गडकरी जी! कृपया विचार कीजिए, गंगनहर से प्रयाग के लिए भी चल सकती है एरोबोट
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने बनारस से प्रयाग तक एरोबोट चलाने की घोषणा की है। ऐसी ही कोशिश मेरठ की गंगनहर में भी की जा सकती है। गंग नहर के जरिए भी कानपुर पहुंचा जा सकता है।
मेरठ, [ओम बाजपेयी]। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की लाइफ लाइन ऊपरी गंग नहर नेवीगेशन चैनल से भी लैस है। शुक्रवार को केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने बनारस से प्रयाग तक एरोबोट चलाने की घोषणा की है। ऊपरी गंग नहर के जरिए भी कानपुर और वहां से प्रयाग पहुंचा जा सकता है। जरूरत है तो केवल 150 साल पुराने सिस्टम को चाक-चौबंद करने की।
नहर में बने हैं आठ फॉल
सिंचाई और नौका परिवहन के लिए सबसे महत्वपूर्ण शर्त यह है कि नदी या जलमार्ग का ढलान ज्यादा नहीं होना चाहिए। ऊपरी गंग नहर हरिद्वार से मेरठ होते हुए कानपुर के पास नानऊ नामक स्थान तक पहुंचती है। वर्तमान में गंगा नदी में कानपुर से ही लंबी दूरी तक नौका परिवहन होता है। इसके ऊपर के क्षेत्र में नदी का ढलान काफी ज्यादा है, जिससे लंबी दूरी तक नौकाओं का परिवहन संभव नहीं है। ऊपरी गंग नहर को बनाते समय इसके ढलान को नियंत्रित करने के लिए आठ स्थानों पर फाल (अधिक ऊंचाई से पानी को नीचे उतारने के लिए) बनाए गए थे, ताकि पानी का बहाव नियंत्रित किया जा सके।
प्रत्येक फाल पर बना है नेवीगेशन सिस्टम
सभी फालों पर नेवीगेशन सिस्टम भी है। इस सिस्टम से तात्पर्य है कि अगर यात्रियों या माल को लेकर कोई बोट आ रही है तो उसे ऊंचाई से नीचे कैसे लाया जाएगा। भोला की झाल में दो मीटर तक का फाल है। इसके लिए मुख्य नहर की साइड में एक छोटी कैनाल निकाली गई है, जिसमें एक गेट नीचे की स्ट्रीम में और दूसरा गेट अप स्ट्रीम में है। पहले डाउन स्ट्रीम का गेट बंद किया जाता है जबकि अप स्ट्रीम का गेट खुला रहता है। जब नाव या मोटर बोट अप स्ट्रीम के गेट से अंदर आती है तो उसे बंद कर डाउन स्ट्रीम का गेट खोल दिया जाता है। इससे नाव या मोटर बोट पानी बहाव के साथ नीचे की स्ट्रीम में पहुंच जाती है।
पहले बन चुकी है योजना
नेशनल वाटर वेज डेवलपमेंट अथॉरिटी ने ऊपरी गंग नहर में नेवीगेशन और माल-ढुलाई की योजना का खाका बनाया था। सर्वे में क्लास टू श्रेणी के जल परिवहन के लिए नहर को उपयुक्त माना गया था। इसके तहत इसमें 75 लोगों की क्षमता वाले स्टीमर और 300 टन माल ढ़ोने वाली नौकाएं चलाई जा सकती हैं।
अमेरिकी भी मान गए थे तकनीक का लोहा
वर्ष 2010 में अमेरिका के न्यूयार्क में वर्ल्ड कैनाल कांफ्रेंस हुई थी। इसमें सिंचाई विभाग के पूर्व मुख्य अभियंता एस कुमार ने गंगा कैनाल क्लासिकल इनलैंड वाटर ट्रांसपोर्ट सिस्टम विषय पर प्रजेंटेशन दिया था। एस कुमार ने बताया कि 1854 में गंगा नहर बनकर तैयार हुई थी। निर्माण के समय बड़े बोल्डर और पत्थर नौकाओं से ही लाए जाते थे। जब कांफ्रेंस में इस तकनीक पर चर्चा हुई तो विशेषज्ञ भी आश्चर्यचकित थे। ऐसा पहली बार हुआ है कि नहर को सिंचाई के साथ नेविगेशन के लिए भी निर्मित किया गया हो।
इनका कहना है
भोला की झाल पर तीस मीटर लंबा और 15 मीटर चौड़ा चैनल बना है, जिसमें दो गेट हैं। डाउन स्ट्रीम गेट को बंद कर चैनल में पानी भरकर नौकाओं को अप स्ट्रीम से डाउन स्ट्रीम में लाने की व्यवस्था है। 1945 तक माल ढुलाई के लिए नहर का काफी प्रयोग होता था।
-आशुतोष सारस्वत, अधिशासी अभियंता, निर्माण खंड मेरठ गंग नहर
ये हैं आठ फॉल
- पथरी बहादराबाद
- मोहम्मदपुर पुरकाजी
- निरगाजनी, बरला
- चित्तोड़ा खतौली
- भोला की झाल
- सलावा
- सुमेरा
- बलीपुरा
ऊपरी गंगनहर
नहर की लंबाई 270 माइल्स
नहर की क्षमता 10,500 से 13,000 क्यूसेक
चौड़ाई 250 से 150 फीट