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Goverdhan: सात साल के सांवरे ने यहां सात दिन सात रात धारण किए थे सात कोस

Goverdhan धार्मिक ग्रन्थों में दर्ज है कि कृष्ण ने इसी स्थली से उठाए थे गोवर्धन पर्वत। ब्रजभूमि के ऐश्वर्य से दूर एकांतवासी हैं ठाकुर हरदेवजी महाराज।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Sun, 06 Sep 2020 08:34 PM (IST)Updated: Sun, 06 Sep 2020 08:34 PM (IST)
Goverdhan: सात साल के सांवरे ने यहां सात दिन सात रात धारण किए थे सात कोस
Goverdhan: सात साल के सांवरे ने यहां सात दिन सात रात धारण किए थे सात कोस

मथुरा, रसिक शर्मा। पर्वतराज की भूमि गोवर्धन श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का संग्रह है। यहां का कण कण कृष्ण लीलाओं की गवाही देता है। तलहटी के प्रमुख मंदिर भव्यता का साकार रूप हैं। लेकिन हरदेव मंदिर का सन्नाटा तलहटी के ऐश्वर्य को चुनोती देता है। गोवर्धन में हरदेव मंदिर के बारे में मान्यता है कि यही वह स्थान है जहां सात साल के कान्हा ने गोवर्धन को सात दिन अपने बाएं हाथ की कनिष्ठा ऊंगुली पर धारण किया। चूंकि श्रद्धा और विश्वास के दम पर चलती परंपरा इतिहास के दावों की मोहताज नहीं होती। इसलिए भक्तों का सैलाब इस मंदिर के आंगन को छूकर नहीं जाता।

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यादव कुल पुरोहित गर्गाचार्य ने गर्ग संहिता लिखी है। इसमें उल्लेख है कि हरदेव मंदिर वही जगह है जहां श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव का मान मर्दन करने के लिए गोवर्धन धारण किया था। गर्गाचार्य कृष्ण के समकालीन हैं इसलिए इसे जानकार सबसे महत्वपूर्ण तथ्य मानते हैं। मगर गोवर्धन आने वाले अधिकांश श्रद्धालुओं को इस ऐतिहासिक विरासत की कोई जानकारी ही नहीं है। नतीजा यह है कि गोवर्धन के प्रमुख मंदिरों में वैभव सिमट कर रह जाता है।

अधिकमास में रोजाना लाखों की भीड़ जुड़ती हैं। झिलमिल इमारतें, रंगीन फव्वारे, पुष्प महल में स्वर्ण श्रंगार धारण किए प्रभु ब्रजभूमि के ऐश्वर्य का यशोगान करते हैं। वैभव से परिपूर्ण गोवर्धन में प्राचीन विरासत स्वरूप हरदेव मंदिर में सन्नाटा छाया हुआ है। प्रशासन भी धार्मिक इतिहास के इस महत्वपूर्ण स्थल को नजर अंदाज करता है।

यूं सजा है धार्मिक इतिहास

गर्ग संहिता के कान्हा ने ब्रजवासियों से इंद्रदेव की बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करवाई। इंद्र ने कुपित हो मेघमालाओं को ब्रजभूमि बहाने का हुक्म दिया। तब इसी स्थान पर सात वर्ष के सांवरे ने सात दिन सात रात तक सात कोस गिरिराज को अपने बाए हाथ की कनिष्ठ उंगली पर धारण कर ब्रजभूमि को बचा लिया। हरदेव मंदिर में इसी स्वरूप में आज भी भगवान दर्शन देते हैं।

इतिहास के पन्नों से

इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि मंदिर का निर्माण मध्यकाल में मानसिंह के पिता राजा भगवान सिंह ने कराया था। मंदिर निर्माण के लिए मुगल बादशाह अकबर ने राजा भगवान सिंह को शाही खदान के लाल पत्थरों के उपयोग की इजाजत दी। इतिहास में यह भी लिखा है कि राजा भगवान सिंह ने अकबर को एक युद्ध में बचाया था। इसके बाद सम्राट अकबर ने भगवान सिंह को मुलतान का गवर्नर नियुक्त कर अपना विश्वासपात्र बना लिया। सेवायत लक्ष्मी नारायण गोस्वामी ने बताया कि मंदिर के संचालन को राजाज्ञा के तहत पर्याप्त जमीन मिली थीं। इस मंदिर के संरक्षण के लिए 1871 में तत्कालीन कलेक्टर एफएस ग्राउज ने इसे राष्ट्रीय स्मारक की श्रेणी में बताया था। 


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