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पैतृक गाव में सच हो रहा पं. दीनदयाल का सपना

विनीत मिश्र मथुरा देश और दुनिया को अंत्योदय का सपना दिखाने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय का विच

By JagranEdited By: Published: Fri, 25 Sep 2020 05:58 AM (IST)Updated: Fri, 25 Sep 2020 05:58 AM (IST)
पैतृक गाव में सच हो रहा पं. दीनदयाल का सपना
पैतृक गाव में सच हो रहा पं. दीनदयाल का सपना

विनीत मिश्र, मथुरा : देश और दुनिया को 'अंत्योदय' का सपना दिखाने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय का विचार उनके पैतृक गाव नगला चंद्रभान (मथुरा, उप्र) में सच हो रहा है। यहा बना दीनदयाल धाम गरीबों को उत्थान की राह दिखा रहा है। एक दर्जन से अधिक सेवा प्रकल्पों में सैकड़ों हाथों को काम मिला है। गावों में संस्कारशालाएं हैं।

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नगला चंद्रभान गाव के 35 वर्षीय संतोष रावत दोनों पैरों से दिव्याग हैं। काम करने में अक्षम संतोष को 20 वर्ष पहले किसी ने दीनदयाल धाम के सिलाई प्रशिक्षण केंद्र की राह दिखा दी। उन्होंने सिलाई सीखी और मास्टर बन अब दूसरों को हुनरमंद बना रहे हैं। छोटा भाई संजय भी सिलाई का मास्टर है। संतोष 20 हजार रुपये प्रतिमाह कमाकर परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं।

दीनदयाल धाम के सहारे क्षेत्र के हजारों परिवारों का गुजारा चल रहा है। दीनदयाल धाम जिले के छोटे से गाव नगला चंद्रभान में है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्म मानववाद का सिद्धात देकर गरीब के उत्थान का सपना देखा था। दीनदयाल उपाध्याय जन्मोत्सव स्मारक समिति यहा इसी सपने को सच कर रही है। समिति के तीन संदेश हैं। साधन, स्वास्थ्य और सेहत। साधन के लिए ग्रामीणों को हुनर सिखा आत्मनिर्भर बनाया गया है। दीनदयाल धाम से प्रशिक्षित 35 सौ लोग सिलाई के काम से जुड़े हैं। इस काम से यह हर माह 15-20 हजार रुपये कमा लेते हैं। दीनदयाल धाम में बना कुर्ता देश भर में भेजा जाता है। आरएसएस कैडर में यह दीनदयाल कुर्ता के नाम से फेमस है। पैजामा, जॉकेट के साथ आरएसएस का गणवेश भी यहा तैयार किया जाता है। स्वास्थ्य के लिए केंद्र की कामधेनु गोशाला है। यहा 75 गायें हैं। इन गावों का दूध गाव के गरीब बच्चों को दिया जाता है। आवले से औषधि : समिति के मंत्री नवीन मित्तल बताते हैं कि यहा गिर और साहीवाल नस्ल की गाय लाए जाने की तैयारी है। दो दर्जन गावों में जैविक खेती के गुर सिखाए जा रहे हैं। सेहत के लिए केंद्र की आयुर्वेद समिति काम कर रही है। यहा की खेती में तैयार आवले से औषधि बनती है। गावों में रोपे संस्कारों के बीज : सूर्या फाउंडेशन नामक संस्था के साथ मिलकर गावों में बच्चों को संस्कारवान बनाया जा रहा है। आसपास के 20 गावों में केंद्र हैं। यहा जूडो कराटे और योग सिखाया जाता है। बच्चों को संस्कारों की शिक्षा भी दी जाती है। केंद्र का नाम ही संस्कार केंद्र रखा गया है।


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