दुलार का कोई तोल नहीं, मां की ममता का मोल नहीं
मां की ममता का कोई मोल नहीं है
जागरण संवाददाता, मऊ : यूं तो मां की ममता और दुलार हमें जन्म लेने से पूर्व से गर्भावस्था से ही प्राप्त होने लगते हैं जो जीवनपर्यत मिलते रहते हैं। भारतीय संस्कृति में मां और पिता की पूजा सबसे पहले प्रतिदिन करने का विधान था, इसलिए कोई खास दिन भारत में नहीं था कितु विश्वस्तर पर मई के दूसरे रविवार को मनाए जाने वाले मदर्स डे ने आज की संकुचित होती परिवार परंपरा में मां के लिए एक खास दिन देकर मातृत्व और वात्सल्य के स्नेहमयी अनुपम संबंधों के प्रति एक उपहार ही भेंट किया है। आज पूरे विश्व में यह पर्व मनाया जा रहा है। मां की अनमोल ममता के लिए उस जननी के प्रति सम्मान और कृतज्ञता प्रकट करने का दिन है यह। लोग तरह-तरह से मां के प्रति अपनी भावनाओं को प्रकट कर रहे हैं।
इस वर्ष लॉकडाउन के चलते जबकि अधिकतर लोग अपने परिवार के साथ हैं, मां के पास रहने का सौभाग्य मिला है तो जाहिर है वात्सल्य और स्नेह की संचित पूंजी सबके सिर पर आशीष बनकर लुट रही होगी। हमारे तमाम पाठकों ने पत्रों के माध्यम से अपनी मां के प्रति अपनी भावनाओं को प्रकट किया है। अमेरिका से हुई मदर्स डे की शुरुआत
ममतामयी मां के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के इस पर्व की शुरुआत अमेरिका से हुई। वहां की निवासी एक सामाजिक कार्यकत्री एना जार्विस अपनी मां से बहुत प्यार करती थीं। उन्होंने न कभी शादी की और न ही किसी बच्चे को जन्म दिया। मां की मृत्यु होने के बाद उन्होंने मां से प्यार जताने के लिए इस दिवस की शुरुआत की और धीरे-धीरे यह पर्व मनाया जाने लगा। बाद में वर्ष 1914 में अमेरिका के राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन ने एक कानून पारित किया कि मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाएगा। बाद में अमेरिका के इस दिवस को सभी देशों ने महत्ता दी और सभी देशों में इस दिन को भावपूर्ण तरीके से मनाया जाने लगा।