खटारा स्कूली वाहनों में सफर के 600-1350 रुपये
जागरण संवाददाता, मथुरा : स्कूल संचालक वाहन फीस के नाम पर अभिभावकों से मोटी फीस तो वसूल रहे हैं लेकिन
जागरण संवाददाता, मथुरा : स्कूल संचालक वाहन फीस के नाम पर अभिभावकों से मोटी फीस तो वसूल रहे हैं लेकिन सुरक्षा के नाम पर उनके लाड़लों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। तमाम स्कूली वाहन बिना फिटनेस और बीमा के विद्यार्थियों को लेकर दौड़ रहे हैं। परिवहन विभाग भी इस ओर आंखें बंद किए हुए है। फीस में तो प्रति वर्ष वृद्धि हो जाती है लेकिन स्कूली वाहनों की खटारा हालत में कोई सुधार नहीं होता। अभिभावक भी मजबूर हैं, बेचारे विरोध करते हैं तो उन्हें दो टूक जवाब मिल जाता है कि बच्चे को फिर कहीं और ही पढ़ा लो जहां सस्ता हो।
जिले में संचालित हो रहे सीबीएसई के करीब 90 स्कूलों में 800-850 वाहन लगे हुए हैं। इनमें से करीब 85 प्रतिशत तो स्वयं स्कूलों के ही हैं, शेष के लिए अभिभावकों ने सीधे ही वाहन संचालकों से संपर्क किया हुआ है। अधिकांश स्कूलों में 600 से 1350 रुपये प्रतिमाह के हिसाब से फीस वसूली जा रही है। शिकायत पर कह दिया जाता है कि प्रबंध तंत्र अपना कार्य कर रहा है घबराने की जरूरत नहीं हैं। खारी कुआं निवासी अभिभावक मोहित गुप्ता का कहना है कि स्कूल प्रबंधन द्वारा 10 किमी के लिए भी वही किराया निर्धारित है जो तीन-चार किमी के लिए लिया जा रहा है। वे अधिक किराया क्यों दे। इसको लेकर अभिभावकों व अन्य छात्र संगठनों ने भी कई बार स्कूल प्रबंधन से इसकी शिकायत की लेकिन अभी तक समस्या का समाधान नहीं हो सका है। अभिभावक निर्मला रानी की मानें तो डैम्पियर नगर स्थित एक स्कूल की वाहन फीस कक्षा एलकेजी से पांचवीं तक 650 रुपये जबकि कक्षा छ: से बारहवीं तक 900 रुपये ली गई है। टाउनशिप निवासी शिखा गौतम ने बताया कि गोवर्धन रोड स्थित एक स्कूल की वाहन फीस कक्षा एलकेजी से पांचवीं तक 870 रुपये से 1030 रुपये तक ली जा रही है। यहां स्थान के आधार पर यह फीस तय हुई है। बात करें मथुरा-भरतपुर रोड के कोसी खुर्द स्थित स्कूल की तो यहां कक्षा छ: से 10 तक के विद्यार्थियों के लिए 1350 रुपये फीस निर्धारित की गई है। सरस्वती कुंड स्थित स्कूल में कक्षा छ: से 10 तक के विद्यार्थियों के लिए 900 रुपये फीस रखी गई है।
वाहन फीस से भी मोटी कमाई:
अधिकांश विद्यालयों में ही वाहन फीस जमा कराई जा रही है। इसे भी संचालकों ने कमाई का ही जरिया बनाया हुआ है। इसके लिए विद्यालयों ने अपने वाहन लगाए हुए हैं जिन्हें चलाने के लिए महीनेदारी पर ड्राइवर रखे हुए हैं। शेष बचत स्कूल के ही खाते में जाती है। कई बार इन खस्ताहाल वाहनों की दुर्घटनाएं भी सामने आ चुकी हैं।