सेहत के साथी को नहीं मिला सियासत का साथ
लहसुन पैदा करने वाले जिले का किसान सदैव घाटे में रहा है। खेती का लोभ अन्नदाता को औषधि वाली फसल से दूर होने नहीं देता है। उम्मीद की इस फसल से कभी किसानों को बेहतर फल नहीं मिला। खेतों से फसल के मंडी में आने के बाद भाव गिरने लगते हैं। कई चुनाव गुजरने के बाद भी राजनीति की छांव भी इस खेती को नहीं मिली।
श्रवण शर्मा, मैनपुरी:
लहसुन पैदा करने वाले जिले का किसान सदैव घाटे में रहा है। खेती का लोभ अन्नदाता को औषधि वाली फसल से दूर होने नहीं देता है। सेहत के साथी को यहां कभी भी सियासत का साथ नहीं मिला। हाल यह रहता है कि खेतों से फसल के मंडी में आने के बाद भाव गिरने लगते हैं।
लहसुन की खेती से जिले की खास पहचान है। कभी इस फसल के मामले में प्रदेश में यह जिला नंबर वन था, लेकिन अब राजस्थान ने यह स्थान हासिल कर लिया है। जिले के करीब 20 हजार किसान इस खेती से जुड़े हुए हैं। हर बार लाभ हासिल करने की उम्मीद में किसान लहसुन पैदा करते हैं। खेतों से फसल जैसे ही स्थानीय मंडियों में आती है, भाव गिरने लग जाते हैं। कई साल में एक बार किसान को खुश करने वाली यह फसल लगभग हर बार घाटा ही देती है।
घिरोर, कुरावली, मैनपुरी के अलावा सुल्तानगंज, बरनाहल में इसकी फसल भी भरपूर होने के बाद भी यह किसानों के लिए मुनाफे की खेती नहीं बन सका। कभी-कभी तो यह पचास पैसे किलो तक भी बिका, लेकिन सरकार और राजनेताओं ने गौर नहीं फरमाया। कभी तो भाव नहीं मिलने पर गुस्से में किसान इसे फेंकने को विवश होते हैं। वैसे सीजन के दौरान अकेले इस जिला में ही प्रति हेक्टेयर 60 से 70 कुंतल उत्पादन होता है। करीब 950 हेक्टेयर में पैदा होने वाले लहसुन को बढ़ावा देने के कभी प्रयास नहीं हुए। विधानसभा में यह मुद्दा एक बार करहल विधायक सोबरन सिंह ने जरूर उठाया। वैसे, भोगांव क्षेत्र में एक दशक पहले लहसुन का पाउडर बनाने को यूनिट भी लगी, लेकिन संरक्षण के अभाव में बंद हो गई।
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यह भी कारक कम नहीं
औषधि के गुणों से भरपूर लहसुन से मुनाफा नहीं होने के पीछे भी चीन खास वजह है। चीन का लहसुन बेहतर क्वालिटी का बताकर भारत में खपाया जाता है। ऐसे में यहां के किसानों को भरपूर लाभ नहीं मिल पाता। स्थानीय स्तर भी इसके लिए कोई उद्योग विकसित नहीं हुआ।
किसानों की बात-
जिला में लहसुन आधारित उद्योग का अभाव है। मंडी में माल जाते ही व्यापारी मनमानी रेट कर देते हैं। स्वाद और गुणों में बेहतर होने के बाद भी लाभ नहीं मिलता। - मौनू चौहान, गांव चाहर
लहसुन को अच्छा भाव नहीं मिलने के पीछे सरकार और स्थानीय जनप्रतिनिधि जिम्मेदार हैं। हजारों कुंतल लहसुन होने के बाद भी यहां कोई उद्योग विकसित नहीं किया गया।
-भानू चौहान, कोसोन। ओडीओपी से भी उम्मीद अधूरी
वर्तमान सरकार ने लहसुन को एक जनपद-एक उत्पाद में शामिल किया तो उम्मीद नजर आईं। इसके लिए दो उद्यमियों ने लहसुन आधारित यूनिट लगाने को आवेदन किए हैं तो उद्यान विभाग दो अन्य उद्यमियों से वार्ता करने में लगा है। वैसे, खाद्य खाद्य प्रसंस्करण विभाग भी लहसुन आधारित तीन इकाइयों को लघु एवं सूक्ष्म उद्योग योजना में विकसित करने की योजना को साकार करेगा, फिलहाल आवेदक नहीं मिल सके हैं। ये हैं मांग
- लहसुन पाउडर बनाने की लगे फैक्ट्री, चीनी लहसुन पर लगे प्रतिबंध।
-छोटी प्रसंस्करण इकाइयां हों स्थापित, विदेशों तक भेजने का हो इंतजाम।
-खेती के प्रोत्साहन को ब्लाक स्तर पर बनें केंद्र, किसान किए जाएं प्रशिक्षित।