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बारिश में पशुओं में महामारी बनेगा गलाघोंटू

जागरण संवाददाता मऊ बारिश व बाढ़ की तबाही के साथ जहां पशुओं के चारे का संकट खड़ा

By JagranEdited By: Published: Thu, 07 Oct 2021 05:38 PM (IST)Updated: Thu, 07 Oct 2021 09:40 PM (IST)
बारिश में पशुओं में महामारी बनेगा गलाघोंटू
बारिश में पशुओं में महामारी बनेगा गलाघोंटू

जागरण संवाददाता, मऊ : बारिश व बाढ़ की तबाही के साथ जहां पशुओं के चारे का संकट खड़ा हो गया है वहीं अब गलाघोंटू रोग पशुओं में महामारी बन कर उभरेगा। यह रोग जीवाणुओं द्वारा फैलने वाला घातक एवं संक्रामक रोग है। इसमें तेज ज्वर, मुंह और गले पर शोथ वाली सूजन हो जाती है। आमाशय और आंख में पीड़ा होती है। इससे पशु का पेट फूल जाता है और पतला दस्त होता है। मुंह से लार और नाक से गाढ़ा स्त्राव निकलने लगता है। इसके बाद पशुओं के मरने का सिलसिला शुरू हो जाएगा।

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कृषि विज्ञान केंद्र पिलखी के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डा. एलसी. वर्मा ने बताया कि यह रोग प्राय: वर्षा ऋतु में होता है। इस कारण पशु की अचानक मृत्यु हो जाती है। इससे प्रभावित होने वाले पशुओं में गाय, बैल, बछड़ा, बछिया, भैंस, पाड़ा, भेड़ एवं बकरियां होती हैं। इसमें अधिकांशत: भैंस विशेष रूप से प्रभावित होती हैं। यह रोग उन स्थानों पर अधिक होता है जहां पर पानी का जमाव रहता अधिक है। जुगाली करने वाले पशुओं में यह रोग विशेषकर भैंस पर अधिक हमला करता है। कभी-कभी इतना भयंकर रूप पकड़ लेता है कि 80 से 90 फीसद पशुओं की मृत्यु हो जाती है।

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पांस्चूरेला बोबीसेफ्टिका नामक जीवाणु से फैलता है रोग

यह रोग पशुओं में पांस्चूरेला बोवीसेफ्टिका नामक जीवाणु से फैलता है। इसका संक्रमण मुंह और गले के भीतर चारा दाना के द्वारा होता है और शरीर के अंदर रक्त प्रणाली में पहुंचकर जीवाणु अपना विकास करता है तथा रोग को फैलाता है। अधिकतर पशुओं में इस रोग का फैलाव आहार द्वारा, श्वास नलिका द्वारा परजीविओं द्वारा अधिक होता है। किस रोग के लक्षण प्राय: एक से तीन दिन के भीतर प्रकट हो जाते हैं। पशु के गले पर सूजन हो जाती है तो लक्षण प्रकट होने में अधिक समय लगता है।

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इस तरह करें उपचार ...

रोग की चिकित्सा के लिए पोटैशियम परमैंगनेट पानी में मिलाकर कई बार पिलाएं अथवा पोटेशियम परमैंगनेट एवं कपूर की बराबर मात्रा में प्रति आठ घंटे में दें। पोटैशियम आयोडाइड एक ग्राम को 30 मिलीलीटर डिस्टिल्ड वाटर में मिलाकर त्वचा में इंजेक्शन देना चाहिए। बीमारी का जोर कम करने के लिए कार्बोलिक एसिड पानी में मिलाकर दें। पशु की अनुभूति चिकित्सा के लिए पशु को जौ का दलिया एवं पानी प्रचुर मात्रा में दें, रोगी को स्वच्छ तथा खुली हवा में रखें। सहायक चिकित्सा के रूप में सूजन की तीव्र सेंक अथवा गर्म लोहे से सूजन को भलीभांति दागना। आराम मिलने पर चिकित्सा के साथ-साथ लाइवोल 50 ग्राम गुड़ के साथ पांच दिन तक चटाएं। पेट फूलने की स्थिति में बायीं कोंख पर तारपीन, हीग गर्म पानी के साथ मिलाकर हाथ से खूब मालिश करें।

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यह बरतें सतर्कता .....

-यदि रोगी पशु की जीभ बाहर निकल जाए तो उसकी चिकित्सा न करें।

-रोग ठीक होने पर पशु को एकाएक चारा या घास खाने को न दें

-उसे कम से कम एक सप्ताह तक दूध दलिया पर ही रखना चाहिए।

-बारिश शुरू होने से पहले टीकाकरण अवश्य कराएं।


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