45 डिग्री पारे में भी किसान की जेब भरेगा पहाड़ी क्षेत्रों में उगने वाला ‘अन्ना’
पहाड़ी क्षेत्रों में उगने वाला खास प्रजाति का सेब मैदानी इलाकों में भी बोया जा सकेगा। यह किसानों के लिए नियमित आमदनी का जरिया बन सकेगा।
By Ashu SinghEdited By: Published: Tue, 05 Feb 2019 02:27 PM (IST)Updated: Tue, 05 Feb 2019 02:27 PM (IST)
मेरठ, [जागरण स्पेशल]। अब किसान मैदानी क्षेत्रों में भी सेब की खेती करके अच्छी-खासी कमाई कर सकेंगे। मेरठ के भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान (आइआइएफएसआर) ने पहाड़ी क्षेत्रों में उगने वाले सेब की ‘अन्ना’ प्रजाति को 45 डिग्री तापमान पर भी उगाने में सफलता हासिल की थी। जल्द ही इसके पौधों की व्यवसायिक बिक्री शुरू होगी। इससे पारंपरिक फसलों से छुटकारा पाने के साथ किसानों को आमदनी का भी नया जरिया मिल सकेगा। सोमवार को इसकी खेती का प्रशिक्षण देने के लिए मोदीपुरम के आइआइएफएसआर में कार्यशाला हुई, जिसमें देशभर से 25 किसानों ने हिस्सा लिया।
सफलतम प्रजाति है
वर्कशॉप की शुरुआत संस्थान के कार्यकारी निदेशक प्रेम सिंह ने की। प्रधान फल वैज्ञानिक डॉ. दुष्यंत मिश्र ने कहा कि मार्च-2014 में पहली बार सेब की कई प्रजातियों को ज्यादा तापमान में विकसित करने की पहल की गई थी। इसमें तीन प्रजातियों अन्ना, डारसेट गोल्डन और माइकल पर काम शुरू हुआ। तीन साल के अनुसंधान के बाद ‘अन्ना’ ही सफलतम प्रजाति रही। कार्यशाला के बाद किसानों को प्रमाण-पत्र भी दिए गए।
एक बार खर्च, सालों तक आमदनी
‘अन्ना’ सेब का बाग लगाने पर शुरू के तीन साल ज्यादा खर्च होता है। इसके बाद आमदनी होने लगती है। रोपने के सालभर बाद ही फरवरी में पौधे फूल देना शुरू कर देते हैं। अन्ना को स्वयंबांझ (सेल्फ स्ट्राइल) प्रजाति माना जाता था, लेकिन मोदीपुरम में हुए शोध के तीसरे साल इसमें पुष्पन के बाद भरपूर फलन देखा गया। मई-जून के गर्म मौसम में फल पकने शुरू हो जाते हैं। फलों का औसत वजन 200 ग्राम रहता है।
कीटनाशक रहित ताजा सेब
मई-जून में जिस समय अन्ना प्रजाति का सेब बाजार में आता है, उस समय अन्य प्रजातियों का कोल्ड स्टोरेज में रखा सेब ही बाजार में पहुंचता है। इसमें रोगों की आशंका भी अन्य प्रजातियों के मुकाबले बेहद कम है। मैदानी क्षेत्रों में पुष्पन की परिपक्वता के दौरान हानिकारक कीट या व्याधि का प्रकोप नहीं होता। कीटनाशक या फफूंदीनाशक का प्रयोग नहीं होने के कारण फल की गुणवत्ता भी उम्दा रहती है।
कस्टर्ड और फ्रूट रायता में प्रयोग
अन्ना प्रजाति का सेब थोड़ा खट्टा होता है। इसी खूबी के कारण यह कस्टर्ड और फ्रूट रायता में ज्यादा प्रयोग होता है। वर्कशॉप में आए किसानों बताया कि अन्ना की जानकारी उन्हें अखबारों और इंटरनेट से मिली। डॉ. दुष्यंत मिश्र ने बताया कि आइआइएफएसआर जल्द ही अन्ना के पौधों की व्यवसायिक बिक्री शुरू करेगा।
सफलतम प्रजाति है
वर्कशॉप की शुरुआत संस्थान के कार्यकारी निदेशक प्रेम सिंह ने की। प्रधान फल वैज्ञानिक डॉ. दुष्यंत मिश्र ने कहा कि मार्च-2014 में पहली बार सेब की कई प्रजातियों को ज्यादा तापमान में विकसित करने की पहल की गई थी। इसमें तीन प्रजातियों अन्ना, डारसेट गोल्डन और माइकल पर काम शुरू हुआ। तीन साल के अनुसंधान के बाद ‘अन्ना’ ही सफलतम प्रजाति रही। कार्यशाला के बाद किसानों को प्रमाण-पत्र भी दिए गए।
एक बार खर्च, सालों तक आमदनी
‘अन्ना’ सेब का बाग लगाने पर शुरू के तीन साल ज्यादा खर्च होता है। इसके बाद आमदनी होने लगती है। रोपने के सालभर बाद ही फरवरी में पौधे फूल देना शुरू कर देते हैं। अन्ना को स्वयंबांझ (सेल्फ स्ट्राइल) प्रजाति माना जाता था, लेकिन मोदीपुरम में हुए शोध के तीसरे साल इसमें पुष्पन के बाद भरपूर फलन देखा गया। मई-जून के गर्म मौसम में फल पकने शुरू हो जाते हैं। फलों का औसत वजन 200 ग्राम रहता है।
कीटनाशक रहित ताजा सेब
मई-जून में जिस समय अन्ना प्रजाति का सेब बाजार में आता है, उस समय अन्य प्रजातियों का कोल्ड स्टोरेज में रखा सेब ही बाजार में पहुंचता है। इसमें रोगों की आशंका भी अन्य प्रजातियों के मुकाबले बेहद कम है। मैदानी क्षेत्रों में पुष्पन की परिपक्वता के दौरान हानिकारक कीट या व्याधि का प्रकोप नहीं होता। कीटनाशक या फफूंदीनाशक का प्रयोग नहीं होने के कारण फल की गुणवत्ता भी उम्दा रहती है।
कस्टर्ड और फ्रूट रायता में प्रयोग
अन्ना प्रजाति का सेब थोड़ा खट्टा होता है। इसी खूबी के कारण यह कस्टर्ड और फ्रूट रायता में ज्यादा प्रयोग होता है। वर्कशॉप में आए किसानों बताया कि अन्ना की जानकारी उन्हें अखबारों और इंटरनेट से मिली। डॉ. दुष्यंत मिश्र ने बताया कि आइआइएफएसआर जल्द ही अन्ना के पौधों की व्यवसायिक बिक्री शुरू करेगा।
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