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..तो आज न होता राष्ट्रीय नागरिकता का मुद्दा

असम एवं कश्मीर क्षेत्र से घुसपैठ की समस्या न होती। यहां आतंकवाद की खेती न होती। आम जनता पर करों का बोझ कम होता। विकास की गति तेज होती। सरकार की आर्थिक स्थिति इस कदर खस्ताहाल न होती।

By JagranEdited By: Published: Thu, 21 Nov 2019 06:51 PM (IST)Updated: Thu, 21 Nov 2019 06:51 PM (IST)
..तो आज न होता राष्ट्रीय नागरिकता का मुद्दा
..तो आज न होता राष्ट्रीय नागरिकता का मुद्दा

अरविद राय, घोसी (मऊ) :

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असम एवं कश्मीर क्षेत्र से घुसपैठ की समस्या न होती। यहां आतंकवाद की खेती न होती। आम जनता पर करों का बोझ कम होता। विकास की गति तेज होती। सरकार की आर्थिक स्थिति इस कदर खस्ताहाल न होती। सरकारी खर्च यकीनन कम होता। निश्चित तौर पर यह राष्ट्र कल्याणकारी राज्य की परिभाषा पर खरा उतरता। आज राष्ट्रीय नागरिकता को लेकर सदन से टीवी चैनलों तक बहस न होती। काश! 21 नवंबर 1949 को भारतीय संविधान सभा की आखिरी बैठक में तत्कालीन संयुक्त प्रांत जनरल एवं जनपद के अमिला निवासी पं.अलगू राय शास्त्री की आपत्तियों को गंभीरता से लिया गया होता। यदि उनके विचारों की गंभीरता का आकलन कर संविधान में तदनुसार संशोधन होता तो आज हालात यकीनन अलग और बेहतर होते।

इस भविष्य²ष्टा ने कश्मीर एवं असम के सीमावर्ती क्षेत्रों में घुसपैठ की संभावनाओं का जिक्र किया था। उन्होंने संविधान में ऐसे प्रावधान किए जाने की वकालत भी कि जिससे घुसपैठ की संभावना समाप्त हो सके। आज 70 वर्ष पूर्व उन्होंने जिस संभावित परिस्थिति का आकलन किया था, वह यह राष्ट्र अपनी आंखों से देख रहा है। असम एवं पश्चिम बंगाल में 1970-71 के बीच हुई घुसपैठ के बाद तो इसका सिलसिला ऐसा निकल पड़ा कि दिसंबर 2013 से 31 मई 2017 तक असम में नागरिक सत्यापन की प्रक्रिया चली। पश्चिम बंगाल में इसे लेकर राजनीति हो रही है। इस महापंडित ने विधान जनता की भाषा में न होने, समूचे भारत में एक भाषा, नागरिकता एवं अन्य संवेदनशील मुद्दों पर भी बेबाक टिप्पणी किया था। उस बैठक में उन्होंने कहा था-'हमने अहंकार के साथ यह कहा है कि हम अपने को यह संविधान दे रहे हैं, भारत की जनता को इससे यहां अहंकार का भास हो रहा है। ईश्वर को नमस्कार करके ही हमें संविधान की प्रस्तावना का प्रारंभ करना चाहिए था।'उन्होंने पाकिस्तान में रह गए हिदू एवं सिख वर्ग को जब भी हिदुस्तान आएं, खुली नागरिकता दिये जाने की वकालत किया था। यहां रह गए अल्पसंख्यक वर्ग को विशेष सुविधाएं एवं संरक्षण दिए जाने के साथ ही उनमें राष्ट्रीय भाव उत्पन्न किए जाने हेतु कोई संवैधानिक व्यवस्था न होने पर टिप्पणी की थी।'इंडिया दैट इज भारत'पर भी उन्होंने खेद प्रकट किया था।

साभार: भारतीय संविधान का मसौदा


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