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After Ayodhya Verdict : सरयू तट पर अमर हुई थी ‘राम की जलसमाधि’,पढ़िए कवियों की जुबानी Meerut News

मेरठ की माटी से उपजे कलमकारों ने राम नाम के सहारे खूब साहित्य सेवा की है। यहां के साहित्यकारों ने राम के नाम पर कलम क्या चलाई ये रचनाएं कालजयी हो गईं।

By Prem BhattEdited By: Published: Tue, 12 Nov 2019 09:45 AM (IST)Updated: Tue, 12 Nov 2019 09:45 AM (IST)
After Ayodhya Verdict : सरयू तट पर अमर हुई थी ‘राम की जलसमाधि’,पढ़िए कवियों की जुबानी Meerut News
After Ayodhya Verdict : सरयू तट पर अमर हुई थी ‘राम की जलसमाधि’,पढ़िए कवियों की जुबानी Meerut News

 मेरठ, [रवि प्रकाश तिवारी]। After Ayodhya Verdict मेरठ की माटी से उपजे कलमकारों ने राम नाम के सहारे खूब साहित्य सेवा की है। यहां के साहित्यकारों ने राम के नाम पर कलम क्या चलाई, ये रचनाएं कालजयी हो गईं। पुरुषोत्तम के जीवन के गौरवशाली पक्षों को मर्यादा की स्याही से कलमबद्ध करने का ही नतीजा था कि उस समय उसी कृति से काव्य मंच अपना मुकाम हासिल करता था। ऐसा इसलिए कि उस अद्वितीय रचना के बाद कवियों का गला रुंध जाता था.. आंखें बरस पड़ती थीं। ऐसी ही चुनिंदा कृतियों में एक है भारत भूषण द्वारा रचित ‘राम की जलसमाधि’।

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रामचरित मानस से जुड़ाव

मूलरूप से मेरठ निवासी भारत भूषण का बचपन से ही रामचरित मानस से जुड़ाव था। जब कलमकार बने तो सरयू तट पर पहुंचकर ‘राम की जलसमाधि’ रची। भारत भूषण के पड़ोसी और बदायूं डिग्री कालेज के एसोसिएट प्रोफेसर सुधाकर आशावादी कहते हैं कि भारत भूषण की यह कृति अद्वितीय है। मंचों पर उनकी इस कविता के लिए ही सबसे अंत में बुलाया जाता था क्योंकि इसके बाद काव्य पाठ का आगे चला पाना संभव नहीं होता था। कुछ अंश उदाहरण के तौर पर देखिए..

ओ खंडित प्रणयबंध मेरे, किस ठौर कहां तुझको जोडूं।

कब तक पहनूं ये मौन धैर्य, बोलूं भी तो किससे बोलूं।

सिमटे अब ये लीला सिमटे भीतर-भीतर गूंजा भर था।

छप से पानी में पांव पड़ा, कमलों से लिपट गई सरयू।

फिर लहरों पर वाटिका खिली, रतिमुख सखियां, नतमुख सीता।

सम्मोहित मेघबरन तड़पे, पानी घुटनों-घुटनों आया।

आया घुटनों-घुटनों पानी, फिर धुआं-धुआं फिर अंधियारा।

लहरों-लहरों, धारा-धारा, व्याकुलता फिर पारा-पारा।

ओज के कवि डा. हरिओम पंवार कहते हैं-‘मेरे हिसाब से राम पर अब तक की श्रेष्ठ कविता भारत भूषण जी की ही है। पढ़ना शुरू करेंगे तो आप खुद सरयू में डूबते जाएंगे। उनका यह गीत गीति-काव्य में मील का पत्थर माना जाता है। इस गीत को सुनकर राम की जल समाधि का करुण और मार्मिक दृश्य आंखों के सामने तैर जाता है’।

धरती से नभ तक जगर-मगर, दो टुकड़े धनुष पड़ा नीचे।

जैसे सूरज के हस्ताक्षर, बाहों के चंदन घेरे से।

दीपित जयमाल उठी ऊपर, सर्वस्व सौंपता शीश झुका।

लो शून्य राम लो राम लहर, फिर लहर-लहर,

सरयू-सरयू, लहरें-लहरें, लहरें- लहरें,

केवल तम ही तम, तम ही तम, जल, जल ही जल केवल,

हे राम-राम, हे राम-राम हे राम-राम, हे राम-राम।

महादेवी वर्मा ने भी खूब सराहा था

महादेवी वर्मा की मौजूदगी में इलाहाबाद में हुई एक गोष्ठी में सिर्फ 10-15 लोग थे। वहां राम की जल समाधि गीत पढ़े जाने के बाद महादेवीजी ने भारत भूषण से कहा था- भाई, तुमने आज तक राम पर लगे सभी आक्षेपों को इस गीत से धो दिया है।

राम त्याग है, शोध नहीं जग वालो..

डा. हरिओम पंवार ने भी राम की व्याख्या अपने अंदाज में की है। 90 के दशक में रची गई डा. पवार की यह कृति आज भी उतनी ही लोकप्रिय है। कहते हैं-आज हमें राम को समझने की जरूरत है। राम एक विचार है। राम के महत्व को कविता रूपी माला में पिरोते हुए वह कहते हैं-

राम दवा है रोग नहीं है, सुन लेना

राम त्याग है भोग नहीं है, सुन लेना

राम सत्य है शोध नहीं है जग वालो

राम दया है क्रोध नहीं है जग वालो

राम हुआ है नाम लोकहितकारी का

रावण से लड़ने वाली खुद्दारी का..।

भारत भूषण की पुस्तक ’

कवि भारत भूषण और हरिओम पंवार ने किया है राम की महिमा का बेजोड़ सृजन

मंचों पर भाईचारा की अलख जगा रहे हैं पॉपुलर मेरठी

मेरठ के कलमकार मंचों पर एकता और भाईचारा का संदेश देने का भी कोई मौका नहीं चूकते। मुशायरों में अपने मिसरों को एक खास अंदाज से पेश करने के लिए पहचाने जाने वाले सैयद एजाजुद्दीन शाह उर्फ पॉपुलर मेरठी ने सामाजिक तानाबाना को मजबूती देने के मकसद से कुछ यूं लिखा है..

जय राम तुम भी आओ, सुलेमान तुम भी आओ,

जोजफ चचा के साथ कमर खान तुम भी आओ।

सतबीर को बुलाकर बलवान तुम भी आओ,

तुम हमसे अलग क्यों हो श्रीमान.. तुम भी आओ।

पॉपुलर मेरठी जैसे लोगों की कोशिशों का ही कमाल है कि आज मेरठ सहित पूरा प्रदेश और राष्ट्र तमाम आशंकाओं को पीछे छोड़ एक साथ खड़ा है। नई सोच के साथ आगे बढ़ रहा है। 


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