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पराली, पानी, पलेवा की चिता छोड़िए, सीधे बोइए गेहूं

जागरण संवाददाता मऊ चौंकिए नहीं बात सीधी और साफ है। पराली पानी पलेवा की चिता छोड़ि

By JagranEdited By: Published: Wed, 28 Oct 2020 04:55 PM (IST)Updated: Wed, 28 Oct 2020 04:55 PM (IST)
पराली, पानी, पलेवा की चिता छोड़िए, सीधे बोइए गेहूं
पराली, पानी, पलेवा की चिता छोड़िए, सीधे बोइए गेहूं

जागरण संवाददाता, मऊ : चौंकिए नहीं, बात सीधी और साफ है। पराली, पानी, पलेवा की चिता छोड़िए, सीधे बोइए गेहूं। जी हां, तकनीक अपनाइए। पराली को न जलाना है न काटना। खेती की तैयारी के लिए पानी का भी झंझट नहीं, पलेवा तो दूर की बात है। बस धान काटकर सीधे गेहूं के बीज बोकर पहले से मौजूद नमी का फायदा उठा लीजिए। धान के खेत में मौजूद नमी गेहूं के पौधे के अंकुरण के लिए पर्याप्त है।

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आपकी पराली भी बेकार नहीं जाएगी, इधर गेहूं उगेगा, उधर पराली सड़कर खाद बन जाएगी। है न, आम के आम, गुठलियों के दाम। आप कहेंगे, कैसे। तो इसके लिए है हैप्पी सीडर। इसकी सहायता से न सिर्फ खड़ी पराली के बीच गेहूं बो सकते हैं, वरन पराली हटाने, जलाने की झंझट, पर्यावरण प्रदूषण, मृदा की हानि, पहली सिचाई और पलेवा के खर्च से भी बच जाएंगे। यही नहीं बोआई के साथ ही साथ खाद भी प्रत्येक बीज के साथ समुचित मात्रा में मिट्टी में पहुंचकर खाद छिटाई में प्रयुक्त होने वाली अनावश्यक मात्रा को भी कम कर देता है।

क्या है हैप्पी सीडर

हैप्पी सीडर बीज बोआई का एक यंत्र है। यह ट्रैक्टर से जुड़कर चलता है। इसके माध्यम से गेहूं, चना, मटर, आलू, सरसों आदि रबी की प्रत्येक फसल बो सकते हैं। हां, इसे चलाने के लिए थोड़ा हैवी इंजन यानि कम से कम 60 हार्स पावर के ट्रैक्टर की जरूरत पड़ती है। इसमें ऊपर सीड बाक्स, फर्टिलाइजर बाक्स, सीड एंड फर्टिलाइजर मीटरिग मैकेनिज्म, हल-फाल, पीटीओ ड्राइव गियर बाक्स, कटर ब्लेड्स, पहिए आदि लगे होते हैं।

कैसे काम करता है यंत्र

बोआई के समय हैप्पी सीडर के सीड्स बाक्स में बीज, फर्टिलाइजर बाक्स में खाद भर देते हैं। इसे ट्रैक्टर से जोड़ दिया जाता है। ट्रैक्टर के साथ चलते यंत्र में लगे ब्लेड्स पराली को काटकर पीछे की ओर गिराते जाते हैं। इसमें लगे फाल आगे की ओर जमीन को चीरते हुए उसमें कतारबद्ध गेहूं के बीज और खाद के दाने छोड़ते जाते हैं। गिरी पराली के बीच में गेहूं बो दिया जाता है। मिट्टी में पहले से बरकरार नमी अंकुरण के उपयोग में आ जाती है। कटकर गिरी पराली मिट्टी के संपर्क में आने के बाद सड़ना आरंभ हो जाती है। जब 20-25 दिन बाद पहली सिचाई का पानी मिलता है तो पराली की सड़न और तेज हो जाती है तथा उसके खाद में बदलने की प्रक्रिया और तेज हो जाती है। इसी बीच किसान यदि उसमें सूक्ष्मजीवों का प्रयोग कर दें तो वे उसकी सड़न प्रक्रिया को और तेज बनाकर खाद बनने में लगने वाले समय को कम कर देंगे।

पराली जलाने से नष्ट होता पर्यावरण

खेत में पराली जलाना न सिर्फ पर्यावरण को प्रदूषित करता है, बल्कि इसकी वजह से मिट्टी में मौजूद कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव भी नष्ट हो जाते हैं। पराली जलाने से दिल्ली, गुरुग्राम, पंजाब में बढ़ी धुंध का खामियाजा पिछले वर्षों में पूरा देश भुगत चुका है। हैप्पी सीडर इस समस्या से निजात ही नहीं दिलाता है, बल्कि पराली का उपयोग भी खेती में हो जाता है।

सब्सिडी पर उपलब्ध है हैप्पी सीडर

हैप्पी सीडर बाजार में उपलब्ध है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पंजाब हरियाणा के लोग इसका प्रयोग पिछले वर्षों से ही कर रहे हैं, अभी पूर्वांचल में इसका चलन नहीं पहुंच सका है। किसानों को यह बाजार से 1.80 लाख में मिल जाएगा। इस पर लगभग 70 हजार रुपये सब्सिडी है। किसान अपना पंजीकरण कराकर इसे खरीद सकते हैं। सब्सिडी के लिए आवेदन करें, सब्सिडी की राशि उनके खाते में पहुंच जाएगी।

-एसपी श्रीवास्तव, उप निदेशक कृषि, मऊ।


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