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कभी बरकरार न रहा किसी एक दल का वर्चस्व

मैनपुरी सदर विधानसभा मुद्दों से ज्यादा जातीय समीकरणों से होती रही हार-जीत चार-चार बार जीतीं भाजपा-कांग्रेस तीन बार सपा

By JagranEdited By: Published: Wed, 19 Jan 2022 06:44 AM (IST)Updated: Wed, 19 Jan 2022 06:44 AM (IST)
कभी बरकरार न रहा किसी एक दल का वर्चस्व
कभी बरकरार न रहा किसी एक दल का वर्चस्व

दिलीप शर्मा, मैनपुरी: प्राचीन ईशन नदी की मौजूदगी वाली मैनपुरी विधानसभा का मिजाज कुछ अलग ही है। ईशन नदी जिस तरह शहर के बीच से इठलाती, बल खाती गुजरती है, कुछ उसी तरह इस विधानसभा क्षेत्र ने हर एक-दो चुनाव के बाद सत्ता के समीकरण को बदला है। कभी यह सियासी लहरों के साथ चली तो कभी धारा के विपरीत। यहां कभी किसी दल का वर्चस्व बरकरार नहीं रहा। चुनावों के मुकाबले रोचक और कड़े होते रहे। सीट के मिजाज का अंदाजा इससे ही लगाइए कि यहां चार-चार बार भाजपा और कांग्रेस जीत दर्ज कर चुकी हैं, जबकि सपा ने तीन बार विजय पताका फहराई है। हालांकि इन सब मुकाबलों में यहां के मतदाताओं ने चेहरों पर दुलार लुटाया।

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वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में जब सूबे में भाजपा की प्रचंड लहर चल रही थी, तब भी मैनपुरी विधानसभा ने अपना यही मिजाज दिखाया था। उस चुनाव में सपा प्रत्याशी राजकुमार यादव ने लगातार दूसरी बार चुनाव जीता था। भाजपा प्रत्याशी अशोक सिंह चौहान आठ हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से पराजित हुए थे। इससे पहले वर्ष 2012 के चुनाव में भी सपा के राजकुमार यादव ने बसपा प्रत्याशी रमा शाक्य को पराजित किया था। उस चुनाव में कांग्रेस तीसरे और भाजपा चौथे नंबर पर रही थी। हालांकि इससे पहले वर्ष 2007 और 2002 के चुनाव में भाजपा के अशोक सिंह चौहान लगातार दो बार विधायक बने थे। जबकि वर्ष 1996 के चुनाव में पहली बार सपा ने इस सीट पर जीत हासिल की थी। तब सपा की टिकट पर मानिकचंद्र यादव विधायक बने थे। कांग्रेस की बात करें तो वर्ष 1952 के पहले विधानसभा चुनाव में से जीत हासिल हुई थी। इसके बाद कांग्रेस यहां 1962, 1980 और 1985 में भी विजय प्राप्त कर चुकी है। बसपा का खाता यहां कभी नहीं खुल सका।

चुनावों में इस विधानसभा के मतदाता चेहरों पर भी भरोसा जताते रहे हैं। वर्ष 1957, 1962 और 1969 के चुनावों में जीत हासिल करने वाले मलखान सिंह जब 1977 में जेएनपी से चुनाव लड़े तो जनता उनको फिर से जिताया। कांग्रेस के रघुवीर सिंह यादव लगातार दो बार विधायक रहे। इसी तरह भाजपा के नरेंद्र सिंह राठौर और अशोक सिंह चौहान भी लगातार दो-दो बार जीते। सपा के वर्तमान विधायक राजुकमार यादव भी लगातार दो बार जीते हैं।

जातीय गणित: जातीय समीकरणों की बात करें तो वर्ष 2012 से पहले यह सीट क्षत्रिय बाहुल्य हुआ करती थी। परंतु तब हुए परिसीमन के बाद सीट का भूगोल बदला तो जातीय समीकरण भी पूरी तरह बदल गए। वर्तमान में इस सीट पर यादव मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है, जो 70 हजार के आसपास पहुंचती है। इसके बाद शाक्य मतदाताओं का नंबर आता है, जो 30 हजार के लगभग हैं। क्षत्रिय वोटरों की संख्या 25 से 30 हजार के बीच है। दलित मतदाताओं की संख्या 20 हजार के आसपास मानी जाती है। विधानसभा में लोधी, ब्राह्मण, मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 15-15 हजार के आसपास मानी जाती है।

कड़े मुकाबलों का है इतिहास: मैनपुरी विधानसभा सीट पर कड़े मुकाबलों का भी इतिहास है। अब तक हुए 17 चुनावों में से 10 बार हार-जीत का अंतर 10 हजार से भी कम रहा। सबसे दिलचस्प मुकाबला 1962 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी ब्रजेश्वर सिंह और पीएसपी के प्रत्याशी रघुवीर सिंह के बीच हुआ था। तब ब्रजेश्वर सिंह ने मात्र 278 मतों के अंतर से जीत हासिल की थी। इसी तरह 1969 में 771 मत, 1985 में 1374 मत, 1957 में 1396 मत, 2002 में 1829 मत के अंतर से हार-जीत हुई थी। 2007, 1993, 1991, 1980, 1968 और 1952 के चुनावों में भी हार-जीत का अंतर 10 हजार मतों से कम रहा। इस विधानसभा की सबसे बड़ी जीत 1996 के चुनाव में हुई, जिसमें मतों का अंतर 24442 था। उससे पहले वर्ष 1993 और 1991 के चुनावों के भाजपा ने नरेंद्र सिंह राठौर ने लगातार दो बार जीत हासिल की थी।

कब कौन जीता: चुनाव वर्ष, विजेता, दल

2017, राजकुमार यादव, सपा

2012, राजकुमार यादव, सपा

2007, अशोक सिंह चौहान, भाजपा

2002, अशोक सिंह चौहान, भाजपा

1996, मानिक चंद्र यादव, सपा

1993, नरेंद्र सिंह राठौर, भाजपा

1991, नरेंद्र सिंह राठौर, भाजपा

1989, इंदल सिंह चौहान, जनता दल

1985, रघुवीर सिंह यादव, कांग्रेस

1980, रघुवीर सिंह यादव, कांग्रेस

1977, मलखान सिंह, जेएनपी

1974, बाब रामनाथ, सीपीएम

1969,मलखान सिंह, बीजेएस

1967, मलखान सिंह, बीजेएस

1962, ब्रजेश्वर सिंह, कांग्रेस

1957, मलखान सिंह, बीजेएस

1952, गनेश चंद्र, कांग्रेस


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