फसल अवशेष प्रबंधन प्रक्रिया से खेती को बनाएं उर्वरा
जागरण संवाददाता मऊ प्रक्षेत्र अपशिष्ट का कंपोस्टिग बनाने के लिए भारत सरकार द्वारा विशेष र
जागरण संवाददाता, मऊ : प्रक्षेत्र अपशिष्ट का कंपोस्टिग बनाने के लिए भारत सरकार द्वारा विशेष राष्ट्रीय स्वच्छता अभियान चलाया जा रहा है। इसके अंतर्गत अपशिष्ट से खुशहाली विषय पर क्षेत्र अवशिष्ट से कंपोस्ट एवं रसोई के कचरे से खाद बनाने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र पिलखी में किसानों को जागरूक किया गया। इस दौरान मंगलवार को सभी किसानों को सब्जी का बीज 90 प्रतिशत अनुदान पर वितरित किया गया। इसमें एक पैकेट में आठ प्रकार के सब्जी के बीज जैसे धनिया, हरी मटर, बैगन, सेम, पालक, लौकी, मिर्चा, तरोई की बीज था।
वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डा. एलसी वर्मा ने कहा कि भारत में 600 मिलियन मैट्रिक टन से भी ज्यादा फसल अवशेष निकलता है। पौधे द्वारा लिए गए नाइट्रोजन तथा फास्फोरस का 25 फीसद, सल्फर का 50 फीसद एवं 75 फीसद पोटैशियम भाग फसल अवशेष में संचित रहता है। फसल अवशेष प्रबंधन की प्रक्रिया को अपनाकर लगभग 5.68 मिलियन मैट्रिक टन नाइट्रोजन फास्फोरस तथा पोटैशियम प्रति वर्ष खेत मे मिलाया जा सकता है। खेत के फसल अवशेष को उपयुक्त केचुए की प्रजाति जय गोपाल की सहायता से वर्मी कंपोस्टिग की जा सकती है। केंद्र के वैज्ञानिक डा. बीके सिंह ने कहा कि फसल अवशेष से लगभग 90 से 110 दिन में वर्मी कंपोस्ट बनकर तैयार हो जाती है। वैज्ञानिक डा. अंगद प्रसाद, सुरक्षा वैज्ञानिक डा. अजीत वत्स, अंजली यादव, पार्वती देवी, मनीषा, अनुराग, राजभर, रामरति, गरीब, विसर्जन, रामावती देवी आदि थीं।