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सावधान! प्रदूषित हो रही बाढ़ प्रभावित भूमि, घट रहा रकबा

जिले की प्रमुख नदी घाघरा हो या तमसा प्रत्येक वर्ष बाढ़ व कटान अब आम बात होती जा रही है। इससे नुकसान का तो कोई आकलन ही नहीं रह गया है। सर्वाधिक प्रभावित जिले की कृषि व्यवस्था होती दिख रही है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 16 Feb 2020 05:54 PM (IST)Updated: Sun, 16 Feb 2020 05:54 PM (IST)
सावधान! प्रदूषित हो रही बाढ़ प्रभावित भूमि, घट रहा रकबा
सावधान! प्रदूषित हो रही बाढ़ प्रभावित भूमि, घट रहा रकबा

घोसी (मऊ) : जिले की प्रमुख नदी घाघरा हो या तमसा, प्रत्येक वर्ष बाढ़ व कटान अब आम बात होती जा रही है। इससे नुकसान का तो कोई आकलन ही नहीं रह गया है। सर्वाधिक प्रभावित जिले की कृषि व्यवस्था होती दिख रही है। उधर कटान से निजात की स्थाई व्यवस्था को न तो शासन और न प्रशासन ही ठोस उपाय करता है।

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अभी तक तो घाघरा एवं तमसा नदी केवल बाढ़ व कटान के माध्यम से लोगों पर कहर ढा रही थी पर बीते कुछ वर्षो से नदी का पानी प्रदूषित होने के कारण लगातार बढ़ता मिट्टी का क्षरण किसानों की चिता बढ़ा रहा है। एक अन्य तथ्य यह कि कटान में प्रतिवर्ष कई एकड़ खेती भूमि नदी में समा जाती है। इससे खेती योग्य भूमि का क्षेत्रफल घटता जा रहा है।

कभी बाढ़ आने पर किसान प्रसन्न होते थे पर अब नदी के प्रदूषित पानी के चलते बाढ़ समाप्त होने के बाद प्रभावित भूमि उर्वरक नहीं रह जाती है। जिस उपजाऊ भूमि पर फसल लहलहाती थी उस भूमि की ऊपरी परत अब पानी के तेज बहाव से कटकर नदी में चली जाती है। बच जाती है प्रदूषित जल से बनी सतह। यही कारण है कि तमसा एवं घाघरा नदी के तट के किनारे की भूमि आज प्रदूषित हो रही है। मृदाक्षरण के चलते भूमि की उपजाऊ क्षमता प्रभावित हो रही है। घाघरा तट के किनारे मृदाक्षरण से सूरजपुर, आश्रम मोर्चा, रसूलपुर स्टेट डिहिया डूलिया, बड़कीबारी सहित अनेक गांव के चितित किसान अब उपजाऊ भूमि को ऊसर हो जाने के कारण सैकड़ों हेक्टेयर भूमि पर कृषि कार्य करना बंद कर दिए हैं। यदि सब कुछ इसी तरह चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब नदी के किनारे पैदा होने वाली मुख्य फसलें गेहूं, सरसों, अरहर, एवं गन्ना की पैदावार काफी घट जाएगी।

इनसेट--

घाघरा तट की तरबूजा, खरबूजा, परवल की खेती भी प्रभावित

कभी घाघरा एवं तमसा तट पर किसान तरबूजा, नाशपाती, ककड़ी एवं परवल आदि की खेती करते थे। आज हालत यह कि मिट्टी में परिवर्तन के कारण किसानों ने इस खेती से मुंह मोड़ लिया है। तमसा के किनारे उगे परवल की मांग काफी अधिक होने के चलते इस व्यवसाय से काफी लोग जुड़े थे। समय बदलने के साथ नदी के मृदा क्षरण का यहां की खेती पर पड़े प्रभाव ने ऐसे किसानों की रोजी-रोटी भी छिन ली है। वर्जन--

तमसा एवं घाघरा के किनारे की ऐसी भूमि का अवलोकन एवं परीक्षण कर आवश्यक उपाय अपनाने हेतु मामला भूमि संरक्षण विभाग को संदर्भित किया जाएगा। भूमि संरक्षण विभाग ऐसी भूमि के सुधार एवं संरक्षण हेतु तमाम योजनाएं संचालित करता है। -उमेश कुमार, जिला कृषि अधिकारी, मऊ।


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