अतीत के आईने से : स्वाधीनता दिवस आयोजन की घोषणा से बौखलाए अंग्रेजी हुक्मरान
जागरण संवाददाता घोसी (मऊ) नौ अगस्त को कांग्रेस ने यूं तो समूचे हिन्दुस्तान को करो या मरो क
जागरण संवाददाता, घोसी (मऊ) : नौ अगस्त को कांग्रेस ने यूं तो समूचे हिन्दुस्तान को करो या मरो का संदेश दिया पर तत्कालीन आजमगढ़ जनपद के पूरब से लेकर पश्चिम तक आजादी के दीवानों ने कुछ अलग ही ठानी थी। मधुबन कांड के बाद देश की आजादी को लेकर ऐसा जुनून दिखा कि एक के बाद एक हर दिन नए कारनामे होते रहे। हाल यह कि हुक्मरान बौखला गए। इस बीच कांग्रेस नेताओं ने अतरौलिया में स्वाधीनता दिवस समारोह के आयोजन की घोषणा कर आग में घी डाल दिया।
रामचरित्तर सिंह ने अतरौलिया में 23 अगस्त को स्वाधीनता दिवस समारोह आयोजन की ठानी तो भनक पाकर आयुक्त ने सेना बुलाए जाने की मांग की। हालांकि जनपद में मधुबन कांड के बाद से ही एक टुकड़ी मौजूद थी। मधुबन कांड के बाद से ही कांग्रेस कार्यकर्ताओं सहित आम जनता को भयभीत करने का सिलसिला आरंभ हो गया। केरोसिन छिड़ककर घर बार जलाने का परिणाम यह कि फरार कार्यकर्ता झुकने या डरने की बजाय क्रांतिकारी गतिविधियों को तेज कर दिया। 15 अगस्त को मधुबन थाना कांड के बाद 18 अगस्त को तरवां थाने पर कब्जा कर सेनानी तेजबहादुर सिंह ने सनसनी फैला दिया। अन्य स्थानों पर डाक लूटने, पुलिस चौकी की होलिका जलाने, पुल पुलिया तोड़ने सहित सिपाहियों की बंदूक छिने जाने जैसी तमाम घटनाओं ने प्रशासन को विचलित कर दिया। इस बीच अतरौलिया में स्वतंत्रता दिवस समारोह आयोजन की खबर एक धमाका बन गई। जिले की अप्रत्यक्ष कमान संभाल रहे गोरखपुर के आयुक्त एचएस रास ने सेना बुलाए जाने हेतु शासन को संदेश दिया। उधर दमन चक्र ऐसा कि क्रांतिकारियों के घर बार तो आग की भेंट चढ़े ही उनको गिरफ्तार करने के लिए पुलिस पागलों की तरह गांवों की खाक छानने लगी।
अपमान और जिल्लत बनी जिदगी
आजादी के दीवानों ने ब्रिटिश शासन को जो चुनौती दी उससे पार पाने में अंग्रेज विफल रहे। इस असफलता को छिपाने के लिये फिरंगियों ने दबिश एवं तलाशी के नाम पर रात में नग्न तांडव प्रारंभ कर दिया। घर में बलात घुसकर बहू बेटियों संग बदसलूकी आम बात हो गई। उधर इसका परिणाम यह कि अब आम जनता फिरंगियों के खिलाफ सेनानियों को समर्थन देने लगी।
निबलेट की डायरी से : काश बरती गयी होती संजीदगी
मधुबन थाना कांड के पश्चात जिलाधीश एचआर निबलेट की हैसियत जनपद में कलेक्ट्रेट के एक प्रधान लिपिक की हो गई। जनपद वासियों में बेहद लोकप्रिय मि. निबलेट ने अपनी डायरी में लिखा है कि ऐसी स्थिति में तहसीलों और थानों को सु²ढ़ कर शक्ति प्रर्दशन एवं निरंतर गश्त की नीति ही एक मात्र विकल्प थी। निबलेट के अनुसार यदि उसे दो या एक भी मिलिट्री की कंपनी मिल जाती एवं अपने तरीके से काम करने की छूट दी जाती तो बार-बार हो रही वारदातों पर काबू पा लेता। एक पखवारे के भीतर जिले की हालत पर नियंत्रण पाने का दावा करने वाले जिलाधीश निबलेट का मानना था कि संजीदगी बरती जाती तो 1942 की क्रांति का रुख इतना आक्रामक न होता।