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अपनाई जैविक खेती, उगाई सूरजमुखी, बनाई पहचान

जागरण संवाददाता, पुराघाट (मऊ) : रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कर किसान अन्न को उपजा तो

By JagranEdited By: Published: Sat, 23 Dec 2017 09:57 PM (IST)Updated: Sat, 23 Dec 2017 09:57 PM (IST)
अपनाई जैविक खेती, उगाई सूरजमुखी, बनाई पहचान
अपनाई जैविक खेती, उगाई सूरजमुखी, बनाई पहचान

जागरण संवाददाता, पुराघाट (मऊ) : रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कर किसान अन्न को उपजा तो रहे हैं लेकिन यह रासायनिक उर्वरक कितना नुकसान दायक है यह हमें अब दिखने भी लगा है। चर्म रोग, गैस, शुगर, हार्ट समस्या जैसी कई बीमारियां जो तेजी से हर घर में फैल रही हैं। उसके पीछे कहीं न कहीं रासायनिक उर्वरकों की बहुत बड़ी भूमिका है। इस बात को समझा काछीकला के प्रगतिशील किसान प्रमोद राय ने। वैज्ञानिकों से मिल मशविरा किया और फिर तौबा ही कर ली रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों से। अब वह मिट्टी की आवश्यकतानुसार बहुत जरूरी होने पर ही अपने खेत में नाममात्र का रासायनिक उर्वरक देते हैं। वर्ना गोबर की खाद के साथ ही हरी खाद और बाजार में मिलने वाली जैविक खादों का प्रयोग कर खेती में चमत्कारिक लाभ प्राप्त कर रहे हैं।

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वह बताते हैं कि जहां तक जैविक खेती की बात है तो पहले लोग पशुओं के गोबर से ही सभी प्रकार की खेती करते थे। उसी पुरानी परंपरा एवम पुरखों की सीख लेते हुए मैं कम्पोस्ट खाद से ही लगभग आठ वर्षों से खेती कर रहा हूं। धान, गेहूं, तिलहन की खेती में भी कम्पोस्ट खाद का प्रयोग किया तो रासायनिक उर्वरक की अपेक्षा उपज भी सवाई से ज्यादा हुई। जो लोग पलायन कर चार-पांच हजार रुपये के लिए बाहर जाते थे वह अब हमारी व्यावसायिक खेती देख बाहर जाना छोड़ खेती में लग गए हैं और लाभ कमा रहे हैं। सूरजमुखी की खेती से हमें लाभ मिला। इसके डंठल को खेतों में ही जोतकर पानी भर देते हैं जो सड़कर मिट्टी को और उपजाऊ बना देता है। इसी प्रकार गेहूं, धान के डंठलों को भी खेत में जोतकर पानी भर देते हैं। वे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं। रोग रहित खेती में कम्पोस्ट खाद, गोबर का योगदान बहुत अहम है। लोगों को इस प्रकार से खेती कर आनंद आ रहा है। आने वाले समय में किसान रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग नाम मात्र ही करेगा, उनकी निर्भरता खेती के लिए कम्पोस्ट खाद एवम गोबर पर ही होगी।


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