सादगी, पवित्रता और सामाजिक सहभागिता पर्व की विशेषता
-सेवा और भक्ति भाव से किए गए सामूहिक कर्म का होता विराट प्रदर्शन -धन पुरोहित या गुरु नहीं
-सेवा और भक्ति भाव से किए गए सामूहिक कर्म का होता विराट प्रदर्शन
-धन, पुरोहित या गुरु नहीं, होता पास-पड़ोस का सहयोग, सेवा का समर्पण
जागरण संवाददाता, मऊ : छठ पूजा का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी पवित्रता और लोकपक्ष है। भक्ति और अध्यात्म से परिपूर्ण इस पर्व में बांस निर्मित सूप, टोकरी, मिट्टी के बर्तन, गन्ने का रस, गुड़, चावल और गेहूं से निर्मित प्रसाद प्रयुक्त होता है। इसके अलावा सुमधुर लोकगीतों से युक्त होकर यह पर्व लोक जीवन की भरपूर मिठास का प्रसार करता है।
शास्त्रों से अलग यह जन सामान्य द्वारा अपने रीति-रिवाजों के रंगों में गढ़ी गई उपासना पद्धति है। इसके केंद्र में वेद, पुराण जैसे धर्मग्रंथ न होकर किसान और ग्रामीण जीवन है। इस व्रत के लिए न विशेष धन की आवश्यकता है न पुरोहित या गुरु के अभ्यर्थना की। जरूरत पड़ती है तो पास-पड़ोस के सहयोग की जो अपनी सेवा के लिए सहर्ष और कृतज्ञतापूर्वक प्रस्तुत रहता है। इस उत्सव के लिए जनता स्वयं अपने सामूहिक अभियान संगठित करती है। नगरों की सफाई, व्रतियों के गुजरने वाले रास्तों का प्रबंधन, तालाब या नदी किनारे अर्घ्य दान की उपयुक्त व्यवस्था के लिए समाज सरकार के सहायता की राह नहीं देखता। इस उत्सव में खरना के उत्सव से लेकर अर्घ्यदान तक समाज की अनिवार्य उपस्थिति बनी रहती है। यह सामान्य और गरीब जनता के अपने दैनिक जीवन की मुश्किलों को भुलाकर सेवा-भाव और भक्ति-भाव से किए गए सामूहिक कर्म का विराट और भव्य प्रदर्शन है।