लूटा डाकखाना पर बांट दिया मनीआर्डर
अतीत के आईने से.. जागरण संवाददाता घोसी (मऊ) अगस्त क्रांति के दौरान सिर पर कफन बां
अतीत के आईने से.. जागरण संवाददाता, घोसी (मऊ) : अगस्त क्रांति के दौरान सिर पर कफन बांध निकले देशभक्तों का मनोबल ऐसा था कि चप्पे-चप्पे पर फौज की तैनाती कर दी गई। भारतीयों में भय उत्पन्न करने को लखनऊ में बमवर्षक विमानों के बेड़े के आ पहुंचे। इसके बावजूद विप्लवी प्रतिदिन विध्वंस मचाते रहे। आज के ही दिन जनपद के मुहम्मदपुर से मेंहनगर जा रही डाक को क्रांतिकारियों ने बीच राह में ही लूट कर सारे सरकारी अभिलेख एवं संदेश को आग के हवाले कर दिया।
मधुबन कांड के बाद विध्वंस दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा था, हालांकि नामचीन नेता जेल में थे। डाक लूटना, रेल पटरी उखाड़कर राशन एवं अन्य कुमुक की आपूर्ति बाधित कर हुकूमत को बैक फुट पर लाने हेतु अब गोरिल्ला युद्ध होने लगा। क्रांतिकारी रणनीति बनाकर रात के अंधेरे में वारदात करने लगे। शासकीय इमारतों एवं ईंधन केंद्रों पर विशेष सुरक्षा व्यवस्था थी। खुलेआम प्रदर्शन पर सख्त मनाही थी। ऐसे में भी दिलेरी दिखाते हुए आजमगढ़ में छात्रों ने फौजी वाहनों के आवागमन पर रोक लगाने के लिए 20 अगस्त को पेट्रोल टंकी फूंकने का प्रयास एक नहीं कई बार किया हालांकि सफलता न मिल सकी। आज के ही दिन जनपद के मुहम्मदपुर से मेंहनगर जा रही डाक को क्रांतिकारियों ने बीच राह में ही लूट कर सारे सरकारी अभिलेख एवं संदेश को आग के हवाले कर दिया। अलबत्ता मनीआर्डर की राशि को उनके पते पर पहुंचा दिया। आज के ही दिन बैराटपुर एवं फैजुल्लाहपुर के जंगलों में जब सारा आलम गहरी नींद में था चंद रणबांकुरे खुरहट रेलवे स्टेशन जलाने हेतु सिर से सिर भिड़ा कर अपनी रणनीति को अंतिम रूप दे रहे थे। पं. रामविलास पांडेय, सत्यराम सिंह, रामदरस राय एवं सुदामा चौहान आदि के पास टार्च तो थी पर समस्या थी दियासलाई एवं मिट्टी के तेल की। बहरहाल उक्त सामग्री का दायित्व सुदामा को सौंपा गया। रात में ही उफनाई तमसा नदी पार कर वह सारी सामग्री ले आए। और फूंकने लगे मुर्दा
अंग्रेजों की बर्बरता से आसम आदमी के मन में ब्रिटिश हुकूमत खौफ ऐसा था कि लोग नदी किनारे शव जलाने आते थे पर अंग्रेज सिपाहियों द्वारा पूछताछ किए जाने एवं जेल में ठूंस दिए जाने के भय से किसी तरह शव जलते ही वापस लौट जाते थे। एक बार जल रही चिता ने जिले के सेनानियों की जान बचाया। हुआ यूं कि पं. रामविलास पांडेय, सुदामा चौहान, रामदरश राय एवं सत्यराम सिंह आदि सेनानी बैराटपुर के समीप नदी किनारे घने जंगल में छिपे थे। इस बीच नदी किनारे टोह लेते कुछ सिपाहियों के आने की चुगली उनके बूट की आवाज कर गई। सेनानियों के मन में एक क्षण को भय उत्पन्न हुआ पर दूसरे ही क्षण जलता शव आशा की किरण बन गया। सभी सेनानी जलते शव के चारों ओर खड़े हो गए। सिपाहियों के पूछने पर रोनी सूरत से अपने खास के असमय ही काल कवलित होने का दर्द सुनाया। बस बच गयी जान और सिपाही जल्दी वापस जाने की ताकीद कर चले गए।
आनंद ने संभाली रामपति की मशाल
नहुष नगरी के सपूतों ने आजादी की हर जंग में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। नगर के मदापुर-सम्सपुर निवासी रामापति पांडेय ने सन 42 के पूर्व ही अंग्रेजों की बगावत किया था तो कस्बा खास निवासी छात्र आनंद स्वरूप मिश्र ने 1942 की क्रांति में आजमगढ़ में विप्लव ऐसा मचाया कि वारंट जारी कर दिया गया। रामापति पांडेय को सरकार विरोधी गतिविधियो के चलते कई बार चेतावनी दी गई पर 1930 में नमक सत्याग्रह के दौरान गिरफ्तार कर ढाई वर्ष की जेल की सजा सुना दी गई। भारत मां की सेवा का ईनाम सन 32 में भी एक माह की हवालात के रूप में मिला। बहरहाल नहुष नगरी के इस महान सपूत ने जो अलख जलाया उसे कस्बा खास निवासी रामबहोर मिश्र के पुत्र आनन्द स्वरूप मिश्र ने आगे बढ़ाया। 1923 में पैदा हुए आनन्द सहजनवां में ट्रेन से सरकारी खजाना लूटने वाले हरिप्रताप की टोली के के सदस्य रहे। इन पर सीआईडी नजर रखने लगी। आजमगढ़ के एसकेपी इंटर कालेज के इस छात्र ने जनपद मुख्यालय पर ऐसा तांडव मचाया कि पुलिस गिरफ्तार करने के लिए तलाश में जुट गई। फरारी हालत में गतिविधियों को अंजाम देता यह क्रांतिकारी अंतत: नवम्बर 42 में पुलिस के हत्थे चढ़ा।