दर्शन जैसे तुम चाहो, दक्षिणा जैसी मैं चाहूं
सेवा और अधिकार की प्रतिष्ठा में टूट जाती मर्यादाविशेष दर्शन ही बनते रहे हैं विवाद के कारण
संवाद सहयोगी, वृंदावन: भगवान के दर पर वीआइपी बनकर आने वाले तमाम श्रद्धालु कुछ अलग तरह से दर्शन करने की अभिलाषा करते हैं। सेवायत उनकी मनोकामना पूरी कराने की एवज में मुहंमांगी दक्षिणा चाहते हैं। फिर चाहे इसके लिए मंदिर की मर्यादा टूटे या आस्था के साथ खिलवाड़ हो। यही स्थितियां विवाद के कारण बनती रही हैं। विगत में ठाकुर जी को परंपरा के विपरीत पोशाक धारण कराने, गर्भगृह में प्रसाद खिलाने की घटनाएं हो चुकी हैं।
ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर की बेहतर व्यवस्था और सरल दर्शन के लिए बनाई गई परंपरा तो यही है कि ठाकुर जी की सेवा और यजमानों को दर्शन कराने का अधिकार उस दिन के सेवाधिकारी को है। अव्यवस्था तब फैल जाती है जब इस सेवा के लिए अन्य द्वारा जबरन अधिकार जताए जाते हैं। सोमवार को मारपीट की घटना के पीछे भी सेवा और अधिकार की यही प्रतिष्ठा थी जिससे न केवल मंदिर की मर्यादा ध्वस्त हो गई बल्कि श्रद्धालुओं की भावनाएं भी आहत हुई।
बांकेबिहारी मंदिर में सेवायतों के बीच मारपीट की ये कोई पहली घटना नहीं है। विगत में हो चुकी हर घटना के आलोक में यजमानों को विशेष दर्शन ही सामने आया है। दुखदायी तो ये है कि ये विवाद चौकी-थाने तक पहुंचे। पुलिस के रजिस्टर में दर्ज हुए। न हालात बदले और न ही सोच।
ये है व्यवस्था
-मंदिर में दो पहर की सेवा होती है
- राज भोग सेवा और शयन भोग सेवा
राज भोग सेवा: सुबह 9 से 1 बजे तक
- शयन भोग सेवा: तीसरे पहर शाम 4.30 से 8.30 बजे तक
- दोनों ही सेवा के लिए सेवायत परिवार भी अलग हैं।
ऐसे होता है सेवा का बंटवारा
बांकेबिहारी मंदिर की सेवा के लिए समस्त गोस्वामी समाज अधिकृत है। हर परिवार को साल भर के दिनों के अनुपातिक सेवा का अवसर मिलता है। अब अगर किसी परिवार में सात सदस्य हैं तो उस परिवार के लिए निर्धारित दिन या दिनों में सेवा की जिम्मेदारी का मौका सदस्य संख्या के अनुसार आंतरिक बंटवारे के आधार पर मिलता है। किसी परिवार में अगर दो ही सदस्य हैं तो उसके दोनों सदस्यों को सेवा के अवसर ज्यादा मिल जाते हैं। ये है सेवायत परिवारों की स्थिति
-550 परिवार ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर के सेवायतों के हैं।
- सेवा की व्यवस्था की शुरुआत में सिर्फ तीन सेवायत परिवार थे
-वर्तमान में किसी परिवार के पास साल में एक दिन की सेवा है, तो किसी के पास एक माह की।
-किसी परिवार के पास यदि दस दिन की सेवा आई और उनके दस बच्चे हैं, तो एक-एक दिन ही सभी बच्चों को सेवा मिलती है।
यहां होता टकराव
सेवाधिकारी तो उस दिन मंदिर व्यवस्था का सर्वाेपरि होता ही है। जो सेवायत प्रतीक्षारत है, वो अपने यजमान को अपने कार्यकाल की तरह विशेष दर्शन कराने की कोशिश करता है। दर्शन में ठाकुर जी पर चढ़ावा से ज्यादा अपनी दक्षिणा की चाहत होती है। कई बार ऐसा होता है कि यही यजमान मौजूदा सेवाधिकारी के विगत के कार्यकाल में उनका खास बन चुका होता है। ऐसे में सेवाधिकारी कतई नहीं चाहेगा कि सिर्फ चढ़ावा हमारा और पट्टा ओढ़ाकर दक्षिणा वो पाए। ऐसे ही विशेष दर्शन प्रतिष्ठा का मुद्दा बन जाते हैं और विवाद होते हैं। सोमवार की घटना के पीछे भी यही कारण था।
अखाड़ा बनता रहा है मंदिर
-3 जनवरी, 2021: मंदिर में बुजुर्ग दंपती को सुरक्षा कर्मियों ने जमीन पर गिराकर लातों से पीटा।
- 4 जनवरी, 2021: दोपहर सौरभ गोस्वामी की 10 वर्षीय पुत्री मन्नत अपनी मौसी के साथ प्रवेश कर रही थी। महिला सुरक्षाकर्मी ने बच्ची से अभद्रता करते हुए रोक दिया। विरोध करने पर बच्ची को थप्पड़ मार दिया। एक श्रद्धालु के हस्तक्षेप करने पर उससे भी मारपीट की। गोस्वामी और सुरक्षाकर्मी आमने-सामने आ गए। नोटिस थमाने के बाद कार्रवाई नहीं
मंदिर परिसर में मारपीट का मामला हो अथवा मोटी दक्षिणा लेकर अवैध रूप से दर्शन कराने तथा पोशाक धारण व वीडियो व फोटो वायरल करने का मामला हो। प्रबंधन ने केवल नोटिस थमा दिया और कार्रवाई न हुई। मंदिर की व्यवस्था
-ठाकुर बांके बिहारी मंदिर के प्रशासक सिविल जज जूनियर डिवीजन हैं। उन्हीं को प्रशासनिक मामलों में निर्णय लेने का अधिकार है। मंदिर प्रबंधक सिविल जज के आदेश का पालन कराते हैं। ठाकुर जी की सेवा का काम सेवायत संभालते हैं। उस दिन उन्हें सेवाधिकारी कहा जाता है।
सेवायतों की मनमानी
-नियमों का उल्लंघन कर यजमानों को विशेष दर्शन कराते हैं। बदले में मोटी दक्षिणा लेते हैं।
-पाबंदी के बाद भी मोबाइल से आरती के लाइव दर्शन कराते हैं।
-ठाकुर जी का फोटो खींचना प्रतिबंधित है, मगर इंटरनेट मीडिया पर फोटो डालने के साथ ही वीडियो भी वायरल करते हैं।
-मंदिर परिसर में कई सेवायतों ने गद्दी लगा रखी है। ये गद्दियां दर्शन में बाधा बनती हैं।
-मनमाने तरीके से सेवायत दर्शन कराते हैं और दर्शन बंद कर देते हैं।