अब किसानों को नहीं सुहा रहा अन्नदाता शब्द
Þअन्नदाताÞ शब्द जैसा विशेषण अब किसानों को नहीं सुहा रहा है। अन्नदाता अब समाज का सबसे निरीह व्यक्ति बन गया है। न प्रशासन सुन रहा है ना हितैषी होने का दावा करने वाली सरकार इनके दुख दर्द के समाधान के प्रति गंभीर है।
अरविद राय, घोसी (मऊ) :
अन्नदाता शब्द अब किसानों को नहीं सुहा रहा है। अन्नदाता अब समाज का सबसे निरीह व्यक्ति बन गया है। न प्रशासन सुन रहा है ना हितैषी होने का दावा करने वाली सरकार इनके दुख दर्द के समाधान के प्रति गंभीर है। खेती किसानों के लिए श्रमिक नहीं मिल रहे हैं, मशीनी युग में डीजल और बिजली की दर दोनों में वृद्धि कमर तोड़ रही है। स्टेट पूल लागू न होने से किसान शासकीय क्रय केंदों पर धान बेचने के प्रति उदासीन है।
दरअसल गत वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष धान खरीद की पेंचीदगी बढ़ गई है। एक गाटा संख्या में चाहे जितने भी हिस्सेदार हों पर धान एक ही बेच सकेगा। भुगतान हेतु इलेक्ट्रानिक फंड मैनेजमेंट सिस्टम लागू हो गया है। किसानों के आधार कार्ड एवं बैंक खाते में नाम तो एक है पर खतौनी में किसी की जोत उसके मृत पिता या मां का नाम है, हालांकि उसके नाम वरासत दर्ज है। किसानों के नाम के आगे टाइटिल नहीं है। ऐसे में संबंधित क्षेत्र के उपजिलाधिकारी द्वारा सत्यापन किए जाने के बाद ही भुगतान प्राप्त होगा। इससे इतर परिवहन की समस्या, मानक, रिकवरी दर एवं क्षेत्रफल के आधार पर क्रय की जाने वाली मात्रा के निर्धारण को लेकर किसान, क्रय केंद्र प्रभारी एवं राइस मिलर के बीच खींचतान है। जिले की तमाम राइस मिलें अब भी डिबार हैं। महज पांच मिलें ही अनुबंधित हो सकी हैं। पांच मिलें कितना धान कूटेगी, समझा जा सकता है। इन पांच मिलों पर जिले के खरीद लक्ष्य 71 हजार मीट्रिक टन धान की कुटाई मे काफी समय लगेगा। कुटाई के बाद भारतीय खाद्य निगम को चावल भेजने एवं चावल स्वीकृत होने के बाद ही मिलें कुटाई की गति बढ़ाएगी। यदि तनिक भी दिक्कत हुई तो मिलें हाथ खड़ा कर लेंगी। दूजे इन मिलों के पास इतनी मात्रा में धान के भंडारण की क्षमता नहीं है। इन समस्त समस्याओं के समाधान के लिए स्टेट पूल योजना को दोबारा लागू करना ही एकमात्र विकल्प है।
वर्ष 11-12 एवं इसके बाद सीएमआर (वह चावल जो केंद्रों से लिए गए धान की कुटाई के बाद एफसीआई गोदाम में पहुंचाना आवश्यक है) का ऐसा झाम हुआ कि जिले की चंद मिलों को अपवाद मान लें तो अधिकांश मिले काली सूची में हैं। इन तथ्यों के बीच महज एक विकल्प है जिसमें एफसीआई की भागीदारी के बिना ही धान खरीद की जा सकती है। वह यह कि नौ वर्ष से बंद पड़ी स्टेट पूल योजना को लागू किया जाए। इसके तहत विपणन विभाग क्रय केंद्र से क्रय धान की कुटाई कराता है। प्राप्त चावल को विपणन विभाग ही अपने केंद्रों के माध्यम से पात्र गृहस्थी एवं अंत्योदय कार्ड धारकों को वितरण हेतु कोटेदारों को निर्गत करता है। जानकारों की मानें तो इस व्यवस्था से समय एवं किराया दोनों की बचत होती है। स्टेट पूल के जरिए खरीद एवं वितरण की व्यवस्था ही मिलरों एवं किसानों सहित विभाग को समस्याओं से निजात दिला सकती है।