राधा के लिए आज भी सजती है सांझी
ब्रजभूमि त्यौहार व उत्सव की भूमि है। ब्रज मण्डल राधाकृष्ण की तमाम उन यादों को संजोए हुए है जो उन्होंने द्वापरयुग में लीला की। श्राद्ध पक्ष में सांझी महोत्सव की शुरुआत ब्रजमंडल में हो गई है। उक्त सांझी महोत्सव में राधाकृष्ण के तमाम मंदिरों व ब्रज के हर घर मे गाय के गोबर से सांझी बनाई जाती है।
संसू, बरसाना: ब्रजभूमि त्योहार व उत्सव की भूमि है। ब्रज मण्डल राधाकृष्ण की तमाम उन यादों को संजोए हुए है जो उन्होंने द्वापरयुग में लीला की। हाल ही में बूढ़ी लीला महोत्सव का मडोई के महारास के साथ समापन हो गया। अब श्राद्ध पक्ष में सांझी महोत्सव की शुरुआत ब्रजमंडल में हो गई है। उक्त सांझी महोत्सव में राधाकृष्ण के तमाम मंदिरों व ब्रज के हर घर मे गाय के गोबर से सांझी बनाई जाती है।
सांझी हर घर के आंगन और तिवारे में ब्रजवासी राधारानी के स्वागत के लिए सजाते है। मान्यता है कि सांझी राधारानी का सबसे प्रिय खेल था। बृषभानु नंदनी अपनी सखियों के साथ श्राद्ध पक्ष में इस महोत्सव को मानती थी। गाय के गोबर से तमाम पक्षियों व पेड़ो, कुंडों का चित्रांकन करती और फिर फूलों व रंगों से इसे सजाती हैं। आज भी लाड़िली जी मंदिर में रंगों से जगमोहन में साझी बनाई जाती है। इस दौरान तमाम लीला स्थलों का चित्रांकन किया जाता है। वहीं श्राद्ध पक्ष में शुरु होने वाले इस सांझी महोत्सव को ब्रज के हर घर मे कुंवारी कन्या गाय के गोबर से दीवार पर तमाम लीलाओं का चित्रांकन करती हैं। यह महोत्सव करीब सोलह दिनों तक चलता है। वर्जन---
राधारानी मंदिर पर करीब डेढ़ सौ बर्ष से इस महोत्सव को बनाया जा रहा है। सेवायत बृषभानु नंदनी के लिए रोज मंदिर के आंगन में रंगों से सांझी बनाते है। इस दौरान राधाकृष्ण की तमाम लीलाओं का चित्रांकन किया जाएगा।
-रासबिहारी गोस्वामी, सेवायत
लाडि़ली जी मंदिर। सांझी महोत्सव प्राचीन है श्राद्ध पक्ष में राधारानी ने गाय के गोबर से सांझी बनाकर उसे सांझी देवी का रुप दिया है। वैसे यह राधारानी का सबसे प्रिय खेल है। जिसे वो अपनी सखियों के साथ बड़े ही आनन्द साथ खेलती थी।
-गोस्वामी घनश्यामराज भट्ट, प्रवक्ता
ब्रजाचार्य पीठ ऊंचागांव। आज भी बरसाना के हर घर मे सांझी बनाई जाती है। जिसे शाम के वक्त तमाम लड़कियां भोग लगाकर पूजती है। यह महोत्सव लड़कियों का सबसे प्रिय भी है क्योंकि इस महोत्सव से चित्रांकन की कलाकृतियों का अनुभव भी होता है।
-सोनल अग्रवाल। हम आज भी राधारानी की सहचरियों के रुप मे इस महोत्सव को बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाते है। बड़ा अच्छा लगता है जब गाय के गोबर से हम राधाकृष्ण के तमाम लीलाओं का चित्रांकन करते है।
-पूजा कुशवाह।