रातभर तड़पा पूर्व चेयरमैन का नाती, नहीं मिले डाक्टर
जिला मुख्यालय पर बड़े-बड़े अस्पताल खोलकर विशेषज्ञता का दावा करने वाले डाक्टरों की संवेदनशीलता अब इतनी कम हो गई है कि देर रात अगर किसी बच्चे की तबियत बिगड़ जाए तो उसकी नब्ज टटोलने को कोई डाक्टर नहीं मिलता। बच्चा दर्द से कराहता रहता है और कितने डाक्टरों के अस्पताल का तो दरवाजा तक नहीं खुलता।
जागरण संवाददाता, मऊ : जिला मुख्यालय पर बड़े-बड़े अस्पताल खोलकर विशेषज्ञता का दावा करने वाले डाक्टरों की संवेदनशीलता अब इतनी कम हो गई है कि देर रात अगर किसी बच्चे की तबियत बिगड़ जाए तो उसकी नब्ज टटोलने को कोई डाक्टर नहीं मिलता। बच्चा दर्द से कराहता रहता है और कितने डाक्टरों के अस्पताल का तो दरवाजा तक नहीं खुलता। आम आदमी के साथ तो वाकया रोज-रोज होता है, लेकिन शुक्रवार की देर रात जब पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष अरशद जमाल का दो माह का नाती अजान अचानक बीमार पड़ा तो बाल रोग चिकित्सालयों की कलई खुलकर सामने आ गई। वे रात भर भटके, डाक्टरों को भी फोन किया, लेकिन अधिकांश ने तो फोन भी नहीं उठाया।
शुक्रवार की रात 12 बजे पूर्व चेयरमैन अरशद जमाल की बेटी सना के दो माह के बेटे अजान की सांस में अचानक कोई दिक्कत आ गई। सांस लेने में दिक्कत से दर्द से वह कराहने लगा। अरशद जमाल ने शहर के बाल रोग विशेषज्ञों को फोन लगाना शुरू किया, लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया। सहादतपुरा स्थित तथाकथित बड़े-बड़े अस्पतालों पर भी वे गए, लेकिन बताया गया कि डाक्टर साहब इतने समय नहीं देखेंगे। सहायक डाक्टर ही देखेंगे और दवा देंगे। वहीं बुनाई विद्यालय के समीप स्थित एक चिकित्सालय के दरवान ने तो गेट के दूसरी तरफ से ही पूर्व चेयरमैन को लौटा दिया, इधर अजान की तड़प बढ़ती जा रही थी। अरशद ने डा.सुजीत सिंह को फोन किया तो उन्होंने फोन तो रिसीव किया लेकिन बाल रोग में कोई विशेषज्ञता न होने की बात कही। इसके बाद पूर्व चेयरमैन ने डा.राजकुमार सिंह को फोन किया तो उन्होंने फोन उठाया और फौरन बुलाया। अरशद जब अस्पताल के गेट पर पहुंचे तो डा.राजकुमार पहले से ही खड़े मिले। अजान का इलाज हुआ और अब वह बेहतर है। बड़ा सवाल यह है कि जब अरशद जमाल जैसे शहर के चेयरमैन रहे शख्स को इतना भटकना पड़ा तो आम आदमी के बच्चों का रात में इलाज किसके भरोसे चल रहा है।