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ये पीछे से लड़ते हैं, दुश्मन पर कहर बनकर टूटते हैं

सेना ने शहीद 'टाइगर्स' को दी सलामी, भारतीय सेना के आर्टीलरी की टाइगर फील्ड रेजिमेंट ने मनाया 56वां स्थापना दिवस

By JagranEdited By: Published: Thu, 21 Jun 2018 04:00 AM (IST)Updated: Thu, 21 Jun 2018 04:00 AM (IST)
ये पीछे से लड़ते हैं, दुश्मन पर कहर बनकर टूटते हैं

मेरठ। भारतीय सेना के अहम अंग आर्टीलरी रेजिमेंट को 'गॉड ऑफ वॉर' भी कहा जाता है। ये पीछे से लड़ते हैं, लेकिन दुश्मन पर कहर बनकर टूटते हैं। फिर चाहे लड़ाई दुश्मन के साथ आमने-सामने की हो या फिर आतंकियों के खिलाफ छद्म युद्ध ही क्यों न हो। ऐसे ही काउंटर इंसरजेंसी ऑपरेशन में आतंकियों को मौत की नींद सुलाने वाली सेना की टाइगर फील्ड रेजिमेंट ने सेवा के गौरवपूर्ण 55 साल पूरे कर लिए हैं। बुधवार को मेरठ छावनी में रेजिमेंट ने 56वें स्थापना दिवस पर वर्ष 1965 के भारत-पाक युद्ध से अब तक हुए युद्ध और आतंकी आपरेशनों में हुए शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की।

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आंखों में नमी, दिल में गर्व

दक्षिण भारतीय युवाओं और सेना के संस्कार से सुसज्जित 93 फील्ड रेजिमेंट के स्थापना दिवस पर दक्षिण के विभिन्न राज्यों में रह रहे पूर्व अफसर व सैनिक उपस्थित हुए। पाकिस्तान के खिलाफ वर्ष 1965 और 1971 के युद्ध में शामिल रहे मेजर जनरल पीआर बोस मुख्य अतिथि रहे। उन्होंने शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। उनके साथ ही दोनों युद्ध में शामिल कर्नल बीआर मार्वा के अलावा बाद के ऑपरेशन में शामिल रहे अन्य अफसर व जवानों ने शहीद बेदी पर अपने साथियों को पुष्पगुच्छ चढ़ाकर श्रद्धांजलि दी। इसके बाद एक साथ सभी सर्वधर्म स्थल पर पूजा में शामिल हुए और हवन में आहुति दी।

शहीद के नाम पर बना हेरिटेज हॉल

जम्मू-कश्मीर में वर्ष 1994 से 1997 तक चले 'ऑपरेशन रक्षक' के दौरान शहीद हुए लांस नायक एम सिद्धार्थन को श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए रेजिमेंट ने उनके नाम पर एक हेरिटेज हॉल बनाया है। इसका उद्घाटन भी बुधवार को स्थापना दिवस के दिन किया गया। इस हॉल में रेजिमेंट के तमाम ऑपरेशन की गाथा के साथ ही वीर शहीदों के सचित्र वर्णन हैं। यहां वह अहसास भी होता है कि किन कठिनाइयों से पूर्व में आर्टीलरी के जवान अपने हथियारों को घोड़ों के जरिए पहाड़ियों पर चढ़ाया करते थे। इसके बाद विशेष सैनिक सम्मेलन हुआ, जिसमें पूर्व सैनिकों व अफसरों ने नए सैनिकों के साथ अनुभव साझा किए। शाम के समय बड़ा खाना में रेजिमेंट के हर रैंक के अफसर व सैनिकों व उनके परिवार शामिल हुए।

हम बढ़ते गए, दुश्मन हटता गया

मैं वर्ष 1965 में सेना में भर्ती हुआ था। सेना में मेरी सेवा के छह साल ही हुए थे जब 1971 की लड़ाई हुई। तीन दिसंबर को पाकिस्तान की ओर से युद्ध की घोषणा के बाद हमारी रेजिमेंट अगरतला से सिलकट की ओर बढ़ी थी। दुश्मन पर भारी गोलीबारी करते हुए हम आगे बढ़ते रहे और दुश्मन पीछे हटता गया। दुश्मन से आमने-सामने की लड़ाई में ऑपरेशन ऑफिसर कैप्टन एमएमएस दुग्गल और उनकी टीम बुरी तरह जख्मी हुए थे। 16 दिसंबर की सुबह युद्ध विराम की घोषणा के बाद हमने दुश्मन सेना की टुकड़ियों का सरेंडर स्वीकार करते हुए कब्जे में लिया। फिर वहां से अगरतला एयरबेस पर लौट आए।

-सूबेदार मेजर (तब जवान) चंद्र दासन। एलटीटीई के साथ आतंकियों को भी मारा

श्रीलंका में एलटीटीई के खिलाफ रेजिमेंट ने शानदार प्रदर्शन किया था। इंडियन पीस कीपिंग फोर्स के अंतर्गत तैनात 20 से 25 की टुकड़ी में अलग-अलग जगहों से रेजिमेंट के अफसरों व जवानों ने 22 हजार राउंड फायर किए थे। उसके बाद वैली में ऑपरेशन रक्षक के दौरान आतंकियों के खिलाफ बड़े ऑपरेशन में हमने 18 आतंकी मार गिराए थे। इनके अलावा 55 को जिंदा पकड़ा था और 80 तरह के हथियार भी जब्त किए थे। पुलवामा का त्राल क्षेत्र आतंकियों का गढ़ बन चुका था। इस रेजिमेंट ने युद्ध के अलावा आतंकी ऑपरेशनों में बड़ी सफलता हासिल की हैं। इन्हें छद्म युद्ध में महारत हासिल है।

-ब्रिगेडियर कपिल चंद्र। टाइगर हिल पर पहला हमला हमारा था

कारगिल के ऑपरेशन विजय में शुरुआती सूचना मिलने पर टाइगर हिल के कब्जे की सूचना पर उसकी घेराबंदी के लिए सबसे पहले हमारी टुकड़ी पहुंची थी। टाइगर हिल पर दुश्मन ने बेहद मजबूती से अपने पांव जमा लिए थे। हिल का एक हिस्सा सीधे पाकिस्तान की ओर जाता था। टाइगर हिल पर आठ सिख बटालियन के साथ दो ओर स्थित चोटियों की चढ़ाई और तीसरे ओर स्थित बर्फ की चादर से ढकी 'परियों की तालाब' की ओर से भी हमला किया, लेकिन शुरुआती तीनों हमले नाकाम रहे। इसके बाद हेलीकॉप्टर से देखने पर दुश्मन की स्थितियों की जानकारी मिली। तब तीन बटालियन को बुलाकर हमला किया गया। कैप्टन बत्रा, योगेंद्र यादव सहित अन्य हमारे योद्धाओं ने बाद के दिनों में लड़ाई की। युद्ध में इसी प्रदर्शन के लिए सेना को शांत क्षेत्र में अधिक जमीन की आवश्यकता होती है। कुछ लोग सेना की जमीन लेने में जुटे हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि आग लगने पर कुआं नहीं खोदते हैं। जब हम हर समय तैयार रहेंगे तभी युद्ध में परफार्म कर सकेंगे।

- कर्नल ओपी मिश्रा।


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