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हाथों की 'भीम' हिम्मत, 16 दिन में 84 कोस पार

बांकेलाल सारस्वत महावन (मथुरा) पैर नहीं तो क्या हिम्मत तो है। भगवान का साथ हो तो यह हौसला पहाड़

By JagranEdited By: Published: Tue, 06 Oct 2020 05:55 AM (IST)Updated: Tue, 06 Oct 2020 05:55 AM (IST)
हाथों की 'भीम' हिम्मत, 16 दिन में 84 कोस पार
हाथों की 'भीम' हिम्मत, 16 दिन में 84 कोस पार

बांकेलाल सारस्वत, महावन (मथुरा): पैर नहीं तो क्या, हिम्मत तो है। भगवान का साथ हो तो यह हौसला पहाड़-सा हो जाता है। हौसले के ऐसे ही धनी पैरों से लाचार भीमा ने हाथों से 84 कोस की परिक्रमा पूरी कर डाली। कन्हैया के इस अनोखे भक्त ने ताजगी भरे चेहरे के साथ 252 किलोमीटर की दूरी महज 16 दिन में पूरी कर ली।

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विकास खंड बलदेव की ग्राम पंचायत आंगई निवासी 20 वर्षीय भीमा दोनों पैरों से दिव्यांग हैं। जन्म से ही कमर के नीचे का हिस्सा काम नहीं करता। भीमा की कान्हा में अटूट आस्था है। आस्था की डोर से बंधे युवक ने इस बार ब्रज 84 कोस परिक्रमा करने की ठानी। भीमा का यह फैसला जिसने भी सुना अवाक रह गया। स्वजन ने उसे कई तरह से मनाया, लेकिन भक्त कब मानने वाले होते हैं। आस्था पर अडिग भीमा ने हौसले का कवच लिया। हाथों से चप्पल और पैरों में जूते पहने। 18 सितंबर को बलदेव में दाऊ जी महाराज के दर्शन कर परिक्रमा शुरू की। बिना किसी को साथ लिए वह आगे बढ़ते गए। रास्ते में कुछ साथी बन गए। इस परिक्रमा का 47 कोस उत्तर प्रदेश में हैं, 13 हरियाणा और 27 कोस राजस्थान की सीमा में है। भीमा बताते हैं कि वह रोज 12 से 15 किमी. की दूरी हाथों से तय करते थे। कुछ साथी आगे बढ़ जाते, कुछ रुक जाते। रास्ते कई जगह बेहद ऊबड़-खाबड़ मिले। दिक्कतें आईं, लेकिन कन्हैया की लगन के आगे यह कुछ नहीं थीं। भोजन-पानी के लिए लंगर थे और सहारे को हरि का नाम। परिक्रमा के दौरान हर मंदिर और तीर्थ स्थल का दर्शन किया। उसके बारे में जानकारी की। चार अक्टूबर को परिक्रमा पूरी की। वे कहते हैं कि परिक्रमा के बाद हौसला और बढ़ गया है।


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