अकादमिक संगोष्ठी : भारत-अमेरिका संबंधों को मजबूत करेगी ट्रंप की यात्र Meerut News
दैनिक जागरण की अकादमिक संगोष्ठी में सोमवार को ‘भारत-अमेरिका मैत्री कितनी मजबूत’ विषय पर चर्चा हुई। व क्ता चौ. चरण सिंह विवि के प्रो. केडी शर्मा रहे।
[आशु सिंह] मेरठ। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत में हैं। पूरे विश्व की नजरें इस यात्र पर टिकी हैं। भारत तो आशान्वित है ही। ट्रंप का गर्मजोशी के साथ स्वागत कर प्रधानमंत्री मोदी ने जता दिया है कि दोनों नेताओं के रिश्ते कितने दोस्ताना हैं। यह दोस्ताना दोनों देशों के बीच भी ऐसी ही नजदीकी ला पाएगा या नहीं, यह देखने वाली बात होगी। दैनिक जागरण की अकादमिक संगोष्ठी में सोमवार को ‘भारत-अमेरिका मैत्री कितनी मजबूत’ विषय पर चर्चा हुई। अतिथि वक्ता चौ. चरण सिंह विवि के इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. केडी शर्मा ने दोनों देशों के संबंधों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने एक शताब्दी पूर्व की ऐतिहासिक घटनाओं का हवाला देते हुए अपनी बात रखी।
अतिथि के विचार
1893 में स्वामी विवेकानंद की शिकागो यात्र से पहली बार अमेरिका का ध्यान भारत की ओर गया। भारत तब गुलाम देश था। विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद के भाषण से अमेरिकियों पर भारत की अलग छाप पड़ी। इस भाषण पर वहां के प्रमुख अखबार न्यूयार्क हेराल्ड ने टिप्पणी की कि इतने विद्वान देश में हम ईसाई मिशनरी को भेजकर कितना मूर्खतापूर्ण कार्य करते हैं। विवेकानंद के बाद महात्मा गांधी दूसरे ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अमेरिका का ध्यान आकर्षित किया। गांधीजी ने जब 1922 में चौरीचौरा की घटना के बाद असहयोग आंदोलन वापस लिया तो अमेरिकी पत्र-पत्रिकाओं में इस पर कई टिप्पणियां प्रकाशित हुईं।
नमक आंदोलन की घटना
तीसरी बड़ी घटना जो भारत-अमेरिका संबंधों को परिभाषित करती है, वह है 1931 का नमक आंदोलन। नमक आंदोलन के दौरान गुजरात के धारासना में प्रदर्शनकारी महिला-पुरुषों पर अंग्रेजों ने बर्बरता की। इस घटना के बाद अमेरिकी पत्रकार भारत आईं और अस्पतालों में पीड़ितों से मिलीं तथा अपनी रिपोर्ट तैयार की। इसके उपरांत द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका-ब्रिटेन साथ आए। तब अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट ने ब्रिटेन पर दबाव बनाया कि वह भारत को आजाद करे। इसी क्रम में अमेरिकी पत्रकार जॉन गुंथर ने गांधीजी के आंदोलनों से प्रभावित होकर उनके बारे में लिखा कि आज विश्व में एक ही व्यक्ति ऐसा है जिसके इशारे पर दुनिया की एक तिहाई आबादी चलती है।
गांधीजी की हत्या
महात्मा गांधी की हत्या की घटना से भी अमेरिका और भारत के संबंधों के बारे में पता चलता है। अमेरिकी साहित्यकार पल्र्सबर्ग ने गांधीजी की हत्या पर लिखा था कि हमें ऐसा लग रहा है जैसे हमने कोई अपना खो दिया हो। दोनों देशों के रिश्तों में नया मोड़ 1948 में आता है। कश्मीर पर पाकिस्तान के हमले का मुद्दा जब संयुक्त राष्ट्र में उठा तब अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन जैसे देशों ने भारत का विरोध किया। जब भारत को आवश्यकता थी तब अमेरिका ने उसका साथ नहीं दिया। हमने हमेशा अमेरिका का पिछलग्गू बनने से इन्कार किया। हालांकि 1962 में चीन से युद्ध में अमेरिका ने भारत को हथियार मुहैया कराए लेकिन इसके बाद 1965 और 1971 की जंग में उसका रुख पाकिस्तान की तरफ रहा। उसने दक्षिण एशिया में अपना प्रभुत्व जमाने के लिए पाकिस्तान का साथ देना शुरू किया।
ओबामा और ट्रंप
अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बराक ओबामा गांधीजी से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने कहा भी कि गांधी से उन्हें प्रेरणा मिलती है। ओबामा दो बार भारत आए। अब ट्रंप पहली बार भारत आए हैं। यह जान लेना चाहिए कि दो देशों में कभी दोस्ती या दुश्मनी नहीं होती। दो व्यक्तियों में हो सकती है। और मोदी व ट्रंप में यह दोस्ती है। देखने वाली बात होगी कि दोनों नेताओं की यह दोस्ती दो देशों को कितना लाभ पहुंचाती है। इतना तो तय है कि दोनों ही देश राष्ट्रहित के मुद्दों पर कोई समझौता नहीं करेंगे। उम्मीद यही है कि इस यात्र से संबंधों में सुधार होगा। हमें इस यात्र को सकारात्मक रूप में ले आशान्वित रहना चाहिए।