Move to Jagran APP

अनहद : मेरठ को माफ कर दीजिएगा संतोष, मेडिकल कालेज का दिया दर्द न भुला पाएंगी बेटी शिवांगी

मेरठ में बेटी शिवांगी ने मेडिकल कालेज में भर्ती कराया। हर फर्ज निभाया। सुबह-शाम हालचाल लेती रही। उम्मीद बंध गई थी पिता ठीक हो जाएंगे और घर में फिर खुशियां लौटेंगी। लेकिन शिवांगी ने न सिर्फ अपना पिता खोया बल्कि उनके अंतिम दर्शन भी नहीं कर पायी।

By Prem Dutt BhattEdited By: Published: Sun, 23 May 2021 07:00 PM (IST)Updated: Sun, 23 May 2021 07:00 PM (IST)
अनहद : मेरठ को माफ कर दीजिएगा संतोष, मेडिकल कालेज का दिया दर्द न भुला पाएंगी बेटी शिवांगी
मेरठ के मेडिकल कालेज में अव्‍यवस्‍था का आलम अभी थमा नहीं है।

मेरठ, [रवि प्रकाश तिवारी]। कोरोना से जंग जीतने बरेली के संतोष वाया गाजियाबाद मेरठ आए थे। बेटी शिवांगी ने मेडिकल कालेज में भर्ती कराया। हर फर्ज निभाया। सुबह-शाम हालचाल लेती रही। उम्मीद बंध गई थी, पिता ठीक हो जाएंगे और घर में फिर खुशियां लौटेंगी। लेकिन शिवांगी ने न सिर्फ अपना पिता खोया, बल्कि उनके अंतिम दर्शन भी नहीं कर पायी। अंतिम संस्कार से भी परिवार को वंचित कर दिया गया। यह सब किया मेडिकल कालेज के कर्णधारों ने। जो बेटी हर दिन अपनी पिता की खबर ले रही थी, मेडिकल कालेज ने बेखबर होकर उनका अंतिम संस्कार तक अज्ञात में कर दिया। हाईकोर्ट के डंडे पर कार्रवाई हुई, ऊंट के मुंह में जीरा समान। जरा सोचिए, अंतिम संस्कार, अंतिम दर्शन से वंचित करने का दाग आखिर वो योद्धा कैसे धोएंगे जिनके सम्मान में शिवांगी-संतोष ने ताली-थाली बजाई थी, शुभेच्छा के दीप जलाए थे।

loksabha election banner

..और सिस्टम से हार गई हुस्नआरा

बेपटरी हुई व्यवस्था को दुरुस्त करने के मकसद से प्रभारी मंत्री पिछले दिनों मेरठ पहुंचे थे। मकसद था कि सिस्टम के सभी नट-बोल्ट कस दिए जाएं। मंत्रीजी ने एक छोटा स्टिंग कर अफसरों को जता भी दिया कि सॢवस डिलीवरी का आलम क्या है। मंत्रीजी सरकार की प्रतिबद्धता जता रहे थे, तोते की तरह अफसरों को रटा रहे थे कि चाहें कुछ भी हो जाए, मरीज को कोई भी अस्पताल भर्ती करने से इन्कार नहीं कर सकता। जिस समय मंत्रीजी की यह पाठशाला चल रही थी ठीक उसी समय जिंदगी की जंग लड़ रही हुस्नआरा ई-रिक्शा में मेडिकल पहुंची। एक ओर सॢकट हाउस में अफसरों-जनप्रतिनिधियों की बैठक में व्यवस्था सुधार की लकीरें खींची जा रही थी उसी समय मेडिकल परिसर में भटकती हुस्नआरा की सांसें छोटी और छोटी होती जा रही थी। आखिरकार बेहतरी के संकल्प के साथ उधर मीटिंग खत्म हुई, इधर हुस्नआरा।

माल से ज्यादा ढुलाई का खर्च

जितने का माल, दुगनी उसकी उतराई-चढ़ाई का खर्च। जी हां, सुनने में थोड़ा अजीब लगेगा लेकिन आपदा में इस तरह के अवसर उठाए गए हैं। कोरोना के गंभीर मरीजों के लिए जब आक्सीजन का संकट पैदा हुआ तो जो जिस हालत में था, सिलेंडर लेकर आक्सीजन प्लांट की ओर दौड़ पड़ा। कुछ स्वयं सेवकों ने भी जिंदगियां बचाने को लाखों लगा दिए। अब जब हालात थोड़े काबू में आए तो उन्होंने खर्चे का हिसाब लगाया। देखकर दंग हैं कि प्राणवायु की जितनी कीमत है, दोगुना उसका लोडिंग-अनलोडिंग चार्ज। यह चार्ज तब वसूला गया जब खरीदार खुद सिलेंडर ढोकर ले गया और प्लांट से अपने खर्चे पर ले आया, यानी लोडिंग-अनलोडिंग हुई ही नहीं। वैसे भी लोडिंग-अनलोडिंग चार्ज 20 रुपये तक लिया जाता है, लेकिन 320 रुपये तक प्लांट ने वसूले हैं। सबसे अहम बात तो यह है कि यह सब प्रशासन की नाक के नीचे हुआ।

खाकी को भी डर लगता है

जीवनरक्षक दवाओं की कालाबाजारी खूब हुई। दो हजार की दवा 45 हजार तक में बिकी। लखनऊ से डंडा चला तो खाकी एक्शन में आयी। स्टिंग किया और अस्पतालों में चल रहे खेल का भंडाफोड़ का दावा कर दिया। रंगेहाथ पकड़े जाने के आरोप में प्यादों को जेल की हवा खिला दी। अब बारी थी उनकी, जिनके इशारे पर यह सबकुछ चल रहा था। खाकी आगे बढ़ती उससे पहले ही उनके कुछ पुराने चिट्ठे खोलने का दावा किया गया। बस यही काफी था, खाकी वहीं ठिठक गई। अब सॢकल, जिला, रेंज नहीं, जोन तक के जिम्मेदारों की चुप्पी सवाल खड़े करती है। जीवनरक्षक दवाओं की कालाबाजारी का केस यूं ही छोड़ देना और सांसों के सौदागरों की कडिय़ां न जोडऩे की मजबूरी कुछ और ही इशारा करती है। कहीं आरोपों के ट्रेलर का टेरर तो खाकी को बैकफुट पर नहीं खींच लाया है। जनता जानना चाहेगी सच।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.