर सकेंगे। चुनावी रैलियों में टेंट, कुर्सियां, एलईडी स्क्रीन, साउंड सिस्टम, जनरेटर से लेकर अन्य सामग्री उपलब्ध कराने की तैयारियां भी कर लीं थीं। लेकिन कोरोना महामारी ने उनकी तैयारियों पर पानी फेर दिया। पहले 15 जनवरी तक और अब 22 जनवरी तक चुनावी रैलियों पर पाबंदी से कारोबार को तगड़ा झटका लगा है। इससे कारोबारियों में मायूसी छाई हुई है।

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टेंट हाउस के कारोबार से जुड़े अरुण सिघल ने कहा कि विधानसभा चुनाव में कम से कम 12 से 15 रैलियां मिल जाती थीं। एक चुनावी सीजन में खर्चे निकालकर औसतन 8 से 10 लाख रुपये का काम कर लेते थे। आज की तारीख में कोई मांग नहीं है। चार जनवरी से पहले छोट-छोटे राजनीतिक दलों के तीन कार्यक्रम मिले थे। इसके बाद चुनावी रैलियों पर पाबंदी लग गई। यह अब 22 जनवरी तक बढ़ गई है। कोरोना के लाकडाउन के बाद अब चुनावी सीजन भी हाथ से गया। साउंड सर्विस के कारोबार से जुड़े शिवशंकर भारद्वाज ने कहा कि जनवरी के प्रथम सप्ताह में देवबंद में अंतिम कार्यक्रम किया था। वह सरकारी आयोजन था। इसके बाद से राजनीतिक दलों की रैलियां बंद हैं। साउंड सिस्टम गोदाम में रखे हुए हैं और इस काम से जुड़े श्रमिक घरों में बैठने को मजबूर हैं। साउंड सिस्टम और जनरेटर लगाने की मांग चुनावी रैलियों में जमकर होती है। एक चुनावी सीजन में एक कारोबारी श्रमिक और अन्य खर्चे निकालकर कम से कम दो से तीन लाख रुपये कमा लेता है। लेकिन इस बार मायूसी हाथ लग रही है। कारोबार ठप होने से घर बैठ गए सैकड़ों लोग

चुनावी रैलियों में गेट, मंच, कुर्सियां, वीआइपी सोफे, बैरिकेडिग, एलईडी स्क्रीन, साउंड सिस्टम, जनरेटर आदि की व्यवस्था करनी होती है। दो से तीन महीने का यह सीजन होता है। शहर में बड़ी संख्या में ऐसे कारोबारी हैं जो रैलियों की सामग्री मुहैया कराते हैं। सारी व्यवस्था ही अपने हाथ में लेते हैं। रैलियों में टेंट सजाने, कुर्सियां डालने से लेकर साउंड सिस्टम लगाने और व्यवस्था की देखरेख के लिए सैकड़ों लोग रोजगार भी पाते हैं। लेकिन इस बार चुनावी रैलियों पर पाबंदी से सबकुछ ठप है। इससे वे लोग घरों में बैठ गए हैं।


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