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महारास पर इतराई चंद्र सरोवर की लहरे

आसमान से चन्द्रमा ने शीतल चांदनी बिखेरी तो महारास को चंद्र सरोवर की लहरें मचलने लगीं। महारास का साक्षी परासौली का कण कण शरद पूर्णिमा पर दिव्य नजर आया। शरद के चन्द्रमा का तेज महारास मंडल में झिलमिलाते और सरोवर की लहरों पर मुस्कराते दीपों के सौंदर्य के आगे मानो निस्तेज हो गया। चांदनी रात में सुधारस घोलती वांसुरी की धुन ने द्वापर युगीन महारास की कल्पना के सागर में डुबो दिया। कवियों ने महारास की कल्पना में काव्य धार बहाई तो भक्तों ने भाव सागर से भक्ति का सैलाव ला दिया।

By JagranEdited By: Published: Sun, 13 Oct 2019 11:35 PM (IST)Updated: Mon, 14 Oct 2019 06:04 AM (IST)
महारास पर इतराई चंद्र सरोवर की लहरे
महारास पर इतराई चंद्र सरोवर की लहरे

गोवर्धन: आसमां से चांद ने शीतल चांदनी धरा पर बिखेरी तो महारास पर चंद्र सरोवर की लहरे भी मचल उठी। परासौली का कण-कण इतराने लगा। दीपों की रोशनी से चंद्र सरोवर भी झिलमिला उठा। सुधारस घोलती बांसुरी की धुन से भक्त श्रीकृष्ण के महारास की कल्पना के सागर में गोते लगाते रहे। रविवार को शरद पूर्णिमा पर ब्रज वसुंधरा प्रभु की महारास लीला के आनंद सागर में ऐसी डूबी कि गिरिराज महाराज की दिव्य लीला भूमि धन्य हो गई। मंदिरों में प्रभु ने श्वेत वस्त्र धारण कर भक्तों को दर्शन दिए। श्रद्धालुओं को खीर का प्रसाद बांटा गया।

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शरद का उत्सव का उल्लास ही निराला:

ब्रज भूमि पर नित्य उत्सव होते हैं, मगर राधाकृष्ण का ब्रज गोपिकाओं के संग महारास का ये उत्सव शरद पूर्णिमा पर निराला ही होता है। चंद्र सरोवर में 51 सौ दीप जलाए तो महारास स्थल रोशन हो गया। सूर श्याम गोशाला प्रबंधक देवेंद्र शर्मा, गिरधारी मुखिया, ओम प्रकाश ने सरोवर की लहरों को दीपों से सजाया था। अद्भुत सौंदर्य पर आज चंद्र सरोवर भी इठला रहा था। स्वर और सुर के संगम में बही भक्ति की रसधारा और बांसुरी की धुन दर्शकों को आनंद के चरम पर पहुंचा रही थी।

ठहर गया था वक्त : महारास की आभा ने वक्त को सम्मोहित कर ठहरने पर मजबूर कर दिया। आसमान से छह महीने तक चंद्र देव (चंद्रमा) अपने स्थान से नहीं हटे। प्रभु की लीला के दर्शन को दिन निकलने तक चांद मचलता रहा। चंद्रमा के द्रवित रस से ही परासौली में चंद्र सरोवर का निर्माण हुआ। वराह पुराण में परासौली का उल्लेख तो यही कहता है। गर्ग संहिता में चंद्र सरोवर का महात्म्य बताया गया है। महाप्रभु बल्लभाचार्यजी के मतानुसार दिव्य स्थलों से सजी ब्रज वसुंधरा का हिस्सा पारसौली सारस्वत कल्प की वही पवित्र भूमि है, जहा प्रभु ने गोपियों के साथ छह महीने की रात्रि का निर्माण करके महारास किया।


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