आर्थिक विकास ने बिगाड़ा प्रकृति का स्वरूप
मैनपुरी, भोगांव : आर्थिक विकास और आधुनिकता की चाहत ने पर्यावरण का स्वरूप बिगाड़ा है। पर्यावरण के पुरा
मैनपुरी, भोगांव : आर्थिक विकास और आधुनिकता की चाहत ने पर्यावरण का स्वरूप बिगाड़ा है। पर्यावरण के पुराने स्वरूप को वापस लाने के लिए एक बार फिर प्राकृतिक संसाधनों को सहेजना होगा। विकास के नाम पर कुदरत के साथ खिलवाड़ करने वालों पर कानूनी शिकंजा कसने की जरूरत है।
ये विचार उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के पूर्व सदस्य डॉ. अजब ¨सह यादव ने नेशनल पीजी कॉलेज के भूगोल सभागार में पर्यावरण एवं सतत विकास विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र में शोधार्थी छात्रों के समक्ष व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि पर्यावरण हमारी भविष्य की पीढ़ी के लिए अमूल्य विरासत है। प्राकृतिक संसाधनों की कीमत को जानकर इनका संरक्षण वर्तमान परि²श्य में बेहद जरूरी हो गया है। मानव पर्यावरण का एक ऐसा घटक है जिस पर पर्यावरण से उछ्वव एवं विकास होता है। वर्तमान अस्तित्व को बचाए रखने के लिए भविष्य को सुनिश्चित करना होगा। संगोष्ठी के संयोजक डॉ. कौशलेंद्र दीक्षित ने कहा कि पर्यावरण की संरक्षा के लिए सभी की जिम्मेदारी है। जागरूकता लाकर ही प्राकृतिक संसाधनों को प्रचुर मात्रा में बचाया जा सकता है। शुद्ध, वायु, जल न होने पर मानव जीवन संकट के दौर में पहुंचेगा। आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन आज के समय में दुनिया के समक्ष सबसे बड़ी समस्याएं हैं। दूसरे सत्र में शोधार्थी छात्रों ने पर्यावरण संरक्षण के लिए अहम मुद्दों पर विशेष तर्क दिए। प्राचार्य डॉ. आशा रानी वर्मा ने संगोष्ठी में बताई गई अहम बातों को लागू करने की अपील की। प्रो. केसी यादव, डॉ. एके पाल, डॉ. राकेश गुप्ता, डॉ. आदित्य कुमार गुप्ता, डॉ. संदीप वर्मन, शकील अहमद आदि ने विचार व्यक्त किए। इस दौरान डॉ. अखिल कुमार सक्सेना, डॉ. राजेश चौहान, डॉ. फतेह ¨सह, विजेंद्र यादव, एमएस भारती, डॉ. वंदना सक्सेना, सुशील पाल, नृपेंद्र सिन्हा, डॉ. मनोज पाठक, रामकृष्ण वर्मा, डॉ. आशुतोष मिश्रा, उमेश राठौर, प्रियंका शर्मा, राकेश यादव मौजूद रहे।