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एससी-एसटी एक्ट के खिलाफ सवर्णों की अगुआई करने वाले ये देवकीनंदन ठाकुर कौन हैं

ठाकुर देवकीनंदन मथुरा के ग्रामीण परिवेश में पले और पढ़े-लिखे। ग्रंथ, शास्त्र और भागवत ज्ञान अपने गुरु आचार्य पुरुषोत्तम शरण शास्त्री से प्राप्त किया।

By Nawal MishraEdited By: Published: Wed, 12 Sep 2018 11:47 PM (IST)Updated: Thu, 13 Sep 2018 12:50 PM (IST)
एससी-एसटी एक्ट के खिलाफ सवर्णों की अगुआई करने वाले ये देवकीनंदन ठाकुर कौन हैं
एससी-एसटी एक्ट के खिलाफ सवर्णों की अगुआई करने वाले ये देवकीनंदन ठाकुर कौन हैं

मथुरा (जेएनएन)। भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं के कथावाचक के रूप में राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय आध्यात्मिक जगत में चर्चित देवकीनंदन ठाकुर एससी-एसटी एक्ट में संशोधन के खिलाफ सड़कों पर उतरे सवर्णों के नेता के तौर पर उभर कर सामने आए हैं। इसके मद्देनजर आध्यात्मिक जगत के बाहर भी उनके बारे में जिज्ञासा बढ़ी है। आंदोलन में शामिल होने के लिए उन्हें पुलिस ने हिरासत में भी लिया था।

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मथुरा के ओहावा में हुआ जन्म

मांट तहसील के गांव ओहवा में 12 सितंबर 1978 को जन्मे ठाकुर देवकीनंदन ग्रामीण परिवेश में पले और पढ़े-लिखे। मां अनसुइया देवी और पिता स्व. राजवीर शर्मा से सुनी भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं को जीवन में उतारा। प्रारंभिक शिक्षा पूरी करके वह वृंदावन की कृष्णलीला मंडली में शामिल हो गए। लंबे समय तक श्रीकृष्ण स्वरूप का अभिनय किया। यहीं से उनको दर्शकों ने ठाकुरजी नाम दिया। ग्रंथ, शास्त्र और भागवत ज्ञान अपने गुरु आचार्य पुरुषोत्तम शरण शास्त्री से प्राप्त किया। वर्ष 1997 से दिल्ली से समाज में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ संदेश देने के लिए कथा कहना शुरू किया। आज वह विदेशों में भी कथा कहने के लिए जा रहे हैं। 

ट्रस्ट की स्थापना की

देवकीनंदन ठाकुर की अध्यक्षता में 20 अप्रैल 2006 में विश्व शांति सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना हुई। ट्रस्ट के माध्यम से वे देश-विदेश में शांति संदेश यात्रा कर रहे हैं। 

प्रियाकांतजू मंदिर

छटीकरा मार्ग पर फरवरी, 2016 में कमलपुष्प पर प्रियाकांतजू मंदिर का लोकापर्ण समारोह किया। 11 दिवसीय कार्यक्रम में करीब आठ लाख श्रद्धालु शामिल हुए। संस्था ने ब्रज की 125 बेटियों की पांच वर्ष की शिक्षा को गोद लेते हुए साइकिल और 5100 रुपये की आर्थिक मदद की थी। समारोह में धर्मगुरु और राजनीतिक हस्तियां शामिल हुई थीं। 

शांतिदूत की उपाधि 

कथाओं में शांति का संदेश देने से प्रभावित होकर वर्ष 2007 में निम्बार्काचार्य जगद्गुरु श्रीमहाराज ने देवकीनंदन ठाकुर को शांति दूत की उपाधि से अलंकृत किया। 

मिली धर्मरत्न उपाधि

द्वादश-ज्योतिष्मठपीठ से शंकराचार्य स्वरूपानंदन सरस्वती ने पिछले वर्ष धर्मरत्न की उपाधि दी। काशी विद्वत परिषद ने सनातन धर्म संरक्षक का सम्मान दिया। 

उमड़ता जनसैलाब

उनकी कथाओं में 40 हजार से एक लाख तक श्रद्धालु आते हैं। इनमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन सभी धर्मो के अनुयाई शामिल होते हैं। 

आंदोलन में दलित भी साथ

देवकीनंदन ठाकुर लगातार कह रहे हैं कि एससी-एसटी एक्ट के विरोध में नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के खिलाफ सरकार ने जो संशोधन किया है, उसका विरोध कर रहे हैं। बिना जांच गिरफ्तारी के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। उनका मानना है कि इससे समाज में विभिन्न वर्गों के बीच खाई बढ़ेगी। सवर्ण समाज उन्हें अपनी बात कहने के लिए लीडर के रूप में देख रहा है। अभियान में दलित समाज को भी साथ लेकर चल रहे हैं। 


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