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गन्ना से विमुख हो रहे किसान, नहीं रहा कैश क्राप

यूं ही अब चीनी मिल को पर्याप्त गन्ना नहीं मिल रहा है। इसके पीछे मिल से लेकर गन्ना विकास समिति एवं जनप्रतिनिधि तक दोषी हैं। किसी जमाने में गन्ना ही एकमात्र फसल थी जिसकी शासकीय समर्थन मूल्य पर खरीद होती थी। एक माह के भीतर किसान को नकद भुगतान प्राप्त होता था। तब अन्य फसलों को किसान व्यवसाइयों के हाथ औने-पौने दाम बेचने को विवश होता था। इसके चलते किसान गन्ना की खेती करते थे। कालांतर में चीनी मिल ने पर्ची वितरण से लेकर गन्ना मूल्य भुगतान में ऐसा खेल किया कि किसानों ने गन्ना से तौबा कर लिया।

By JagranEdited By: Published: Thu, 05 Dec 2019 06:15 PM (IST)Updated: Thu, 05 Dec 2019 06:15 PM (IST)
गन्ना से विमुख हो रहे किसान, नहीं रहा कैश क्राप
गन्ना से विमुख हो रहे किसान, नहीं रहा कैश क्राप

अरविद राय, घोसी (मऊ)

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यूं ही अब चीनी मिल को पर्याप्त गन्ना नहीं मिल रहा है। इसके पीछे मिल से लेकर गन्ना विकास समिति एवं जनप्रतिनिधि तक दोषी हैं। किसी जमाने में गन्ना ही एकमात्र फसल थी जिसकी शासकीय समर्थन मूल्य पर खरीद होती थी। एक माह के भीतर किसान को नकद भुगतान प्राप्त होता था। तब अन्य फसलों को किसान व्यवसाइयों के हाथ औने-पौने दाम बेचने को विवश होता था। इसके चलते किसान गन्ना की खेती करते थे। कालांतर में चीनी मिल ने पर्ची वितरण से लेकर गन्ना मूल्य भुगतान में ऐसा खेल किया कि किसानों ने गन्ना से तौबा कर लिया।

चीनी मिल में इस सत्र के पेराई सत्र का शुभारंभ हो गया है पर गत वर्ष गन्ना बेचने वालों किसानों की बकाया राशि लगभग 11.56 करोड़ का भुगतान न हो सका है। दावे तमाम हैं। मिल से लेकर गन्ना विकास समिति एवं गन्ना विकास परिषद किसानों को गन्ने की खेती के लिए प्रोत्साहन की कवायद में हैं। बावजूद इसके दो दशक पूर्व गन्ना मूल्य भुगतान में विलंब, पर्ची की समस्या सहित अन्य कारणों से विमुख गन्ना किसान अभी तक दोबारा गन्ना उत्पादन का साहस न जुटा सके हैं। ऐसे में हजारों घरों की आजीविका का सहारा एवं जिले की आर्थिक आय का मजबूत स्त्रोत चीनी मिल घाटे में चल रही है। इसके बीच बड़ी विडंबना यह कि किसानों को प्रोत्साहित करने को चीनी मिल शुगर डेवलपमेंट फंड से ऋण के साथ ही चुनिदा प्रगतिशील किसानों को मुफ्त में प्रेस मड खाद दिए जाने की योजना भी बंद हो गई है।

कभी यह जनपद गन्ने का कटोरा रहा है। गन्ने के अधिक उत्पादन के चलते 04 दिसंबर 84 को स्थापित घोसी चीनी मिल की क्षमता वर्ष 94 में दोगुनी की गई। क्षमता दोगुनी होने के साथ किसानों को चीनी मिल शुगर डेवलपमेंट फंड से गन्ने के बीज एवं खाद हेतु ऋण दिया जाने लगा। तब किसानों को चीनी मिल गन्ने के लिए सर्वोत्तम खाद प्रेसमड मुफ्त देती थी। अब हाल यह कि बीते डेढ़ दशक से शासन ने शुगर डेवलपमेंट फंड बंद कर दिया तो मिल ने भी मुफ्त प्रेस मड वितरण से हाथ खींच लिया है। प्रगतिशील किसान हो या अन्य किसान अब भुगतान पर ही मिल से खाद एवं बीज उपलब्ध होता है अलबत्ता किराया मिल वहन करती है। ऐसे में गन्ना विकास एवं अधिक गन्ना उत्पादन की बात बेमानी नजर आती है। आंकड़े भी किसानों के मुंह मोड़ने की गवाही देते हैं। चीनी मिल के सुरक्षित क्षेत्र में वर्ष 05-06 में 13461 हेक्टेयर गन्ना बोया गया तो प्रति हेक्टेयर 441.60 कुंतल गन्ना का उत्पादन हुआ। जबकि वर्ष 10-11 में क्षेत्रफल 8500 हेक्टेयर पर आ गया तो प्रति हेक्टेयर उत्पादन 350 कुंतल पर अटक गया। हालांकि प्रचलन में नई एवं उन्नतशील प्रजातियों के आने से उत्पादन गत वर्ष 606 कुंतल प्रति हेक्टेयर रहा तो इस वर्ष 634 कुंतल पर आ पहुंचा है। बावजूद इसके अहम बात यह कि गन्ने से विमुख किसान वापस गन्ना की खेती की तरफ नहीं मुड़ रहे हैं। आंकड़ों की नजर में गन्ना उत्पादन

वर्ष - क्षेत्रफल (हेक्टेयर में)

05-06 - 13461

06-07 - 10396

07-08 - 15066

08-09 - 8466

09-10 - 8566

10-11 - 8500

11-12 - 9067

12-13 - 9324

13-14 - 11459

14-15 - 10984

15-16 - 19641

16-17 - 8406

17-18 - 9564

18-19 - 9857

19-20 - 10546


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