वैज्ञानिकों की टीम ने जायद की फसल का लिया जायजा
कृषि विज्ञान केंद्र पिलखी के वैज्ञानिकों
वैज्ञानिकों की टीम ने जायद की फसल का लिया जायजा
जागरण संवाददाता, मऊ : कृषि विज्ञान केंद्र पिलखी के वैज्ञानिकों की टीम ने शनिवार को जायद की फसल का जायजा लिया। किसानों की ओर से बोए गए उर्द, मूंग व मक्का की फसल के बारे में आवश्यक सुझाव दिए। बस्ती बहरवार निवासी प्रगतिशील किसान रामू मौर्या के खेत का भ्रमण किया। किसान गोष्ठी में जायद की फसल की कटाई, मडाई, भंडारण तथा खरीफ की फसल का योजना बनाकर खेती करने की सलाह दी। प्रगतिशील कृषकों ने बताया कि इस योजना से किसानों में दलहन उत्पादन एवं इसके क्षेत्रफल में बढ़ोत्तरी हुई है।
कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. एलसी वर्मा ने कहा कि रबी और खरीफ के बीच के अंतराल को जायद कहा जाता है। यह अप्रैल से लेकर जून तक होता है। इस समय कम खाद, बीज, पानी, समय एवं देखभाल लेने वाली फसलों उर्द, मूंग मक्का को उगाया जाता है। इसके तहत समूहबद्ध अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन दलहन योजना के अंतर्गत बीते 31 मार्च को उर्द का बीज 35 किसानों में निश्शुल्क वितरित किया गया था।
पौध सुरक्षा वैज्ञानिक डा. लाल पंकज सिंह ने बताया कि उड़द एवं मूंग की खड़ी फसल से फलियों की तोड़ाई कर फसल अवशेष को हरी खाद के रूप में हैरो से जोताई कर खेत में मिला दें। इससे जीवाश्म की मात्रा खेत में बढ़ जाएगी और आने वाले खरीफ की फसल के लिए काफी लाभदायक सिद्ध होगा। वैज्ञानिक डा. अंगद प्रसाद ने बताया कि दलहनी फसल की कटाई में यदि देरी होती है तो किसान डीएसआर (डाइरेक्ट सीडेड राइस) तकनीक का प्रयोग कर धान की सीधी बोआई कर सकते हैं। इससे समय की बचत होगी और नर्सरी भी नहीं डालना पड़ेगा। यदि पानी कम बरसता है और पानी का साधन नहीं है, ऐसी स्थिति में धान की सीधी बोआई तकनीक काफी सफल होगी। मृदा वैज्ञानिक डा. चंदन सिंह ने बताया कि खरीफ की फसल की बोआई करने से पूर्व मृदा की जांच अवश्य करा लें और फसल में रासायनिक उर्वरकों को संतुलित रूप में ही डालें। बीज प्रौद्योगिकी वैज्ञानिक डा. हिमांशु राय ने बताया कि किसानों को अपनी फसल का बीज उत्पादन खुद करना चाहिए।