यह परिवार आज भी राधा को मानता पुत्री समान
श्रील नारायण भट्ट के परिवार की सालों पुरानी श्रद्धा,उनके वंशज आज भी राधा को पुत्री मान लुटा रहे प्यार
संवाद सूत्र, बरसाना: दक्षिण भारतीय तैलंग ब्राह्मण का ब्रज में एक परिवार ऐसा भी है जो राधारानी को आज भी अपनी पुत्री के समान ही चाहता है। न तो यह परिवार कोई मामूली परिवार है और न ही इनकी श्रद्धा सामान्य है। यह उस शख्स की वंश परंपरा है जिसने न केवल ब्रज के तमाम हिस्से को खोजा बल्कि बरसाना में राधारानी का प्राकट्य भी किया।
श्रील नारायण भट्ट कोई मामूली नाम नहीं है। ब्रज का इतिहास इनके बिना अधूरा है। 15वीं सदी के अंतिम वर्षों में वह कान्हा के आदेश पर ही गोदावरी से ब्रज में आए। आंध्रप्रदेश के मदुरापट्टम के तैलंग ब्राह्मण श्रील नारायण भट्ट की परंपरा गंगभट्ट से जुड़ती है। लड्डू गोपाल की एक मूर्ति लेकर उन्हें ब्रज की परिक्रमा की। इसी दौरान उन्हें खो चुके ब्रज के कई लीलास्थलियों का प्राकट्य किया। इन्हीं नारायण भट्ट ने 16 साल राधाकुंड में तपस्या की। नारायण भट्ट के वंशज घनश्याम भट्ट के मुताबिक 1602 में उन्होंने राधारानी का प्राकट्य किया। यही विग्रह आज बरसाना के लाडली मंदिर में विराजमान है। इन्हीं नारायण भट्ट की वंश परंपरा के भट्ट ऊंचागांव में रहते हैं। यहीं लाडली ठाकुर का वह विग्रह है जिसे लेकर वह ब्रज आए थे। इस परिवार के दिलीप भट्ट, घनश्यामराज भट्ट, बबलू भट्ट, ललित भट्ट, कृष्णानंद और सर्वेश ऊंचागांव में रहते हैं। सभी गृहस्थाश्रम में रहते हैं और आज भी राधारानी को पुत्रीवत लाड़ लड़ाते हैं। ब्रजाचार्य पीठाधीश्वर गोस्वामी उपेंद्र नारायण भट्ट कहते हैं कि आज भी उनके वंशज राधारानी को पुत्री रुप मानते हुए अपना दुलार लुटाते हैं। घनश्याम भट्ट कहते हैं राधारानी की पूजा परंपरा को नारायण भट्ट के वंशजों ने नहीं लिया। कारण, नारायण भट्ट उन्हें पुत्रीवत मानते थे। दूसरे उनके आराध्य बलदाऊ थे।