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ऐतिहासिक दस्तावेज है संविधान सभा की अंतिम बैठक में पंडित अलगू का भाषण

संविधान दिवस पर विशेष.. -मानी गई होतीं भविष्यद्रष्टा की बातें तो न होती सीमा पार से आतंकवा

By JagranEdited By: Published: Wed, 25 Nov 2020 09:28 PM (IST)Updated: Wed, 25 Nov 2020 09:28 PM (IST)
ऐतिहासिक दस्तावेज है संविधान सभा की अंतिम बैठक में पंडित अलगू का भाषण
ऐतिहासिक दस्तावेज है संविधान सभा की अंतिम बैठक में पंडित अलगू का भाषण

संविधान दिवस पर विशेष..

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-मानी गई होतीं भविष्यद्रष्टा की बातें तो न होती सीमा पार से आतंकवाद और घुसपैठ

-श्री शास्त्री ने किया जब आगाह तो कुछ ने किया समर्थन, कुछ ने उड़ाई खिल्ली

-असम और कश्मीर के सीमावर्ती क्षेत्रों में तब ही जता दी थी घुसपैठ की आशंका अरविन्द राय, घोसी (मऊ) :

संविधान सभा की अंतिम बैठक में अमिला के सुपुत्र एवं सरस्वती पुत्र पं.अलगू राय शास्त्री का अंतिम भाषण एक ऐतिहासिक दस्तावेज है। आज से ठीक 71 वर्ष पूर्व उन्होंने जिस भयावह स्थिति की भविष्यवाणी किया था, वह आज दिख रही है। डा.आंबेडकर सहित संविधान सभा के अधिकांश सदस्यों ने उनके कथन का समर्थन किया पर चंद लोगों ने खिल्ली भी उड़ाई थी। उस समय अगर इस भविष्यद्रष्टा की बातें मान ली गई होतीं तो आज सीमापार से कश्मीर के रास्ते घुसपैठ न होती, न ही होता आतंकवाद। पूर्वोत्तर प्रदेशों में चीनी सैनिकों द्वारा आए दिन सीमा का अतिक्रमण भी न होता।

महान क्रांतिकारी व कानूनविद पंडितजी ने कश्मीर एवं असम के सीमावर्ती क्षेत्रों में घुसपैठ की आशंका का आकलन कर संविधान में घुसपैठ की संभावना समाप्त करने हेतु संशोधन का प्रस्ताव रखा। भारत में रह गए अल्पसंख्यकों के बीच राष्ट्र को मजहब से ऊपर समझने के लिए विशेष कार्यक्रम चलाए जाने और कानून बनाए जाने की आवश्यकता पर बल दिया। आज घुसपैठ भी हो रही है और सीमापार बैठे आतंकवादी भारत के युवाओं को गुमराह कर आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने को तैयार कर रहे हैं। पं.शास्त्री के कथन को गंभीरता ले गया होता तो आज रक्षा बजट कम होता। सीमा पर विशेषकर कश्मीर में फौजी एवं आम नागरिक न मारे जाते। कश्मीरी हिदू पलायन न करते। आम जनता पर करों का बोझ कम होता। विकास की गति तेज होती। उन्होंने केंद्र से लेकर प्रांतों तक में दो हाउस से सरकार का खर्च अधिक होने एवं अंतिम मार जनता पर पड़ने का मुद्दा भी उठाया था। नीति निर्देशक तत्वों पर टिप्पणी करते हुए साफ कहा-''राष्ट्र ने यह जिम्मेदारी खुले तौर पर नहीं ली है कि हम अन्न, वस्त्र तथा दूसरी आवश्यक जीवनोपयोगी वस्तुओं के लिए राष्ट्र को आश्वासन देते हैं। हमने यह अवश्य कहा है कि हम यथासाध्य इसकी पूर्ति के लिए प्रयत्न करेंगे।'' अन्नादे: समविभाग: प्रजानाम यथार्हत यानी यह राष्ट्र का उत्तरदायित्व है कि आम जन को अन्न, वस्त्र, निवास एवं अन्य आवश्यक सुविधाएं प्रदान की जाएं। कहा कि अधिकारियों एवं कर्मचारियों के वेतन आदि की सुविधा की बात तो कही गई है पर आम जनता को भूला दिया गया है।

साभार: भारतीय संविधान का मसौदा


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