बंदी के कारण मंगल बाजार में भी सन्नाटा
जागरण संवाददाता, मथुरा: मंगल को लगने वाले साप्ताहिक बाजार का इंतजार करने वाले छोटे दुकानदारों के लिए
जागरण संवाददाता, मथुरा: मंगल को लगने वाले साप्ताहिक बाजार का इंतजार करने वाले छोटे दुकानदारों के लिए यह दिन निराशाजनकर रहा। भारत बंद के कारण मंगल बाजार में न तो ठीक से दुकाने लगी और न ही ग्राहकों ने इधर का रुख किया। इससे करीब चौदह लाख का नुकसान होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
हर सप्ताह मंगलवार को शहर के जुबली पार्क व डैम्पियर नगर में मंगल बाजार लगाया जाता है। यहां दैनिक उपयोग की वस्तुएं चूड़ी, रेडीमेड कपड़े, घरेलू आइटम, मोबाइल एसेसरीज, बर्तन आदि की बिक्री की जाती है। यहां फड़ लगाने के लिए फिरोजाबाद, आगरा, हाथरस, अलीगढ़, टूंडला, हाथरस, दिल्ली आदि से सैकड़ों की संख्या में दुकानदार आते हैं। यह बाजार करीब 700-800 परिवारों के लिए रोजी-रोटी का जरिया बना हुआ है । इन दुकानदारों की मानें तो ये यहां एक दिन की कमाई से पिछले हफ्ते का दाल, चीनी, चावल, आटा, सब्जी आदि का कर्ज चुका पाते हैं लेकिन मंगलवार को दुकानदारी ना होने के कारण इनके चेहरे मुरझाए दिखे। करीब 14 लाख के नुकसान का अनुमान---
मंगलवार को हुए भारत बंद के दौरान अकेले मंगल बाजार में हुए आर्थिक नुकसान का आकलन करें तो यह करीब 14 लाख के आसपास बैठता है। यहां प्रति सप्ताह करीब आठ सौ फड़ लगाए जाते हैं। प्रत्येक फड़ पर दो हजार रुपये के हिसाब की बिक्री लगाएं तो यह करीब 16 लाख रुपये बैठती है, मंगलवार को करीब दो सैकड़ा दुकानें यहां सज सकीं, जिन पर औसतन 1000 रुपये प्रति दुकान के हिसाब से बिक्री हुई। कुल बिक्री करीब दो लाख रूपए हुई जो पूर्व की अपेक्षा 14 लाख रुपये कम रही। नगर निगम की पर्ची में घालमेल--
मंगल बाजार में फड़ लगाने वाले दुकानदारों से पर्ची पर अंकित 12 रुपये के स्थान पर 30 रुपये तक वसूल जा रहे है। इससे उनका किस प्रकार शोषण हो रहा है यह आसानी से पता लगाया जा सकता है। कोई विरोध करता है तो उसे वहां से फड़ हटवाने तक की धमकी दी जाती है। वर्जन--
भारत बंदी से आधी से भी कम दुकानें ही लग पाई हैं। इस कारण औसतन 80 फीसद तक कम बिक्री हुई है। मांगों के लिए इस प्रकार किसी को परेशान करना किसी भी ²ष्टि से सही नहीं है। इससे गरीबों का काफी नुकसान हो गया है।
- नीरज सैनी, दुकानदार एक तो पहले ही रोड वन वे है, यहां खरीददार आने से कतराते हैं। दूसरा आज इन्होंने ये हंगामा कर दिया है। ग्राहक निकल नहीं रहा है लेकिन फिर भी घर चलाने के लिए यहां धूप में बैठकर ग्राहकों का इंतजार करना मजबूरी है।
- चन्द्रमणि अग्रवाल, दुकानदार यहां आने की जल्दी में सुबह से चाय भी नसीब नहीं हुई है। यहां कुछ कमाई होगी तो शाम को घर में चूल्हा जल सकेगा। पिछले हफ्ते का राशन-पानी का हिसाब आज होने वाली आमदनी से होना था लेकिन आज का दिन बेकार ही गया।
- लक्ष्मी, दुकानदार आज किसका मुंह देखा, जो अब तक दुकानदारी नहीं हुई है। हर सप्ताह दोपहर तक ही माल खत्म हो जाता था। किसी को भी गरीबों की परवाह नहीं है। धूप में बैठकर देखे कोई तब पता चले कि खाने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है।
- किरन, दुकानदार