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Pandit Deendayal Upadhyaya Birth Anniversary: पैतृक गांव में सच हो रहा पं. दीनदयाल का सपना

Pandit Deendayal Upadhyaya Birth Anniversary पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर विशेष। ग्रामीणों को आत्मनिर्भर बनाने के साथ ही नारी सशक्तीकरण का भी संदेश। पशुपालन से जोडऩे को चलेगा गो-संवर्धन का प्रकल्प। मथुरा जिले में दीनदयाल धाम छोटे से गांव नगला चंद्रभान में है।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Fri, 25 Sep 2020 12:53 PM (IST)Updated: Fri, 25 Sep 2020 12:53 PM (IST)
Pandit Deendayal Upadhyaya Birth Anniversary: पैतृक गांव में सच हो रहा पं. दीनदयाल का सपना
दीनदयाल धाम के सिलाई प्रशिक्षण केंद्र की राह दिखा दी। फाइल फोटो

मथुरा, विनीत मिश्र। देश और दुनिया को 'अंत्योदयÓ का सपना दिखाने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय का विचार उनके पैतृक गांव नगला चंद्रभान में सच हो रहा है। यहां बना दीनदयाल धाम गरीबों को उत्थान की राह दिखा रहा है। एक दर्जन से अधिक सेवा प्रकल्पों में सैकड़ों हाथों को काम मिला है। गांवों में संस्कारशालाएं चल रही हैं। गायों के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं।

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नगला चंद्रभान गांव के 35 वर्षीय संतोष रावत दोनों पैरों से दिव्यांग हैं। काम करने में अक्षम संतोष को 20 वर्ष पहले किसी ने दीनदयाल धाम के सिलाई प्रशिक्षण केंद्र की राह दिखा दी। उन्होंने सिलाई सीखी और मास्टर बन अब दूसरों को हुनरमंद बना रहे हैैं। छोटा भाई संजय भी सिलाई का मास्टर है। संतोष 20 हजार रुपये प्रतिमाह कमाकर परिवार को भरणपोषण कर रहे हैैं।

दीनदयाल धाम के सहारे क्षेत्र के हजारों परिवारों का गुजारा चल रहा है। दीनदयाल धाम जिले के छोटे से गांव नगला चंद्रभान में है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्म मानववाद का सिद्धांत देकर गरीब के उत्थान का सपना देखा था। दीनदयाल उपाध्याय जन्मोत्सव स्मारक समिति यहां इसी सपने को सच कर रही है। समिति के तीन संदेश हैं। साधन, स्वास्थ्य और सेहत। साधन के लिए ग्र्रामीणों को हुनर सिखा आत्मनिर्भर बनाया गया है। दीनदयाल धाम से प्रशिक्षित 35 सौ लोग सिलाई के काम से जुड़े हैं। इस काम से यह हर माह 15-20 हजार रुपये कमा लेते हैं। दीनदयाल धाम में बना कुर्ता देश भर में भेजा जाता है। आरएसएस कैडर में यह दीनदयाल कुर्ता के नाम से फेमस है। पैजामा, जॉकेट के साथ आरएसएस का गणवेश भी यहां तैयार किया जाता है। स्वास्थ्य के लिए केंद्र की कामधेनु गोशाला है। यहां 75 गाय हैं। इन गांवों का दूध गांव के गरीब बच्चों को दिया जाता है। समिति के मंत्री नवीन मित्तल बताते हैं कि यहां गिर और साहीवाल नस्ल की गाय लाए जाने की तैयारी है। दो दर्जन गांवों में जैविक खेती के गुर सिखाए जा रहे हैं।

सेहत को केंद्र की आयुर्वेद समिति काम कर रही है। गाय के गोबर से हवन सामग्री, धूप के अलावा गोमूत्र और अन्य दवाओं का उत्पादन में लगी है। यहां की खेती में तैयार आंवले से औषधि बनती है।

गांवों में रोपे संस्कारों के बीज

सूर्या फाउंडेशन नामक संस्था के साथ मिलकर गांवों में बच्चों को संस्कारवान बनाया जा रहा है। आसपास के 20 गांवों में केंद्र हैं। यहां जूडो कराटे, योगा सिखाया जाता है। बच्चों को संस्कारों की शिक्षा भी दी जाती है। केंद्र का नाम ही संस्कार केंद्र रखा गया है। 


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