अयोध्या::: सुनहरी धूप के बीच क्रांति शहर ने किया फैसले का इस्तकबाल
क्रांति शहर मेरठ ने अपनी सदियों पुरानी गंगा-जमुनी तहजीब से एक बार फिर सभी का दिल जीत लिया।
मेरठ, जेएनएन। क्रांति शहर मेरठ ने अपनी सदियों पुरानी गंगा-जमुनी तहजीब से एक बार फिर सभी का दिल जीत लिया। सुनहरी धूप के बीच चाय की चुस्कियों के साथ उच्चतम न्यायालय के फैसले का जिस शांति और भाईचारे से स्वागत किया गया, वह काबिले तारीफ था। यह सदभाव व परिपक्वता इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई। शहर में सब सामान्य रहा। यह फैसले का सुकून ही था कि आखिर दशकों बाद एक बड़े विवाद का अंत जो हुआ था। पुलिस की गश्त और फोर्स की तैनाती तो यह बताती रही कि सुरक्षा और शाति से समझौता नहीं होगा, लेकिन शहरवासियो ने किसी तरह का गलत संदेश छोड़ा ही नहीं।
शनिवार की सुबह और उसके बाद पूरा दिन, अन्य दिनों की तरह ही उसी चहल-पहल के साथ जिंदगी जीने के मकसद की ओर बढ़ रहा था। सुबह नींद से जागी जनता अपने काम में जुट गई थी। एहतियातन स्कूल कॉलेज तो बंद थे, लेकिन छोटी-बड़ी सड़कें यह बता रही थीं कि सब कुछ सामान्य है।
रोजमर्रा की तरह रमजान मिया प्लास्टिक की बोतल और अन्य सामान बेचने का ठेला लेकर निकले तो वहीं राममेहर अपनी चाट की साइकिल लेकर हापुड़ अड्डा चौराहा से बिंदास आवाज देते हुए 10 रुपये में चाट बेचने निकल पड़े। पुलिस अधिकारी टीम के साथ अतिसंवेदनशील क्षेत्रों में गश्त करते हुए और मजिस्ट्रेट अपनी टीम के साथ जायजा लेते दिखे। चौराहों व नुक्कड़ों पर स्थित चाय की दुकानों पर उसी तरह की भीड़ नजर आई जैसे अन्य दिनों में होती है। किसी को सुरक्षा से कोई शिकायत नहीं थी। कोई और भाव नहीं था इसलिए स्कूटी पर युवतियां भी यहा-वहा निकल रही थीं तो बच्चे भी अपनी साइकिल से दौड़ लगा रहे थे।
राजेश हमेशा की तरह आज फिर सुबह अल्ताफ की चाय की दुकान पर पहुंचे थे, जो हापुड़ अड्डा चौराहे के पास काफी जानी-पहचानी है। चर्चा चली कि फैसला जो भी आए सबको मानना है। मानना भी चाहिए, आखिर कब तक यूं ही आपस में झगड़ते रहेंगे। शहर की पहचान घटाघर उस घड़ी को शाति और सौहार्द के रूप में लिखने में कामयाब रहा, जैसी उससे उम्मीद थी। यहा चाय और जूस की दुकानें पहले की तरह ही खुली थीं। द्वितीय शनिवार का अवकाश होने होने के कारण नगर निगम का कार्यालय बंद था, इसलिए आदतन उस तरफ जाने वाले लोग घटाघर के पास ही चाय की दुकानों पर जमा रहे और न्यूज चैनलों से आ रही आवाजों को गंभीरता से सुनते रहे। यहां भी सबका एक ही बयान कि फैसला अच्छा आया। कपड़ों की तह बनाने
में मगन रहे सिराजू
जेल चुंगी रोड पर जेपी हॉस्पिटल के सामने साकेत कॉलोनी के बाहर सिराजू हमेशा की तरह सुबह अपनी दुकान पर कपड़ों को प्रेस करने और उनकी तह बनाने में मशगूल दिखे। बोले, फैसला मंदिर-मस्जिद को लेकर है, लेकिन कपड़ा प्रेस करना उनकी रोजी है। फैसला जो आएगा, वह माना जाएगा। रोजी-रोटी के लिए वह 15 साल से उस कॉलोनी के बाहर रोजाना दुकान सजा देते हैं, इसलिए उनके पास न फैसला सुनने केलिए टीवी के पास बैठने का वक्त है और न ही बार-बार फोन पर अपडेट लेने की कोई फिक्र। घर अपनों से मिलकर ही चलता है, इसलिए वह अपनी जिंदगी में खुश हैं। गढ़ मेले से आते लोगों में
नजर आया भक्ति भाव
फैसला आया जिसे सभी ने सुना। उधर, मखदूमपुर मेले से लोग ट्रैक्टर-ट्रॉली से वापस लौटते हुए पूरे भक्ति भाव में नजर आए। गंगा स्नान करने के बाद तेज संगीत के साथ ट्रॉली पर बैठे लोग थिरकते दिखे। गंगा भक्ति शहर पहुंचने तक उनके चेहरों पर ज्यों की त्यों बनी हुई थी। हर ट्रैक्टर पर बड़े स्पीकर सेट लगे थे। घर में ढोल बज रहा था, चल रहा था गीत-संगीत का कार्यक्रम भी
साकेत में शुक्रवार रात एक घर में शादी थी। सुबह वहा गीत-संगीत का कार्यक्रम चला। ढोल बजे और गीत गाए गए। दोपहर के समय ही दिल्ली रोड पर ईदगाह के सामने के मोहल्ले से एक दूल्हा निकाह के बाद अपनी दुल्हन को लिए जा रहा था। घर के लोग विदाई में व्यस्त थे तो युवा उनका सामान गाड़ियों में सजाने में। कॉलोनियों में काम चला
मजदूरों को काम मिला
प्रशासन अयोध्या प्रकरण को लेकर व्यस्त था। एमडीए को भी यहा-वहा जिम्मेदारी मिली हुई थी। कोई देखने सुनने वाला नहीं बचा था तो कॉलोनियों में अवैध निर्माणों की बाढ़-सी आ गई। जो मजदूर रोजाना काम की तलाश में चौराहों पर खड़े हो जाते थे, उन्हें यहा काम मिल गया था। उनकी दिन की मजदूरी पूरी हो गई और बिल्डरों का धड़ाधड़ काम निपट गया।
..बस, ऐसे ही गुजरा शनिवार, बिल्कुल पिछले शनिवार की ही तरह। एकदम सामान्य, एकदम आम।